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Showing posts from February 19, 2017

शिवलिंग

*शिवलिंग* मुस्लिमो और अंग्रेज़ो ने शिवलिंग को गुप्तांग की संज्ञा कैसे दी और अब हम बेवकूफ हिन्दू खुद शिवलिंग को शिव् भगवान का गुप्तांग समझने लगे हैं और दूसरे हिन्दुओ को भी ये गलत जानकारी देने लगे हैं। प्रकृति से शिवलिंग का क्या संबंध है जाने शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है और कैसे इसका गलत अर्थ  (मुस्लिमों) ने निकालकर हिन्दुओं को भ्रमित किया।  कुछ लोग शिवलिंग की पूजा की आलोचना करते हैं.. छोटे छोटे बच्चों को बताते हैं कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते हैं। मूर्खों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..और अपने छोटे'छोटे बच्चों को हिन्दुओं के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते हैं।संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।इसे देववाणी भी कहा जाता है। *लिंग÷* लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है… जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत मे *शिशिन* कहा जाता है। *शिवलिंग÷* शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक…. जैसे पुरुलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष...

हथियार बदल गए है--20

हथियार बदल गए है--20 'इस जगत का उतना नुकसान दुर्जनों की दुष्टता-दुर्जनता ने नहीं किया है जितना सज्जनों की निष्क्रियता ने किया है,अतः हर पल समाज के लिए सक्रिय रहें,।                                       स्वामी विवेकानंद जी  बहुत पहले छोटे-पन पर यह कहानी मेरी नानी सुनाती थी।आप ने भी बचपन मे 'एक नेवले, की कहानी सुनी होगी।इस कहानी से बहुत सारी छोटी-छोटी लोकोक्तिया,भोजपुरी कहावते और लोक-कविताए भी जुड़ी होती थी।वह सब भूल गया पर कुछ-कुछ याद आता रहता है।निश्चित ही कुछ लोगो को याद आ जाएगा।उस नेऊरिया का बच्चा एक  पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था।नेवले ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उसके बच्चे को दे देने के लिए।लेकिन पेड़ उस छोटे से नेवले की बात भला कहां सुनने वाला था।ऊपर से पेड़ ने उसके सिर पर अपना फल गिरा दिया।उस निरपराध का सर भी तोड़ दिया।टप्प-से टपाक से कपार मोर फोड्यो?? हार कर वह बढ़ई के पास गया।उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका बच्चा नहीं दे रहा।भला बढ़ई क...

शिवरात्रि क्यों मनाते हैं..?

🚩शिवरात्रि क्यों मनाते हैं..? 🚩शिवरात्रि पर भगवान शिव को कैसे करें प्रसन्न..?? 🚩आइये जाने #शिवरात्रि का प्राचीन इतिहास..!! 🚩तीनों लोकों के मालिक #भगवान #शिव का सबसे बड़ा त्यौहार #महाशिवरात्रि है। #महाशिवरात्रि #भारत के साथ कई अन्य देशों में भी धूम-धाम से मनाई जाती है। 🚩‘स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में शिवरात्रि के #उपवास तथा #जागरण की महिमा का वर्णन है : ‘‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है । उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और भी दुर्लभ है । लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वशिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है। 🚩शिवलिंग का प्रागट्य!! 🚩पुराणों में आता है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा ‘संसार का स्वामी कौन?’ इस बात पर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई तो देवताओं ने इसकी जानकारी देवाधिदेव #भगवान #शंकर को दी। 🚩भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प...

