चौहान_राजपूत
#चौहान_राजपूत
मनीषा सिंह की कलम से वामपंथी का लिखा झूठा इतिहास : जिसे हम आज तक पढ़ा रहे हैं
इसे पूरा पढ़ने का सब्र रखें, और अपने आने वाली पीढ़ी को सच्चाई से सामना कराएं, हमे जो झूठ विरासत में मिला, वो झूठ से आने वाली पीढ़ी को आज़ाद कराएं!
हारा हुआ मनुष्य अपशिष्ट भी खाने को विवश होता है … विजयी के सामने अपने घुटने टेक उसकी हर अपमानजनक धौंस को पीने को विवश होता है… उसके हर झूठ हर गन्दगी को सर पर ओढ़ने को मजबूर होता है, प्राण को बचाने की कीमत पर वो अपना सब कुछ दांव पर रख देता है I तलवार सच तो काटकर दफ़न कर देती है !!
आजतक भारतीयो को इतिहास में पढ़ाया गया है और आज भी पढ़ाया जा रहा है कि हम हिन्दू हमेसा कमज़ोर थे कायर थे एवं आपस में ईर्ष्या द्वेष रखते थे राजपूत राजा कभी एक नही हुए जिस वजह मलेच्छ हमलावरों ने 800 वर्ष शसन किया यह कितना असत्य हैं पिछले कुछ वर्षो में मैंने सोशल मीडिया पर प्रमाण कर चुकी हूँ एवं हमारी संगठन हिन्दवी स्वराज्य सेना भी ज़मीनिस्तर पर इतिहास शोध की अति महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं कॉन्वेंट पाठशालाओं में काले अंग्रेजों को प्राइवेट ट्यूशन प्रदान कर कॉन्वेंट पाठशालाओं के पाठ्यक्रम से मिल रही गुलामी भरा शिक्षा पद्धति का खंडन कर असली इतिहास रख रहे हैं जिससे कम से कम मानसिक धर्मान्तार्ण पर प्रतिबन्ध कुछ हद तक लगेगा ।
#चौहान_साम्राज्य अतिप्राचीन साम्राज्य हैं चौहान राजपूतों ने क्षात्र धर्म का पालन करते हुए १५,००० वर्षो से (15,000) प्राचीन काल से मध्यकालीन काल तक भारतवर्ष को आक्रांताओं से रक्षा किया मुग़ल, तुर्क, ग़ज़नी , पर्शिया , मिश्र इत्यादि के सुल्तानों को भारतवर्ष की छाती पर पैर नही रखने दिया ।
#मुट्ठीभर_राजपूत_सेना_ने तुर्कों की भाड़ी सेना को खदेड़ा था ।
महाराज अजयराज चौहान के पुत्र अर्णोराज चौहान सन ११३०-११५१ ईस्वी (1130-1151) तक राज किया इन्हें अनालादेव , अन्ना एवं अनाका नाम से भी जाने जाते हैं ।
अर्णोराज की ख्याति उपलब्धि को देखते हुए उन्हें महाराजाधिराज , नरपति , परमेश्वर श्रीमद इत्यादि उपाधि से सम्मानित किया गया हैं जिनका उल्लेख
१) सन ११३९ ईस्वी (1139 A.D ) रेवासा के दो शिलालेख में अर्णोराज को महाराजाधिराज की उपाधि से सम्भोधित किया गया हैं,
२) सन ११४० ईस्वी (1140 A.D) कन्नड़ के चक्रेसवरा द्वारा लिखित ग्रन्थ सतकाब्र्हद्भास्य नमक लिखित ग्रन्थ में अर्णोराज को नरपति की उपाधि दिया गया हैं ,
३) सन ११४१ ईस्वी (1141 A.D) में अवस्यकनिर्युक्ति की पांडुलिपि पुष्पिका में अर्णोराज को परमेश्वर श्रीमद की उपाधि से सम्भोधित किया गया हैं ।
महाराज अर्णोराज की इस ख्याति के पीछे उनके सौर्यगाथा एवं पराक्रमी कार्य का योगदान हैं जो चौहान प्रसस्ती में आज भी मिलता हैं इनकी किर्तियों में शामिल कुछ बिन्दुओं को पहले मैं यहाँ लिखना चाहूँगी फिर विवरण दूंगी -:
प्रथम, अन्ना सागर पर तुर्कों को बुरी तरह परास्त कर घोड़े छीन लिए। वे 20 वर्ष तक सपादलक्ष की और झांक भी नहीं सके।
द्वितीय, सिंधु एवं सरस्वती नदी जहाँ से आक्रमणकारियों की आने की सम्भावना होती थी एवं जहाँ से आक्रमणकारी प्रवेश करते थे येही मार्ग चुनते थे इसलिए भारतवर्ष की सुरक्षा के लिए in नदी के तट पर घुड़सवार सैनिक एवं पैदल सैनिक नियुक्त किये थे भाड़ी हथियारों के साथ ।
