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Showing posts from August 13, 2017

आजादी के ७०साल या गुलामी के ५००साल राजीव दिक्षितजी के व्याख्यान से कटु सत्य* पुरा पढ़े

*आजादी के ७०साल या गुलामी के ५००साल* *आओ जानें भारत की आजादी की झूठी कहानी* *राजीव दिक्षितजी के व्याख्यान से कटु सत्य* पुरा पढ़े आज तक भारत के लोगों को धोखे में रखकर लगातार झूठ बोला जाता रहा है कि हमें 15 अगस्त को आजादी मिली थी।वास्तव में हमें आजादी नहीं बल्कि 90 साल की लीज़ पर सत्ता का हस्तांतरण हुआ है। आओ *Transfer of Power Agreement*" को जाने और दुसरो को भी बताएं । 14 अगस्त 1947 कि रात को आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था। *सत्ता के हस्तांतरण की संधि* ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि | ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या कहें साजिश को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये | 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में | Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है | स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है | और सत्ता का हस्...

देवदासी_प्रथा

#देवदासी_प्रथा - कुछ प्रथाओं को लेकर जनमानस के मन मे ऐसा मतिभ्रम उत्पन्न कर दिया गया है कि,  विधर्मियो के सवाल पे वो जानकारी न होने पे चुप्पी साध जाते है,और हिंदुत्व को लेकर उनके मन मे एक कुंठा व्यापत हो जाती है ऐसी ही एक प्रथा है , -----देवदासी प्रथा ----- #माना जाता है कि ये प्रथा छठी सदी में शुरू हुई थी। इस प्रथा के तहत कुंवारी लड़कियों को धर्म के नाम पर ईश्वर के साथ ब्याह कराकर मंदिरों को दान कर दिया जाता था। माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे। परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था। देवता से ब्याही इन महिलाओं को ही देवदासी कहा जाता है। उन्हें जीवनभर इसी तरह रहना पड़ता था। मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी देवदासी प्रथा का उल्लेख मिलता है। देवदासी यानी 'सर्वेंट ऑफ़ गॉड'। देवदासियां मंदिरों की देख-रेख, पूजा-पाठ की तैयारी, मंदिरों में नृत्य आदि के लिए थीं। कालिदास के 'मेघदूतम्' में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंवारी कन्याओं की चर्चा की है। संभवत: इन्हें देवदासियां ही माना जाता है। #...

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण5

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण ==================== द्वितीय खण्ड : साहित्यिक विकृतियां भारतीय दृष्टि से इतिहास एक विद्या विशेष है। विद्या केरूप में इतिहास का उल्लेख सर्वप्रथम अथर्ववेद में किया गया है। अथर्ववेद सृष्टि निर्माता ब्रह्मा जी की देन है, ऐसा माना जाता है। अतः भारत में ऐतिहासिक सामग्री की प्राचीनता असंदिग्ध है। ऐसी स्थिति में यह कहना कि भारत में ऐतिहासिक सामग्री का अभाव था, वास्तविकता को जानबूझकर नकारने के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं। व्यास शिष्य लोमहर्षण के अनुसार प्रत्येक राजा को अपने समय का काफी बड़ा भाग इतिहास के अध्ययन में लगाना चाहिए और राजमंत्री को तो इतिहास तत्त्व का विद्वान होना ही चाहिए। राजा के लिए प्रतिदिन इतिहास सुनना एक अनिवार्य कार्य था। यदि प्राचीन काल में ऐतिहासिक सामग्री नहीं थी तो वे लोग क्या सुनते थे? भारत के इतिहास का आधुनिक रूप में लेखन करते समय मुख्य बात तो यह रही कि सत्ताधारी और उनके समर्थक इतिहासकार भारत की प्राचीन सामग्री को सही रूप से प्रकाश में लाना ही नहीं चाहते थे। इसीलिए उसको प्रकाश में लाने के लिए जितने श्रम और लगन से खोज करने की आवश्यकता थी, वह नह...