हमारे ऋषि-मुनियों ने आहार को तीन भागों में बांटा है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने आहार को तीन भागों में बांटा है। राजसिक, तामसिक और सात्विक आहार। आधुनिक मैडिकल साइंस भी इस बात को स्वीकार करती है कि जैसा हम भोजन ग्रहण करते हैं, वैसा हमारे मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर का निर्माण होता है और जैसा न्यूरोट्रांसमीटर का निर्माण होता है उसी के अनुसार हम दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं। इसीलिए कहा गया है कि ‘जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन’। अध्यात्म पथ के साधकों के लिए सात्विक आहार का विधान है। खाना पकाते समय जो भाव बनाने वाले के मन में होते हैं वही भाव खाने में सम्माहित हो जाते हैं। फिर वही खाना जब कोई खाता है तो उसकी मनोवृति भी वैसी ही हो जाती है। तीन प्रकार का खाना होता है। एक जो घर से बाहर ढाबे, होटल या रेस्टोरैंट में खाया जाता है दूसरा जो घर पर मां या पत्नी बनाती है तीसरा जो किसी धार्मिक स्थल पर बनता है। आज के बदलते दौर में लोग घर की बजाय बाहर के खाने को खाना पसंद करते हैं। तो कई लोगों को मजबूरी में बाहर का खाना खाना पड़ता है। घर से बाहर ढाबे, होटल या रेस्टोरैंट में खाना मिलता है वो खाना बनता है धन कमाने की कामना से इसलिए खाने वाले पर भी ऐसा ही प्रभा...

🚩 🙏 ।।वन्दे मातरम्।। 🙏 🚩 ---:श्री राजीव दीक्षित वाणी:---

🚩 🙏 ।।वन्दे मातरम्।। 🙏 🚩    ---:श्री राजीव दीक्षित वाणी:--- 01 "स्वदेशी एक ऐसा गहरा दर्शन है जो किसी भी देश को अपने पैरों पर खड़ा कर सकता है।" 02 "अगर आप विदेशियों पर निर्भर हैं, प्रावलम्बी हैं तो आप दुनिया में कोई ताकत हासिल नहीं कर सकते।" 03 "मैं भारत को भारतीयता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उसी काम में लगा हुआ हूँ। 04 "केवल स्वदेशी नीतियों से ही देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है।" 05 "15 अगस्त 1947 को सिर्फ कानून के पर सत्ता का हस्तांतरण हुआ था, स्वतंत्रता नहीं आई हैं, स्वतंत्रता का मतलब होता है अपने द्वारा बनाये गये तंत्र में जीना, ना कि विदेशी तंत्र में, लेकिन 15 अगस्त 1947 के बाद कोई भी अपना तंत्र नहीं बना।" 06 "अंग्रेजो ने जो कानून इस देश को लूटने ओर बर्बाद करने के लिये बनाये थे, वो कानून आज भी चल रहे है तो मैं कैसे मान लू कि यह देश आजाद हो गया हैं।" 07 "भारत का संविधान अंग्रेजो का बनाया हुआ 'Government of India Act 1935' हैं जो भारत के लोगों के साथ धोखा हैं।" 08 "भार...

चौहान_राजपूत

#चौहान_राजपूत मनीषा सिंह की कलम से वामपंथी का लिखा झूठा इतिहास : जिसे हम आज तक पढ़ा रहे हैं इसे पूरा पढ़ने का सब्र रखें, और अपने आने वाली पीढ़ी को सच्चाई से सामना कराएं, हमे जो झूठ विरासत में मिला, वो झूठ से आने वाली पीढ़ी को आज़ाद कराएं! हारा हुआ मनुष्य अपशिष्ट भी खाने को विवश होता है … विजयी के सामने अपने घुटने टेक उसकी हर अपमानजनक धौंस को पीने को विवश होता है… उसके हर झूठ हर गन्दगी को सर पर ओढ़ने को मजबूर होता है, प्राण को बचाने की कीमत पर वो अपना सब कुछ दांव पर रख देता है I तलवार सच तो काटकर दफ़न कर देती है !! आजतक भारतीयो को इतिहास में पढ़ाया गया है और आज भी पढ़ाया जा रहा है कि हम हिन्दू हमेसा कमज़ोर थे कायर थे एवं आपस में ईर्ष्या द्वेष रखते थे राजपूत राजा कभी एक नही हुए जिस वजह मलेच्छ हमलावरों ने 800 वर्ष शसन किया यह कितना असत्य हैं पिछले कुछ वर्षो में मैंने सोशल मीडिया पर प्रमाण कर चुकी हूँ एवं हमारी संगठन हिन्दवी स्वराज्य सेना भी ज़मीनिस्तर पर इतिहास शोध की अति महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं कॉन्वेंट पाठशालाओं में काले अंग्रेजों को प्राइवेट ट्यूशन प्रदान कर कॉन्वेंट पाठशालाओं के पाठ्...

