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Showing posts from April 23, 2017

भारतीय गणना पद्धति सर्वश्रेढ

चैत काहे चैत होत है? काहै बैसाख होय बैसाख? धर्मद्रोहियों द्वारा आजकल एक विचित्र सन्देह उत्पन्न किया जा रहा है कि सनातन समुदाय अपने प्राय: सभी पर्वों, उत्सवों आदि को अनुचित समय पर मना रहा है। एतदर्थ ये धर्मद्रोही नक्षत्र-चक्र अथवा राशि-चक्र को महत्त्वहीन घोषित कर केवल ऋतुवर्ष को ही प्रतिष्ठित करना चाहते हैं तथा समस्त पर्वों, उत्सवों आदि को ऋतुवर्ष का ही अनुगामी बनाना चाहते हैं। वे स्वयं तो ज्योतिष के विषय में भ्रमित हैं ही, अन्यों को भी करना चाहते हैं। तो फिर, तनिक ज्योतिष के मूल तत्त्वों की बात हो ही जाए ! आकाश में विद्यमान चमकते पिण्ड “खगोलीय पिण्ड" कहलाते हैं। ये प्रतिदिन पूर्वी क्षितिज से उदित होकर आकाश में उठते दिखाई देते हैं व अन्तत: पश्चिमी क्षितिज में अस्त हो जाते हैं। खगोलीय पिण्डों की इस “दैनिक गति" से पता लगता है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन कर रही है। अत: ज्योतिष्मान् खगोलीय पिण्डों की गति का अध्ययन “ज्योतिष" है। यह दृक्सिद्ध होता है। अर्थात् भूकेन्द्रित होता है क्योंकि दृक् (आँख/प्रेक्षक) भूस्थित है। ज्योतिष्मान् खगोलीय पि...

ये विकास क्या बला है? विकास किसे कहेंगे..

ये विकास क्या बला है? विकास किसे कहेंगे.. Written by:- शुभम वर्मा पिछले १० या १५ सालों से “विकास” नाम का शब्द बार बार सुनने में आता है... हर किसी को विकसित होना है. चाहे लोग हो, समाज हो या देश. यह विकास क्या होता है ? यह कभी पता नहीं चल पाया, क्योंकि वो भी खुश नहीं जो गाँव में हैं और वो भी खुश नहीं जो शहर में हैं तथा वो भी खुश नहीं जो विदेश में हैं | फिर विकास के गीत गाकर आखिर मिला क्या , यह सोचने पर मुझे मजबूर होना पढ़ा | सोचा थोडा विकास के विषय में पढता हूँ और जानता हूँ कि विकास आखिर है क्या ? जब पढना शुरू किया तो पता चला के द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह शब्द प्रयोग किया था | जिसमे उन्होंने कहा था- “हम पश्चिम के देश मुख्यतः अमेरिका विकसित देश है और बाकी सब अविकसित या विकासशील देश हैं |” चूँकि यह देश द्वितीय विश्वयुद्ध जीते हुए देश थे तो सभी गुलाम देशों ने या गरीब देशों ने इनकी बात मान ली, तथा वहीँ से यह पैमाना तय हो गया कि विकसित होना मतलब पश्चिम और अमेरिका में जो होता है वैसा होना... और अविकसित वो लोग हैं जो अपना खुद का कुछ करते हैं. इसी से फिर व...

राजनीति राष्ट्रनीति और राजनीतिक विश्लेषकों का राजनेताओं का गहरा पन

राजनीति राजनीति अर्थात जो राज के लिये नीति और नियम बनाते हो। राष्ट्रनीति अर्थात जो राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्र के शक्तिशाली रूप प्रदान करे सभी क्षेत्रों में न कि कुछ भी गलत हो राष्ट्र में तो राजनीति के तरह निंदा निंदा निंदा ओर फिर निंदा????????????????????????????????••• राहनीतिक विश्लेषक वह व्यक्ति जो राजनीति और राजनेताओं के कामो का विवेचना करे। न कि उसी के बारे हमेशा लिखे आज भारत की दशा यह है कि कोई यदि एक या लगातार चुनाव जीतता है तो वह सहज है पर वह जो राष्ट्र के लिये गलत किया हो उसे कोई विवेचना नही करता राजनेताओं का गहरापन आखिर भारत नही बल्कि इंडिया के राजनेताओं को क्या हो गया जो वह हमेशा विदोशी ताकतों के सामने सरंडर कर देता हूं क्या वह इतना मानसिक करजोरी के हालात में है पता नही वह क्यों भूल जाता है कि हम125करोड़ है यदी हम किसी का बहिष्कार कर दे तो उसका जिन दूभर हो जाएगा। क्या हम इतना सोच सकते है कि हम एक शक्तिशाली राष्ट्र में रहते है नही क्यों कि हमे राष्ट्रनायक नही बल्कि राज नेता मिलता हसि जिसे बस ओर बस कुर्सी यानी सत्ता चाहिये। जिसे सत्ता प्रेम है वह देश के लिये कुछ...