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण4

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण ==================== कल से आगे का भाग...... भारत की प्राचीन परम्परा के अनुसार वेदों के संकलन कासृष्टि निर्माण से बड़ा घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। कारण, उसका मानना है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जीने सृष्टि का निर्माण करके उसके संचालन के लिए जो विधान दिया है, वह वेद ही है। भारतीय कालगणना के अनुसार वर्तमान सृष्टि को प्रारम्भ हुए 1.97 अरब वर्ष से अधिक हो गए हैं, जबकि बाइबिल के आधारपर पाश्चात्य विद्वानों का मानना है कि वर्तमान सृष्टि को बने 6000 वर्ष से अधिक नहीं हुए हैं अर्थात इससे पूर्व कहीं भी कुछ भी नहीं था। इस संदर्भ में पाश्चात्य विद्वान एच. जी. वेल्स का ‘आउटलाइन ऑफ वर्ड हिस्ट्री (1934 ई.) के पृष्ठ 15 पर लिखा निम्नलिखित कथन उल्लेखनीय है- ‘‘केवल दो सौ वर्ष पूर्व मनुष्योत्पत्ति की आयु 6000वर्ष तक मानी जाती थी परन्तु अब पर्दा हटा है तो मनुष्य अपनी प्राचीनता लाखों वर्ष तक आंकने लगा है।‘‘ आज भारत के ही नहीं, विश्व के अनेक देशों के विद्वान यह मानने लगे हैं कि मानव सभ्यता का इतिहास लाखों-लाखों वर्ष पुराना है और वह भारतसे ही प्रारम्भ होता है। विगत दो शताब्दियों में...

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण 3

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण ==================== कल के पोस्ट से आगे ...... यूरोपवासी आर्यवंशी अंग्रेजी सत्ता के उद्देश्य की पूर्ति में लगे न केवल अंग्रेज विद्वान ही वरन उनसे प्रभावित और उनकी योजना में सहयोगी बने अन्य पाश्चात्य विद्वान, यथा- मैक्समूलर, वेबर, विंटर्निट्ज आदि भी शुरू-शुरू में भारत के इतिहास और साहित्य तथा सभ्यता और संस्कृति की प्राचीनता, महानता और श्रेष्ठता को नकारते ही रहे तथा भारत के प्रति बड़ी अनादर और तिरस्कार की भावना भी दिखाते रहे किन्तु जब उन्होंने देखा कि यूरोप के ही काउन्ट जार्नस्टर्जना, जैकालियट, हम्बोल्ट आदि विद्वानों ने भारतीय साहित्य, सभ्यता और संस्कृति की प्रभावी रूप में सराहना करनी शुरू कर दी है तो इन लेखकों ने इस डर से कि कहीं उनको दुराग्रही न मान लिया जाए, भारत की सराहनाकरनी शुरू कर दी। इन्होंने यह भी सोचा कि यदि हम यूँ ही भारतीय ज्ञान-भण्डार का निरादर करते रहेतो विश्व समाज में हमें अज्ञानी माना जाने लगेगा अतः इन्होंने भी भारत के गौरव, ज्ञान और गरिमा का बखान करना शुरू कर दिया। कारण यह रहा हो या अन्य कुछ, विचार परिवर्तन की दृष्टि से पाश्चात्य विद्वा...

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण 2

भारतीय इतिहास का विकृतिकरण ================ कल के पोस्ट से आगे ...... भारत के मूल निवासी द्रविड़ अंग्रेजों के आने से पूर्व भारत में यह कोई जानताही नहीं था कि द्रविड़ और आर्य दो अलग-अलग जातियाँ हैं। यह बात तो देश में अंग्रेजों के आने के बाद ही सामने लाई गई। अंग्रेजों को यह कहना भी इसलिए पड़ा क्योंकि वे आर्यों को भारत में हमलावर बनाकर लाए थे। हमलावर के लिए कोई हमला सहने वाला भी तो चाहिए था। बस, यहीं से मूल निवासी की कथा चलाई गई और इसे सही सिद्ध करने के उद्देश्य से ‘द्रविड़‘ की कल्पना की गई। अन्यथाभारत के किसी भी साहित्यिक, धार्मिक या अन्य प्रकार के ग्रन्थ में इस बात का कोई उल्लेख नहीं मिलता कि द्रविड़ और आर्य कहीं बाहर से आए थे। यदि थोड़ी देर के लिए इस बात को मान भी लियाजाए कि आर्यों ने विदेशों से आकर यहाँ के मूल निवासियों को युद्धों में हराया था तो पहले यह बताना होगा कि उन मूल निवासियों के समय इस देश का नाम क्या था ? क्योंकि जो भी व्यक्ति जहाँ रहते हैं, वे उस स्थान का नाम अवश्य रखते हैं। जबकि किसी भी प्राचीन भारतीय ग्रन्थ या तथाकथित मूल निवासियों की किसी परम्परा या मान्यता में ...