स्वर्णिम_भारत_का_एक_दृश्य

सोशल मीडिया के माध्यम से आजकल गप्प और तथ्यरहित बातों को इतिहास बता कर प्रस्तुत किया जा रहा है। ऐसी पोस्टों में भ्रामक या अधूरे तथ्य देकर कोई बात सिद्ध की जाती है । दूसरी तरफ कुछ लोगों का प्रयास होता है सच्चे तथ्यों को सामने लाना, इसी क्रम में आज दो लेखकों की पोस्ट प्रस्तुत है। पहला भाग प्राचीन भारत से सम्बन्ध रखता है तो दूसरा भाग अपेक्षाकृत नवीन भारत से। पहला हिस्सा त्रिभुवन सिंह की वॉल से उड़ाया है और दूसरा भाग आनंद कुमार जी की वॉल से । इनको पढ़कर प्राचीन बैभव और नवीन तकनीक दोनों पर आपकी जानकारी बढ़ेगी । #स्वर्णिम_भारत_का_एक_दृश्य : तेवेर्निर बंजारा समुदाय का वर्णन 350 साल पूर्व वर्णन किया है । 350 साल पूर्व उसने यातायात के लिए बंजारों का वर्णन किया है जो चार तरह के होते थे जो सिर्फ एक ही वस्तु का ट्रांसपोर्ट एक स्थान से दूसरे स्थान पर करते थे, और जीवन भर सिर्फ यही व्यवसाय करते थे। इन चार वस्तुओं में ज्वार बाजरा मक्का , चावल, दलहन, और नमक को देश के अंदर और बाहर भेजने के लिए करते थे । एक कारवां में 10,000 से 12,000 तक बैलगाड़ियां होते थे। उनके नायकों को राजकुमार कहा जाता था जो गले...

सम्राट अशोक मौर्य

सम्राट अशोक मौर्य सबसे पहले पाश्चात्य विद्वान् विलिमय जॉन्स ने ही ग्रीक आक्रान्ता सिकन्दर (३२६-३२५ई पू ) के समकालीन भारतीय सम्राट सैंड्रोकोट्टस को चन्द्रगुप्त मौर्य स्वीकार किया था उसके बाद सभी पाश्चात्य विद्वान् और तदानुयायी भारतीय विद्वान् भी सिकन्दर के समकालीन चन्द्रगुप्त मौर्य मान लिया है । उसी प्रकार जेम्स प्रिंसप नामक पाश्चात्य विद्वान् ने ही सबसे पहले २५८ ई पू के प्रियदर्शी के शिलालेखों को पढ़कर अशोक मौर्य घोषित किया था उसके बाद उसका सभी अंधानुकरण कर रहे हैं । भ्रांति फैलायी गयी यूरोपियन इतिहासकार द्वारा सिकन्दर के आक्रमण के समय ३२६-३२५ ई में भारत का सम्राट जेण्ड्रमस था जिसका वास्तविक नाम चंद्राश्री जिसे अंतिम नन्द वंशी सम्राट धनानन्द प्रमाण करने लगे हैं । सैंड्रोकोट्स को मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य घोषित कर रहा है जबकि धनानन्द का जेंड्रमस से और चन्द्रगुप्त का सैंड्रोकोट्स से कोई साम्य नही होता यहाँ तक की नामों तक में साम्य नहीं है यही नहीं किसी भी यूनानी लेखक ने चन्द्रगुप्त के महान् गुरु आचार्य कौटल्य का वर्णन नही किया है (यदि किया हो तो कोई सिद्ध करके बताये किस ...