महत्वपूर्ण बातें जो जानना जरुरी है जीवन में

🔥  ऊपर जाने पर एक 🔥सवाल ये भी पुछा जायेगा की अपनी अँगुलियों के नाम बताओ, 🔥जवाब:-  अपने हाथ की छोटी अगुली से शुरू करें (1)जल (2) पथ्वी                         (3)आकाश (4)वायू (5) अग्नि                               🔥🔥🔥 ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी  🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 5 जगह हंसना  करोड़ो पाप के बराबर है📣 1.शमशान में 2.अर्थि के पीछे           3.शौक में 4.मन्दिर में 5.कथा में   ✳सिर्फ 1बार भेजो  बहुत लोग  इन पापो से बचेंगे  ।। 💓अकेले हो?     💗 परमात्मा को याद करो 💓परेशान हो?     💗 ग्रँथ पढ़ो. 💓 उदास हो?     💗कथाए पढो. 💓 टेन्शन मे हो?     💗 भगवत गीता पढो. ♥फ्री हो? 💞 अछ्छी चिजे फोरवार्ड करो  💞                           ...

महाराणा कुम्भा भाग-1

महाराणा कुम्भा भाग-1 मनीषा सिंह की कलम से देश के इतिहास में ऐसा राजा न कभी हुआ और न कभी होगा। यकीनन इस राजा ने केवल युद्ध की भूमि ने विजयगाथाएं ही नहीं रचीं, बल्कि  साहित्यव, कला, संगीत और संस्कृेति के क्षेत्र में जो रचा, उसे देखकर आज भी दुनिया गश खा जाती है। अनोखी है इस राजा की इतिहास। महाराणा कुम्भा का जीवन परिचय" दुनिया जिन सात महाद्वीपों बंटी हुई है, उनमें एशिया सबसे बड़ा महाद्वीप है। एशिया में भारत, चीन, रूस जैसी विशाल और प्राचीन सभ्ययताएं आज के आधुनिक वैश्विक दौर में भी अपनी एक खास अहमियत रखती हैं। एशिया जितनी भौगोलिक संपदा, प्राकृतिक विवधता, धर्म, दर्शन, कला-संस्कृाति, साहित्यत और विराट ज्ञान वैभव पूरी दुनिया में कहीं नहीं रहा। यकीनन यहां एक ओर बेखौफ जांबाज योद्धा और लड़ाके रहे, जिन्होंने अपनी तलवार के दम पर पूरी दुनिया को चुनौती दी, तो वहीं दूसरी ओर ऐसे महान शासक भी रहे, जिनके विशाल साम्राज्यों की आज भी दुनिया में तूती बोलती रही, और उनके राज्य में निर्मित हुए कला संस्कृति के नायाब नमूने आज भी पूरे विश्व को हैरत में डालते हैं। ऐसे ही देश के एक ऐसे राजा रहे जिसने युद्ध की ...

🔥 🙏 *।।वन्दे गौ मातरम्।।* 🙏 🔥 *देशी गाय और विदेशी (जर्सी, होलेस्टियन) मे अंतर जानकार दंग रह जाएंगे।*

🔥 🙏 *।।वन्दे गौ मातरम्।।* 🙏 🔥 *देशी गाय और विदेशी (जर्सी, होलेस्टियन) मे अंतर जानकार दंग रह जाएंगे।* *स्वदेशी के प्रखर प्रवक्ता श्रीराजीव दीक्षितजी* *आप सब जानते है artificial insemination में ये गुंजाइश है कि किसी भी जानवर का जीन चाहे घोड़े का चाहें सूअर का उसमे डाल सकते है! तो जर्सी को सूअर से विकसित किया गया है!* *कृप्या बिना पूरी post पढ़ें ऐसी कोई प्रतिक्रिया ना दें! कि अरे तुमने गाय मे भी स्वदेशी -विदेशी कर दिया! अरे गाय तो माँ होती है तुमने माँ को भी अच्छी बुरी कर दिया! लेकिन मित्रो सच यही है कि ये जर्सी गाय नहीं ये पूतना है ! पूतना की कहानी तो आपने सुनी होगी भगवान श्री कृष्ण को दूध पिलाकर मारने आई थी वही है ये जर्सी!* *सबसे पहले आप ये जान लीजिये की स्वदेशी गाय और विदेशी जर्सी (सूअर) की पहचान क्या है? देशी और विदेशी को पहचाने की जो बड़ी निशानी है वो ये की देशी गाय की पीठ पर मोटा सा हम्प होता है जबकि जर्सी  की पीठ समतल होती है! आपको जानकर हैरानी होगी दुनिया में भारत को छोड़ जर्सी का दूध कोई नहीं पीता! जर्सी सबसे ज्यादा डैनमार्क, न्यूजीलैंड आदि देशो में पायी जाती है ...