लुप्त इतिहास का एक और स्वर्णिम पृष्ठ : - #कवि_सम्राट्_हाल_सातवाहन

लुप्त इतिहास का एक और स्वर्णिम पृष्ठ : - #कवि_सम्राट्_हाल_सातवाहन •°•°•°•°•°•°•°•°•°•°•°•°•°•°•°•                        ☆ डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह 'संजय' सातवाहन वंश के महत्त्वपूर्ण शासकों में कवि सम्राट् हाल की गणना निर्विवाद रूप से होती है। यद्यपि महाराज हाल का शासनकाल बहुत समय का है, तथापि कुछ विषयों पर उनका शासनकाल बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। ऐसा माना जाता है कि यदि आरम्भिक सातवाहन शासकों में शातकर्णी प्रथम योद्धा के रूप में सबसे महान् थे, तो महाराज हाल सातवाहन शान्तिदूत के रूप में अग्रणगण्य थे। महाराज हाल सातवाहन साहित्यिक अभिरुचि के कारण साहित्य-जगत् में कवि सम्राट् के रूप में प्रख्यात हैं। उनके नाम का उल्लेख पुराण वाड़्मय के साथ साथ 'लीलावती', 'सप्तशती', 'अभिधानचिन्तामणि' प्रभृति ग्रन्थों में हुआ है। कवि सम्राट् हाल सातवाहन ने प्राकृत भाषा में 'गाहा सतसई' ('गाथा सप्तशती') नामक सुविख्यात श्रृंगार-ग्रन्थ का संकलन एवं सम्पादन किया है। 'बृहत्कथा' के लेखक गुणाढ्य भी महाराज हाल सातवाहन के समकालीन थे तथा कदाचित पैशाची भाषा ...

जबतक जीवन है सुख दुःख चलता रहेगा

*जबतक जीवन है सुख दुःख चलता रहेगा* बात उन दिनों की है जब महात्मा बुद्ध, विश्व में भृमण करते हुए लोगों को ज्ञान बाँटा करते थे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया करते थे। एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक वृक्ष नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे थे। अचानक एक बूढी औरत वहाँ रोती – बिलखती हुई आई और गौतम बुद्ध के चरणों में गिर पड़ी। और बोली – महात्मा जी मैं दुनियाँ की सबसे दुखी औरत हूँ, मैं अपने जीवन से बहुत परेशान हूँ। महात्मा बुद्ध – क्या हुआ? आप क्यों दुःखी हैं? बूढी औरत- भगवन, मेरा एक ही पुत्र था जो मेरे बुढ़ापे का एकमात्र सहारा था। कल रात तीव्र बुखार से उसकी मृत्यु हो गयी, उसके बाद मेरे ऊपर जैसे दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा है। मैं बहुत दुःखी हूँ, ईश्वर ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? अब मैं किसके सहारे जीऊँगी? महात्मा बुद्ध – हे माता! मैं आपके दुःख को समझ सकता हूँ। पहले आप मुझे किसी ऐसे घर से एक मुट्ठी चावल लाकर दें, जिस घर में कभी किसी की मृत्यु ना हुई हो। फिर मैं आपकी समस्या का हल बताऊँगा। औरत धीमे क़दमों से गाँव की ओर चल पड़ी। पूरे दिन वो इधर से उधर सभी लोगों के घर में भटकती रही लेकिन उस...

भारत के इतिहास में विकृतियाँ की गईं, क्या-क्या?

भारत के इतिहास में विकृतियाँ की गईं, क्या-क्या? ईसा की 16वीं - 17वीं शताब्दी में व्यापारी बनकर आएअंग्रेज 18वीं शताब्दी के अन्त तक आते-आते 200 वर्ष के कालखण्ड में छल से, बल से औरकूटनीति से भारतीय नरेशों की सत्ताएँ हथिया कर देश की प्रमुख राजशक्ति ही नहीं बन गए वरन वे देश की बागडोर संभालने में भी सफल हो गए। अपनी सत्ता को ऐतिहासिक दृष्टि से उचित ठहराने के लिएतत्कालीन कम्पनी सरकार ने भारत के इतिहास में विकृतियाँ लाने के लिए विभिन्न प्रकार की भ्रान्तियों का निर्माण कराकर उनको विभिन्न स्थानों पर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा विभिन्न प्रकार से प्रचारित कराया। यहाँ कुछ विकृतियों का उल्लेख 4 खण्डों, यथा- ऐतिहासिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक और विविध में वर्गीकृत करके किया जा रहा है- 1- ऐतिहासिक - आर्य लोग भारत में बाहर से आएसंपादित करें अंग्रेजों ने भारत में विदेश से आकर की गई अपनी सत्ता की स्थापना को सही ठहराने के उद्देश्य से ही आर्यों के सम्बन्ध में, जो कि यहाँ केमूल निवासी थे, यह प्रचारित कराना शुरू कर दिया कि वे लोग भारत में बाहर से आए थे और उन्होंने भी बाहर से ही आकर यहाँ अपनी राज्यसत्ता स्...

क्या सचमुच आत्मा होती है?