तृतीय, हरितनाका देश पर भगवा ध्वज फहराने हेतु सफल युद्ध अभियान किया मैं यहाँ एक बात स्पस्ट करना चाहूँगी हरितनाका देश भारतवर्ष का हिस्सा नहीं था बहुत से इतिहासकारों ने हरितनाका को हरियाणा कहा हैं परन्तु अगर हरितनाका हरियाणा हैं तो इतिहासकारों ने इसे Haritanaka Country क्यों कहा हरियाणा आदिकाल से भारत्वश का हिस्सा हैं कोई अलग देश नही था एवं हरियाणा का प्राचीन नाम ब्रह्मवर्त था यह वामपंथी इतिहासकारों की चलाकी थी बहुत खोजबीन के बाद पता चला इस पुस्तक Vide age of India Edition. 1980 एवं आंध्र इतिहासकारों के पुस्तक से मिला मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्र का प्राचीन नाम हरितनाका था वामपंथी इतिहासकारों ने एवं छद्दम हिन्दू इतिहासकारों ने बड़ी चालाकी से १०वि से १२वि सताब्दी के मध्य किये गये सारे दिग्विजय युद्ध अभियानों को मिटा दिया गया एवं विदेशी देशो के विरुद्ध किये गये युद्ध अभियान को इसलिए मिटा दिया गया जिससे वोह यह प्रमाण कर सके भारतवर्ष के सम्राट कायर थे एवं छद्दम हिन्दू इतिहासकारों ने जाती द्वेषपूर्ण भाव से ऐसे इतिहास को कभी सामने नहीं लाये हम सच में ऋणी हैं आंध्र के इतिहासकारों की एवं उन तमाम इतिहासकारों की जिसने निष्पक्ष इतिहास लिखा ।
Battle of Annasagar-:
ग़जनी शासक बहराम शाह ने फिर से अजमेर पर आक्रमण किया अजयराज से परास्त होने के बाद ग़जनी के शासक ने फिर से सैनिक तैयार कर अजयराज के पुत्र अर्णोराज की शासनकाल के समय अजमेर पर आक्रमण किया अन्नासागर नदी के तट पर बहराम शाह की फ़ौज बहुत बड़ी थी फिर भी अर्णोराज को परास्त नहीं कर पाए मुट्ठीभर राजपूत वीरों ने बहराम शाह के फ़ौज पर भाड़ी पड़े एक कहावत हैं “सियार की फ़ौज कितनी भी बड़ी हो पर शेर अकेला ही सियारों पर भाड़ी पड़ता हैं” और भारतभूमि की रक्षा के लिए शेरो की टोली युद्ध कर रहे थे बहराम शाह की सैन्यबल की संख्या का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं अन्ना सागर में पानी का रंग लाल हो गया था एवं नदी में केवल गजनी के सैनिको का शव तैर रहा था (इसके बाद अर्णोराज ने अन्नासागर नदी का शुद्धिकरण करवाया चन्द्र नदी का पानी लेकर अन्नासागर में भर दिया गया) एवं अजमेर की रेतीली धरती पर भाड़ी संख्या में केवल मुस्लिम सैनिको के शव पड़े थे । References Dasharath Sharma Early Chauhan Dynasty (Anasagar lake was later on excavated and filled with the waters of the river Chandra to wash off the stains of Muslim blood, Muslim soldiers died in the shifting sands of Rajasthan, and the bodies of other lying in large numbers along the path leading away from Ajmer were burnt by the villagers who did not like their stinking smell)
इससे हम अनुमान लगा सकते हैं अजमेर की धरती एवं अन्नासागर नदी इस रक्तरंजित युद्ध का साक्षी हैं जहाँ हिन्दू वीरों ने मुस्लिम सेना को ना केवल परास्त किया वरन उन्हें जीवित भी नही छोड़ा अर्णोराज ने बहराम शाह को अपाहिज बना दिया था जिससे वह इस युद्ध को जीवनभर याद कर भारतवर्ष पर आक्रमण करने का दुसाहस ना करे ।