शीतला माता, चेचक टीका, ब्राह्मण और सर अर्नोल्ड

शीतला माता, चेचक टीका, ब्राह्मण और सर अर्नोल्ड Written by:- डॉक्टर लीना मेहंदले वर्ष 1802 में इंग्लैड के श्री जेनर ने चेचक के लिए वैक्सीनेशन खोजा। यह गाय पर आए चेचक के दानों से बनाया जाता। लेकिन इससे दो सौ वर्ष पहले से भारत में बच्चों पर आए चेचक के दानों से वैक्सीन बनाकर दूसरे बच्चों का बचाव करने की विधि थी। इस बाबत दसेक वर्ष पहले विस्तार से खोजबीन और लेखन किया है इंग्लैंड के श्री आरनॉल्ड ने। यह लेख उसी अध्ययन की संक्षिप्त प्रस्तुति है। कुछ वर्ष पहले मुझे पुणे से डॉ. देवधर का फोन आया, यह बताने के लिए वे अमेरिकन जर्नल फॉर हेल्थ साइंसेज के लिए एक पुस्तक की समीक्षा कर रहे हैं। पुस्तक थी लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आरनॉल्ड लिखित "कोलोनाइजिंग बॉडी"। पुस्तक का विषय है कि प्लासी की लड़ाई अर्थात्‌वर्ष 1756 से लेकर 1947 तक. अपने राजकाल में अंग्रेजी राज्यकर्ताओं ने भारत में प्रचलित कतिपय महामारियों को रोकने के लिए क्या-क्या किया। इसे लिखने के लिए लेखक ने अंग्रेजी अफसरों के द्वारा दो सौ वर्षों के दौरान लिखे गये कई सौ डिस्ट्रिक्ट गजेटियर और सरकारी फाइलों की पढ़ाई की और जो जो पढ़ा...

ब्रह्मकुमारी_या_भ्रमकुमारी

#ब्रह्मकुमारी_या_भ्रमकुमारी 'ओम् शान्ति', 'ब्रह्माकुमारी'... हम लोगों ने छोटे-बड़े शहरों में आते-जाते एक साइन बोर्ड लिखा हुआ देखा होगा *'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय'* तथा मकान के ऊपर एक लाल-पीले रंग का झंडा लगा हुआ भी देखा होगा, जिसमें अंडाकार प्रकाश निकलता हुआ चित्र अंकित होता है। इस केन्द्र में व आसपास ईसाई ननों की तरह सफेद साड़ियों में नवयुवतियाँ दिखती हैं। वे सीने पर *'ओम् शान्ति'* लिखा अंडाकार चित्र युक्त बिल्ला लगाये हुए मंडराती मिलेंगी। आप *विश्वविद्यालय* नाम से यह नहीं समझना कि वहाँ कोई छात्र-छात्राओं का विश्वविद्यालय अथवा शिक्षा केन्द्र है, अपितु *यह सनातन धर्म के विरुद्ध सुसंगठित ढ़ंग से विश्वस्तर पर चलाया जाने वाला अड्डा है।* *स्थापना*:  इस संस्था का संस्थापक *लेखराज खूबचंद कृपलानी* था। इसने अपने जन्म-स्थान *सिन्ध* (पाकिस्तान) में दुष्चरित्रता व अनैतिकता का घोर ताण्डव किया, जिससे जनता में इसके प्रति काफी आक्रोश फैला। तब यह सिन्ध छोड़कर सन *1938 में* कराची भाग गया। इसने वहाँ भी अपना कुकृत्य चालू रखा, जिससे जनता का आक्रोश आसमान...