क्या सचमुच आत्मा होती है? प्रातः काल का समय था। गुरुकुल में हर दिन की भांति गुरूजी अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। आज का विषय था- “आत्मा” आत्मा के बारे में बताते हुए गुरु जी ने गीता का यह श्लोक बोला – नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः || अर्थात: आत्मा को न शस्त्र छेद सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न जल उसे गला सकता है और न हवा उसे सुखा सकती है। इस आत्मा का कभी भी विनाश नहीं हो सकता है, यह अविनाशी है। यह सुनकर एक शिष्य को जिज्ञासा हुई, वह बोला, “किन्तु गुरुवर यह कैसे संभव है? यदि आत्मा का अस्तित्व है, वो अविनाशी है, तो भला वो इस नाशवान शरीर में कैसे वास करती है और वो हमें दिखाई क्यों नहीं देती? क्या सचमुच आत्मा होती है?” गुरु जी मुस्कुराए और बोले, पुत्र आज तुम रसोईघर से एक कटोरा दूध ले लेना और उसे सुरक्षित अपने कमरे में रख देना। और कल इसी समय वह कटोरा लेकर यहाँ उपस्थित हो जाना। अगले दिन शिष्य कटोरा लेकर उपस्थित हो गया। गुरु जी ने पूछा, “ क्या दूध आज भी पीने योग्य है?” शिष्य बोला, “नहीं गुरूजी, यह तो कल रात ही फट गया था….लेक...

भारत मे मध्यकालीन इतिहासकार #इरफान_हबीब के वस्त्र उद्योग Vs #कौटिल्य_के_अर्थशास्त्र से #सूत_उद्योग की व्यवस्था कि तुलना

भारत मे मध्यकालीन इतिहासकार #इरफान_हबीब के वस्त्र उद्योग Vs #कौटिल्य_के_अर्थशास्त्र से #सूत_उद्योग की व्यवस्था कि तुलना ----------------------------------------------------------------------------------------------- #एखलाकिये रेडिकल इस्लामिक मध्यकालीन इतिहासकार #इरफान_हबीब का कहना है कि ऐसा समझा जाता है कि अंग्रेजी राज्य के पूर्व भारत में प्रौद्योगिकी एकदम #आदिम अवस्था में थी । लेकिन इस पर #असहमति जाहिर करते हुए #चरखे को आधार बनाकर #ईरान_और_मुसलमानों को #वस्त्र_उद्योग को भारत में आययतित चरखे को आधार मानकर ; एक क्रन्तिकारी परिवर्तन का निष्कर्ष निकालते हैं । और भारतीय देवी देवताओं और राजपुरुषों के अधोवस्त्र और उर्धव्वस्त्र धारण करने की परंपरा को मुग़ल काल के गरीब लोगों से तुलना करते हुए ये निष्कर्ष निकालते हैं कि प्राचीन भारत में वस्त्रोंकी कमी को भारतीय लेखको ने आत्मभ्रम और स्वाभिमान की रक्षा का आधार बनाते हुए , लोगों को दिग्भ्रमित किये थे । कल मैंने मध्यकालीन यात्रावृत्तांतों के जरिये ये बात प्रमाणित की थी कि भारत में आमजन से लेकर राजपुरुष सब एक ही तरह के वस्त्र पहनते थे ।लेकिन ...

#रोचक जानकारी - आपका और हमारा गौरवशाली इतिहास , ब्रिटेन का हिन्दू इतिहास

#रोचक जानकारी -  आपका गौरवशाली इतिहास ब्रिटेन का हिन्दू इतिहास सामान्य व्यक्तियों को अपने दादा-पड़दादा से पूर्व के पूर्वजो के नाम ही याद नही रहते, तो उन्हें इतिहास का स्मरण कैसे होगा ? पूरे देश के इतिहास का भी वही हाल होता है ! केवल वैदिक संस्कृति में ही आरम्भ से आज तक के सारे इतिहास के सूत्र उपलब्ध है ।  इतिहास को पढ़ने का एक ही महत्व होता है, की पूर्व में की गयी गलतियों को  ना दोहराया जाए, ओर अपने इतिहास को गौरवशाली बनाया जाये ।।  ब्रिटेन के इतिहास में रोमन, नार्मन,  एंग्लो-सेक्सन  आदि कई विभिन्न जातियों के लड़ाई झगड़े का अखाड़ा ही ब्रिटेन के इतिहास के रूप में पढ़ाया जाता है । एक सुसंगठित राष्ट्रीय शाशन ब्रिटेन में स्थापित हुए 500-700 वर्ष ही हुए है । उससे पूर्व के ब्रिटेन के इतिहास में केवल उथल पुथल ही भरी हुई है ।। आज तक विद्धान उस इतिहास के एक विशिष्ट सूत्र को नही पकड़ पाए है ।। ब्रिटिश लोगो की भाषा का उद्गम, उनके नगरों के नाम , उनका दर्शन शास्त्र , लोक-कथाएं, राजप्रथा,  साहित्य, छन्दशास्त्र , पुरातत्व अवशेष आदि का तर्कसंगत विवरण आज तक ब्रिटिश लोग...