सन ११३८ ईस्वी (1138 A.D) महाराजधिराज अर्णोराज चौहान ने लाहौर पर आक्रमण कर ग़ोरी साम्राज्य के सेनापति अल-दीन को परास्त लाहौर, ज़ाबुल, तक भगवा ध्वज फहराया था इस विषय में विवरण इतना ही मिला चौहान साम्राज्य के प्रभावशाली , पराक्रमी राजा था इन्होने ग़ोरी साम्राज्य को खदेड़ा एवं लाहौर से ग़ोरी के सेनापति प्राण दान मांग कर ग़ोरी साम्राज्य की राजधानी फिरोजकोह (Firozkoh) भाग गया ।
महाराजधिराज अर्णोराज चौहान ने तुर्क साम्राज्य को कुचलते हुए मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्र पर सफल युद्ध अभियान कर भगवा ध्वज लहराया था । महाराजधिराज अर्णोराज चौहान का तुर्क शासक गहियत-मासुद के साथ युद्ध सन् ११४८ ईस्वी (1148 A.D) में हुआ था। गहियत-मासुद तुर्क के क्रुर शासक थे जिन्होंने पैशाचिक सेना के बल पर सम्पूर्ण एशिया के अधिकतर भू-भाग इस्लाम के क्रूरता का शिकार बन गया था , भारतवर्ष के नागौर राज्य को रौंधने का प्रयास मासुद की मृत्यु का कारन बन गया , महाराजधिराज अर्णोराज चौहान की सेना हर हर महादेव के शंखनाद से राजपूत धर्मयोद्धाओं में अलग सी ऊर्जा का संचय हुआ और भिड़त हुई मलेच्छों की सेना से और तुर्क सेना के सेनापति की मृत्यु होगयी एवं मासुद को बंदी बना लिया गया तुर्क की जिहादी सेना को नागौर से खदेड़ा गया एवं भगवा ध्वजा मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्र तक फहराया । (Note on p. 219 Ancient History M.Krishnamacharya)
संदर्भ-:
१) Vide age of India Edition. 1980
२) Dasharath Sharma Early Chauhan Dynasty
३) Note on p. 219 Ancient History M.Krishnamacharya
मनीषा सिंह
मनीषा सिंह की कलम से वामपंथी का लिखा झूठा इतिहास : जिसे हम आज तक पढ़ा रहे हैं
इसे पूरा पढ़ने का सब्र रखें, और अपने आने वाली पीढ़ी को सच्चाई से सामना कराएं, हमे जो झूठ विरासत में मिला, वो झूठ से आने वाली पीढ़ी को आज़ाद कराएं!
हारा हुआ मनुष्य अपशिष्ट भी खाने को विवश होता है … विजयी के सामने अपने घुटने टेक उसकी हर अपमानजनक धौंस को पीने को विवश होता है… उसके हर झूठ हर गन्दगी को सर पर ओढ़ने को मजबूर होता है, प्राण को बचाने की कीमत पर वो अपना सब कुछ दांव पर रख देता है I तलवार सच तो काटकर दफ़न कर देती है !!
आजतक भारतीयो को इतिहास में पढ़ाया गया है और आज भी पढ़ाया जा रहा है कि हम हिन्दू हमेसा कमज़ोर थे कायर थे एवं आपस में ईर्ष्या द्वेष रखते थे राजपूत राजा कभी एक नही हुए जिस वजह मलेच्छ हमलावरों ने 800 वर्ष शसन किया यह कितना असत्य हैं पिछले कुछ वर्षो में मैंने सोशल मीडिया पर प्रमाण कर चुकी हूँ एवं हमारी संगठन हिन्दवी स्वराज्य सेना भी ज़मीनिस्तर पर इतिहास शोध की अति महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं कॉन्वेंट पाठशालाओं में काले अंग्रेजों को प्राइवेट ट्यूशन प्रदान कर कॉन्वेंट पाठशालाओं के पाठ्यक्रम से मिल रही गुलामी भरा शिक्षा पद्धति का खंडन कर असली इतिहास रख रहे हैं जिससे कम से कम मानसिक धर्मान्तार्ण पर प्रतिबन्ध कुछ हद तक लगेगा ।
#चौहान_साम्राज्य अतिप्राचीन साम्राज्य हैं चौहान राजपूतों ने क्षात्र धर्म का पालन करते हुए १५,००० वर्षो से (15,000) प्राचीन काल से मध्यकालीन काल तक भारतवर्ष को आक्रांताओं से रक्षा किया मुग़ल, तुर्क, ग़ज़नी , पर्शिया , मिश्र इत्यादि के सुल्तानों को भारतवर्ष की छाती पर पैर नही रखने दिया ।