इतिहास के पन्नों से : अलुबेरनी का तात्कालिक समय में विदेशियों (मलेक्षों ) और हिंदुओं के बीच मतभेद के कारणों का वर्णन :

इतिहास के पन्नों से : अलुबेरनी का तात्कालिक समय में विदेशियों (मलेक्षों ) और हिंदुओं के बीच मतभेद के कारणों का वर्णन : Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxcxxxxxxxxxx अलुबेरनी का भारर्त  ;  एडवर्ड सचौ के अनुवादित पुस्तक से उद्धृत 1030 पेज 17-22 _____________________-___________________ किसी गंभीर विषय पर बात करने से पहले उसके बारे में  पर्याप्‍त जानकारी होना चाहिए और इसके बिना भारतीयों के मूलभूत चरित्र को समझना मुश्किल है। पाठकों को अपने दीमाग में  हमेशा ये बात रखनी चाहिए कि हिंदू हमलोगों से हर बात में जुदा हैं। ऐसी कई बातें हैं, जो मुसलमानों को हिंदुओं से अलग करती हैं। पहला, हिंदू हर उन बातों में हमसे जुदा हैं, जो बाकी देशों में आम बात है। पहले भाषा की बात करते हैं। अन्‍य देशों की तरह यहां की भी भाषा अलग है और इसे समझने के लिए संस्‍कृत सीखना जरूरी है। पर, यह उतना आसान नहीं है। यहां एक ही चीज को कई नामों से संबोधित किया जाता है(पर्यायवाची) । एक ही शब्‍द का प्रयोग कई चीजों के लिए होेता है। किसी भी शब्द का अर्थ आप तब तक नही समझ सकते जब तक आपको पता न हो कि  उस ...

आक्रमण के हथियार बदल गए है-भाग0

आक्रमण के हथियार बदल गए है-0 ''छोटी-छोटी चीजो का ध्यान रखो बड़ी चीजे खुद होती है।,,        'फ्रांस की एक कहावत,    अपने सम्प्रदाय को बढाने,स्थापित करने के लिए पहले जेहाद,और क्रूसेड युध्दक हथियारों से होते थे।बिलकुल दो राज्यो की तरह यह युद्द होते थे।मरे,कटे,घायल सैनिक,टूटे-कटे पड़े देह।आमने-सामने की जंग के उपरान्त हारे हुये मजहब-सम्प्रदाय-संस्कृति के पूजा-जीवन शैली-आस्था स्थलों को तोड़ा जाता था।राज्य का कब्जेदार अपने मजहब में जनता को मार-मार कर धर्मांतरित करा लेता था।पिछले एक हजार साल से गुलाम हिंदूस्तान के करोड़ो लोगो को जबरदस्ती मतान्तरित करा लिया गया।पहले 800 सालो तक मुस्लिम बनाये गये बाद के 190 सालो तक शासकीय संरक्षण में ईसाई बनाये गए।आजादी के बाद जब मजहब ने हजारो साल पुराने राष्ट्र को बाँट कर अपने लिए एक अलग हिस्सा ले लिया।आजाद हिंदुस्तान में जेहाद,क्रूसेड का तरीका बदल लिया।लेकिन आक्रमण जारी है।समय के साथ अस्त्र,शस्त्र,युद्द की रणनीतियाँ और तरीके बस बदल गए है।इस बार मतांतरण के लिए तीनो ही कट्टर संगठन लग गए थे।मजहब,रिलीजन और कम्युनिज्म।उनके हथियार निहा...