educational_overtake #तख्तापलट

#educational_overtake #तख्तापलट सीधे काम की बात करते हैं. ये पूरी व्यवस्था को बदलने जैसा नही है, बल्कि उसी व्यवस्था में रहते हुए डबल गेम खेलकर काम करने वाला है... आप जल्दी मैकाले पद्धति को मिटा नही सकते. CBSE /ICSE / state Board रूपी मैकाले सिस्टम को केवल इसके अंदर जाकर ही मिटाया जा सकता है.... गुरूकुल पद्धति बेहतरीन है लेकिन suitable नही वर्तमान भारत के समाज के लिए.... क्योकि ये job oriented नही है.... और मिडिल क्लास को नौकरी ही चाहिये..... पानी में नमक की तरह घुलने वाले सदस्य हों. Step 1-- अपने शहर में अपने जैसे  atleast 20 मेंबर बनायें.( ये सदस्य आपकी तरह flexible होने चाहिये ) बीच में काम ना छोडने वाले. हर सैनिक अपने आप में सेनापति हो. Step 2.  किसी भी कौलेज /यूनिवर्सिटी में अपने मिशन ( mind wash) के लिए आपको higher degrees चाहिये. सदस्य कम से कम मास्टर डिग्री हों तो कौलेज में बडा पद मिलेगा. Step 3. इन सदस्यों को एक secret society की तरह training दें. इन्हे बतायें कि सनातन धर्म को राम सेतु निर्माण में गिलहरी जितनी जरूरत है, लेकिन ये काम याद रखा जायेगा उस गिल...

Historical_Facts ये "तथाकथित आर्य" कहां से आये थे?

#Historical_Facts लंबी पोस्ट है, जिज्ञासु मन ही पढे ★ ये "तथाकथित आर्य" कहां से आये थे? ये विदेशी आर्य, थ्यौरी कब जन्मी और प्राथमिकता से ईरान तथा मध्य एशिया से ही क्यों जुडी है जहाँ से इस्लाम आया, आक्रमणकारी मुसलमान आये ..कहने का तात्पर्य है कि भारत में सर्वाधिक कुख्यात लुटेरे, हत्यारे, शिया आये ...उसी क्षेत्र विशेष से क्यों जुडी है? ये आर्य विदेशी और मूलनिवासी नामक दंतकथा को सिर्फ #वा_क_ई और कसाई ही काम क्यों लेते है , #M_O_D हेतु ही ये दंतकथा सी थ्यौरी बाहर क्यों आती है वो भी जब जब कसाई के हित पर चोट के अंदेशे हो तब ही ... साईबेरियाई और ईरान की तो सीमा ही नहीं जुडती, और ना ही यूरेशिया और ईरान की सीमा जुडती है लेकिन हर बार धिक्कारे जाते आर्यो के मामले में जबरदस्ती तुर्क, ईरान - फारस को किसने जोडा , जोडने को जोडा, लेकिन तुर्क, ईरान / Persia से क्यों ..खास कर इस्लामिक साम्राज्य के आखिरी दिनों में ही ..??? ★ इतिहासकार के गुप्त बाल बनते #इतिहास_हत्याकार इसे ब्रिटिश से जोडते हैं, जिसमें प्रमुख उदाहरण दिया जाता है न्याय व्यवस्था का,,यानि, भारत पर अधिपत्य जमाते ब्रिटिश ने जब अ...

आयरलैंड स्कूल के संस्कृत विभागाध्यक्ष की बौद्धिक नसीहत

आयरलैंड स्कूल के संस्कृत विभागाध्यक्ष की बौद्धिक नसीहत Written by:- Rutger Kortenhost यह लेख उस भाषण का एक अंश है, जिसमें Rutger Kortenhost जो कि आयरलैंड के एक स्कूल में संस्कृत के विभाग अध्यक्ष हैं, उन्होंने वहां के पालकों के साथ एक मीटिंग में व्यक्त किए हैं. उल्लेखनीय है कि यूरोप के बहुत से विश्वविद्यालयों में संस्कृत के अध्ययन और पठन के लिए अलग से पीठ स्थापित हैं. इस लेख में कोर्तेन्होस्ट संस्कृत के बारे में विस्तार से बताते हैं और हमारी आँखें खुली की खुली रह जाती हैं... हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि जिस संस्कृत को भारत के नेहरूवादी कथित प्रगतिशील लोग, "पिछड़ी हुई भाषा", "हिंदूवादी-ब्राह्मणवादी भाषा" बताते हैं... जिस संस्कृत को यहाँ पैदा हुए नव-बौद्ध छाप ब्रेनवाश हो चुके लोग घृणा की दृष्टि से देखते हैं, उस देवभाषा का यूरोप में कैसा सम्मान किया जाता है. पढ़िए इस भाषण के संक्षिप्त अंश... देवियों और सज्जनों, हम यहां एक घंटे तक साथ मिल कर यह चर्चा करेंगे कि जॉन स्कॉट्टस विद्यालय में आपके बच्चे को संस्कृत क्यों पढऩा चाहिए? मेरा दावा है कि इस घंटे के पूरे होन...