#मुट्ठीभर_राजपूत_सेना_ने तुर्कों की भाड़ी सेना को खदेड़ा था ।
महाराज अजयराज चौहान के पुत्र अर्णोराज चौहान सन ११३०-११५१ ईस्वी (1130-1151) तक राज किया इन्हें अनालादेव , अन्ना एवं अनाका नाम से भी जाने जाते हैं ।
अर्णोराज की ख्याति उपलब्धि को देखते हुए उन्हें महाराजाधिराज , नरपति , परमेश्वर श्रीमद इत्यादि उपाधि से सम्मानित किया गया हैं जिनका उल्लेख
१) सन ११३९ ईस्वी (1139 A.D ) रेवासा के दो शिलालेख में अर्णोराज को महाराजाधिराज की उपाधि से सम्भोधित किया गया हैं,
२) सन ११४० ईस्वी (1140 A.D) कन्नड़ के चक्रेसवरा द्वारा लिखित ग्रन्थ सतकाब्र्हद्भास्य नमक लिखित ग्रन्थ में अर्णोराज को नरपति की उपाधि दिया गया हैं ,
३) सन ११४१ ईस्वी (1141 A.D) में अवस्यकनिर्युक्ति की पांडुलिपि पुष्पिका में अर्णोराज को परमेश्वर श्रीमद की उपाधि से सम्भोधित किया गया हैं ।
महाराज अर्णोराज की इस ख्याति के पीछे उनके सौर्यगाथा एवं पराक्रमी कार्य का योगदान हैं जो चौहान प्रसस्ती में आज भी मिलता हैं इनकी किर्तियों में शामिल कुछ बिन्दुओं को पहले मैं यहाँ लिखना चाहूँगी फिर विवरण दूंगी -:
प्रथम, अन्ना सागर पर तुर्कों को बुरी तरह परास्त कर घोड़े छीन लिए। वे 20 वर्ष तक सपादलक्ष की और झांक भी नहीं सके।
द्वितीय, सिंधु एवं सरस्वती नदी जहाँ से आक्रमणकारियों की आने की सम्भावना होती थी एवं जहाँ से आक्रमणकारी प्रवेश करते थे येही मार्ग चुनते थे इसलिए भारतवर्ष की सुरक्षा के लिए in नदी के तट पर घुड़सवार सैनिक एवं पैदल सैनिक नियुक्त किये थे भाड़ी हथियारों के साथ ।
तृतीय, हरितनाका देश पर भगवा ध्वज फहराने हेतु सफल युद्ध अभियान किया मैं यहाँ एक बात स्पस्ट करना चाहूँगी हरितनाका देश भारतवर्ष का हिस्सा नहीं था बहुत से इतिहासकारों ने हरितनाका को हरियाणा कहा हैं परन्तु अगर हरितनाका हरियाणा हैं तो इतिहासकारों ने इसे Haritanaka Country क्यों कहा हरियाणा आदिकाल से भारत्वश का हिस्सा हैं कोई अलग देश नही था एवं हरियाणा का प्राचीन नाम ब्रह्मवर्त था यह वामपंथी इतिहासकारों की चलाकी थी बहुत खोजबीन के बाद पता चला इस पुस्तक Vide age of India Edition. 1980 एवं आंध्र इतिहासकारों के पुस्तक से मिला मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्र का प्राचीन नाम हरितनाका था वामपंथी इतिहासकारों ने एवं छद्दम हिन्दू इतिहासकारों ने बड़ी चालाकी से १०वि से १२वि सताब्दी के मध्य किये गये सारे दिग्विजय युद्ध अभियानों को मिटा दिया गया एवं विदेशी देशो के विरुद्ध किये गये युद्ध अभियान को इसलिए मिटा दिया गया जिससे वोह यह प्रमाण कर सके भारतवर्ष के सम्राट कायर थे एवं छद्दम हिन्दू इतिहासकारों ने जाती द्वेषपूर्ण भाव से ऐसे इतिहास को कभी सामने नहीं लाये हम सच में ऋणी हैं आंध्र के इतिहासकारों की एवं उन तमाम इतिहासकारों की जिसने निष्पक्ष इतिहास लिखा ।
Battle of Annasagar-:
ग़जनी शासक बहराम शाह ने फिर से अजमेर पर आक्रमण किया अजयराज से परास्त होने के बाद ग़जनी के शासक ने फिर से सैनिक तैयार कर अजयराज के पुत्र अर्णोराज की शासनकाल के समय अजमेर पर आक्रमण किया अन्नासागर नदी के तट पर बहराम शाह की फ़ौज बहुत बड़ी थी फिर भी अर्णोराज को परास्त नहीं कर पाए मुट्ठीभर राजपूत वीरों ने बहराम शाह के फ़ौज पर भाड़ी पड़े एक कहावत हैं “सियार की फ़ौज कितनी भी बड़ी हो पर शेर अकेला ही सियारों पर भाड़ी पड़ता हैं” और भारतभूमि की रक्षा के लिए शेरो की टोली युद्ध कर रहे थे बहराम शाह की सैन्यबल की संख्या का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं अन्ना सागर में पानी का रंग लाल हो गया था एवं नदी में केवल गजनी के सैनिको का शव तैर रहा था (इसके बाद अर्णोराज ने अन्नासागर नदी का शुद्धिकरण करवाया चन्द्र नदी का पानी लेकर अन्नासागर में भर दिया गया) एवं अजमेर की रेतीली धरती पर भाड़ी संख्या में केवल मुस्लिम सैनिको के शव पड़े थे । References Dasharath Sharma Early Chauhan Dynasty (Anasagar lake was later on excavated and filled with the waters of the river Chandra to wash off the stains of Muslim blood, Muslim soldiers died in the shifting sands of Rajasthan, and the bodies of other lying in large numbers along the path leading away from Ajmer were burnt by the villagers who did not like their stinking smell)
इससे हम अनुमान लगा सकते हैं अजमेर की धरती एवं अन्नासागर नदी इस रक्तरंजित युद्ध का साक्षी हैं जहाँ हिन्दू वीरों ने मुस्लिम सेना को ना केवल परास्त किया वरन उन्हें जीवित भी नही छोड़ा अर्णोराज ने बहराम शाह को अपाहिज बना दिया था जिससे वह इस युद्ध को जीवनभर याद कर भारतवर्ष पर आक्रमण करने का दुसाहस ना करे ।
सन ११३८ ईस्वी (1138 A.D) महाराजधिराज अर्णोराज चौहान ने लाहौर पर आक्रमण कर ग़ोरी साम्राज्य के सेनापति अल-दीन को परास्त लाहौर, ज़ाबुल, तक भगवा ध्वज फहराया था इस विषय में विवरण इतना ही मिला चौहान साम्राज्य के प्रभावशाली , पराक्रमी राजा था इन्होने ग़ोरी साम्राज्य को खदेड़ा एवं लाहौर से ग़ोरी के सेनापति प्राण दान मांग कर ग़ोरी साम्राज्य की राजधानी फिरोजकोह (Firozkoh) भाग गया ।
महाराजधिराज अर्णोराज चौहान ने तुर्क साम्राज्य को कुचलते हुए मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्र पर सफल युद्ध अभियान कर भगवा ध्वज लहराया था । महाराजधिराज अर्णोराज चौहान का तुर्क शासक गहियत-मासुद के साथ युद्ध सन् ११४८ ईस्वी (1148 A.D) में हुआ था। गहियत-मासुद तुर्क के क्रुर शासक थे जिन्होंने पैशाचिक सेना के बल पर सम्पूर्ण एशिया के अधिकतर भू-भाग इस्लाम के क्रूरता का शिकार बन गया था , भारतवर्ष के नागौर राज्य को रौंधने का प्रयास मासुद की मृत्यु का कारन बन गया , महाराजधिराज अर्णोराज चौहान की सेना हर हर महादेव के शंखनाद से राजपूत धर्मयोद्धाओं में अलग सी ऊर्जा का संचय हुआ और भिड़त हुई मलेच्छों की सेना से और तुर्क सेना के सेनापति की मृत्यु होगयी एवं मासुद को बंदी बना लिया गया तुर्क की जिहादी सेना को नागौर से खदेड़ा गया एवं भगवा ध्वजा मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के क्षेत्र तक फहराया । (Note on p. 219 Ancient History M.Krishnamacharya)
संदर्भ-:
१) Vide age of India Edition. 1980
२) Dasharath Sharma Early Chauhan Dynasty
३) Note on p. 219 Ancient History M.Krishnamacharya
मनीषा सिंह
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