भक्ति देवी की प्राकट्य होने के प्रारम्भीक लक्ष्ण :-

भक्ति देवी की प्राकट्य होने के प्रारम्भीक लक्ष्ण :- १. सबसे पहले आप में हरि गुण , लीला , धाम , रुप को जानने और सुनने की उत्कंठा जाग्रृत होगी | २. आपको हरि और हरि गुरु कथा में मन लगने लगेगा | ३ हरि पद संकिर्तन में मन लगने लगेगा | आप काम करते हुये | हरि गुण गीत , पद ही गुणगुणाऐगें | और ये क्रम बढ़ता जाऐगा | ४. आप बहिर्मुखी से अंतर्मुखी होने लगेंगें | आप टीवी , सिनेमा और अन्य संसारिक बातो में रुची लेना कम करने लगेगें | और एक दिन विल्कुल ही इन चीजों मे दिलचस्पी खत्म हो जाऐगी | कोइ सुनायेगा जबरदस्ती तो उसको बाहर ही बाहर रहने देंगें | ५. हमेशा इंतजार रहेगा की कब कोइ हरि कथा सुनावे , कहे और सुनने में आनन्द आने लगेगा | ६. आप इंतजार करेंगें की कब संसारी कार्य औफिस का या व्यापार का समाप्त हो दिन ढले और एकातं पायें उनको याद करने के लिय | उनको सुनने के लिये | ७ . निश्चिन्तता , निर्भिकता जीवन में उतरती जाऐगी | ८. सारी चिन्ता परेशानी सुख एवं दु:ख की फिलीगं दुर होती जाएगी | परेशानी दुख भी आप हसते हूए काट लेंगें | हरि पल पल आपके साथ हैं महसुस होगा | ९   फाइवस्टार होटल में भी जान...

💥संतों की वाणी.....💥

💥संतों की वाणी.....💥 ऋषिवर - हॆ वत्स एक गाय और उसका एक बछडा घनघोर जंगल से गुजर रहे थे तभी अचानक दोनो बिछड़ गये और गाय उसको तलाशते हुये नदी के उस पार जा पहुँची और बछडा घनघोर जंगल मे अकेला पड़ गया और भटक गया।       अगले दिन वो बछडा जंगल मे शेर की गुफा के बाहर बैठा हुआ था तभी वहाँ से एक भेडिया गुजर रहा था वो उसके पास आया और वो उस बछड़े के पास गया और बोला की तुम मुझे एक बात बताओ इस घनघोर जंगल मे तुम अकेले यहाँ बैठे हो और तुम्हे कोई डर नही लग रहा है ? फिर उसने कहा , खैर छोडो , मुझे तो बड़ी भूख लगी है और मै तुम्हे खाऊंगा तो बछड़े ने कहा की आप खाना चाहो तो भले ही खा लो परन्तु मै तो इस जंगल के राजा का भोजन हूँ और उन्होंने ही मुझे यहाँ बिठाया है और मुझे यही रुकने को कहा है और वो अभी आते ही होंगे ! हॆ वत्स जैसे ही भेडिये ने सुना की ये तो शेर का आहार है तभी तो इतनी निश्चिंतता से यहाँ बैठा है , शेर से कौन दुश्मनी मोल ले और वो वहाँ से चला गया ! हॆ वत्स पूरे दिनभर यही क्रम चलता रहा हिंसक जानवर और भेडिये आते रहे और वो छोटा सा बछडा उनसे बचता रहा और फिर अँधेरा होने लगा और फिर वहा...

हमें हमारे हीरो चाहिए

हमें हमारे हीरो चाहिए स्टॉलिनग्राड की लड़ाई सन 1942-43 के जाड़े में लड़ी गई थी | करीब तीस साल बाद 1973 में इसी लड़ाई के एक किरदार, एक रूसी स्नाइपर बन्दूकधारी वसीली जैत्सेव ने एनिमी एट द गेट्स नाम की किताब लिखी थी | सत्य घटना और असली किरदार पर आधारित इस किताब पर, इसी नाम (एनिमी एट द गेट्स) से 2001 में फिल्म बनाई गई थी | फिल्म के शुरूआती दृश्य में रूसी स्टॉलिनग्राड की लड़ाई हार रहे होते हैं और हार रहे सिपहसलारों से मिलने एक बड़ा फौजी अफसर आया होता है | वो हारने वाले एक फौजी से, अकेले कमरे में बिठा कर पूछता है कि आखिर हार कर आये कैसे ? हारा सिपहसलार मुश्किलें गिनाने लगता है | हारा सिपहसलार कहता है दुश्मनों के पास मशीनगन तोपें हैं, बहुत से सिपाही, रसद-सर्दियों के कपड़े सब है | हमारे पास क्या था ? जवाब मिलता है, तुम्हारे पास घुटने ना टेकने की ज़िम्मेदारी थी ! आखरी सिपाही और आखरी गोली तक तुम लड़े कैसे नहीं ? इतना कहकर सीनियर अफसर जूनियर के सामने एक पिस्तौल रखकर कमरे से बाहर निकल जाता है | बाहर वो बाकी सिपहसालारों की परेड ले ही रहा था कि कमरे से गोली की आवाज आती है | सब समझ जाते हैं कि हार ...

