भारतीय गणना पद्धति सर्वश्रेढ
चैत काहे चैत होत है? काहै बैसाख होय बैसाख? धर्मद्रोहियों द्वारा आजकल एक विचित्र सन्देह उत्पन्न किया जा रहा है कि सनातन समुदाय अपने प्राय: सभी पर्वों, उत्सवों आदि को अनुचित समय पर मना रहा है। एतदर्थ ये धर्मद्रोही नक्षत्र-चक्र अथवा राशि-चक्र को महत्त्वहीन घोषित कर केवल ऋतुवर्ष को ही प्रतिष्ठित करना चाहते हैं तथा समस्त पर्वों, उत्सवों आदि को ऋतुवर्ष का ही अनुगामी बनाना चाहते हैं। वे स्वयं तो ज्योतिष के विषय में भ्रमित हैं ही, अन्यों को भी करना चाहते हैं। तो फिर, तनिक ज्योतिष के मूल तत्त्वों की बात हो ही जाए ! आकाश में विद्यमान चमकते पिण्ड “खगोलीय पिण्ड" कहलाते हैं। ये प्रतिदिन पूर्वी क्षितिज से उदित होकर आकाश में उठते दिखाई देते हैं व अन्तत: पश्चिमी क्षितिज में अस्त हो जाते हैं। खगोलीय पिण्डों की इस “दैनिक गति" से पता लगता है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन कर रही है। अत: ज्योतिष्मान् खगोलीय पिण्डों की गति का अध्ययन “ज्योतिष" है। यह दृक्सिद्ध होता है। अर्थात् भूकेन्द्रित होता है क्योंकि दृक् (आँख/प्रेक्षक) भूस्थित है। ज्योतिष्मान् खगोलीय पि...