विश्वव्यापी श्रीराम कथा

विश्वव्यापी श्रीराम कथा श्रीराम कथाकी व्यापकता को देखकर पाश्चात्य विद्वानोंने रामायण को ई पू ३०० से १०० ई पू की रचना कहकर काल्पनिक घोषित करने का षड्यंत्र रचा , रामायण को बुद्धकी प्रतिक्रिया में उत्पन्न भक्ति महाकाव्य ही माना इतिहास नहीं । तथाकथित भारतीय विद्वान् तो पाश्चात्योंसे भी आगे निकले पाश्चात्योंके इन अनुयायियोंने तो रामायण को मात्र २००० वर्ष (ई की पहली शतीकी रचना ) प्राचीन माना है । इतिहासकारोंने श्रीरामसे जुड़े साक्ष्योंकी अनदेखी नहीं की अपितु साक्ष्योंको छिपाने का पूरा प्रयत्न किया है , जो कि एक अक्षम्य अपराध है । भारतमें जहाँ किष्किन्धामें ६४८५ (४४०१ ई पू का ) पुराना गदा प्राप्त हुआ था वहीं गान्धार में ६००० (४००० ई पू ) वर्ष पुरानी सूर्य छापकी स्वर्ण रजत मुद्राएँ । हरयाणा के भिवानी में भी स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुईं जिनपर एक तरफ सूर्य और दूसरी तरफ श्रीराम-सीता-लक्ष्मण बने हुए थे । अयोध्यामें ६००० वर्ष पुरानी (४००० ई पू की ) तीन चमकीली धातु के वर्तन प्राप्त हुए ,दो थाली एक कटोरी जिनपर सूर्यकी छाप थी । ७००० वर्ष पुराने (५००० ई पू से पहले के) ताम्बे के धनुष बाण प्राप्त ...

शान्ति और सुरक्षा का रास्ता:इतिहास

शान्ति और सुरक्षा का रास्ता:इतिहास युगों से ही भूत-प्रेत सारी दुनियां में मनुष्य के लिए डर,रहस्य और समस्याओं के कारण हैं।पूरे विश्व में अलग-अलग हिस्सो में भूत झाड़ने-उतारने और भगाने के लिए बहुत सारे तरीके आजमाए जाते हैं।चीन में 'ची,शक्ति है..ताओवाद तो अफ्रीका के कबीले 'ऊलू,..और बूशु पद्दति अपनाते हैं..."जुल्लु, यूरोप की मशहूर पद्दति है।सिद्द,शाबर मंत्र-ओझा-गुनिये-और तांत्रिक-पुजारी लगभग हर सभ्यता और सम्प्रदाय समुदाय में मान्य रूप में मौजूद हैं। "एक्सटॉर्शन, रोमन चर्चेज से मान्यता प्राप्त पद्दति है..जो सारे पादरी 'देह,से भूत निकालने के लिए करते हैं।फिल्म-जगत ने इस विषय पर इतनी 'मूवी,बनाई है कि हाली-वुड को ही आप लगातार 1 साल में नही खत्म कर पाएंगे।हमारे भारत में तो गली-गली इस विषय के तांत्रिक-मांत्रिक-'विशेषज्ञ, मौजूद हैं...थोड़ा भी चूके तो घर-बिकवा दें। प्रेत उतारने के अपनी धार्मिक-स्थानीय मान्यताओं,विश्वासों के अनुसार तरह-तरह के मन्त्र-श्लोक-वर्सेज,आयतें, होती है।जिनको काफी पहले से उपयोग में लाया जाता रहा है।अमूमन वह कोई बुजुर्ग जानता होता है।मरने से पूर...