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Showing posts from January 12, 2020

रोग के कीटाणु अब अपने भीतर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति पैदा कर रहे है

रोग के कीटाणु अब अपने भीतर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति पैदा कर रहे है जी ।           कृपया ध्यान से पढ़े :- हाल ही में एक अमेरिकन स्त्री की मृत्यु एक ऐसे जीवाणु के संक्रमण से हो गयी ।  जिस पर अब तक ज्ञात सभी ऐंटीबायोटिक बेअसर साबित हुए ।  उसके अंदर मौजूद निमोनिया के जीवाणु ने एक जीन विकसित कर लिया ।   जिसके कारण उस पर वर्तमान एलोपैथी की सभी एंटीबीओटिक फ़ैल हो गयी ।  उस महिला का इलाज़ भारत में हुआ था ।   इस लिए उस जीवाणु की उत्पत्ति भारत से मानी गयी और इसका कारण भारत में सभी एंटीबीओटिक के अत्यधिक प्रयोग को माना गया। ये क्या हुआ इसको समझने के लिए प्रकृति  के सामान्य सिद्धांत को समझ लेते हैं  ।  जहाँ कहीं भी आहार होगा उसको पंचतत्वों (अग्नि,वायु,जल,भूमि,आकाश) में विलीन करने के लिए चारों और से माइक्रोब्स(जीवाणु) सक्रीय हो जाएंगे । और तब तक कार्य करेंगे जब तक विलीनीकरण की क्रिया सम्पूर्ण नहीं हो जाती। उदहारण के लिए यदि हम एक हंडिया में मल भरकर रख देते हैं ,  तो उसमें जीवाणु और कीड़े पैदा हो...

मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति का महत्व *श्रीकृष्ण "जुगनू" मकर संक्रांति का भारतीय जन जीवन में जितना महत्‍वपूर्ण स्‍थान है, वह बनते-बनते हजारों सालों का वक्‍त लगा है। एक मिथक है कि आदमी की आंखों को आसमान पर लगे-लगे कई दिन हो गए। आंखें देखती रही कि सूरज बर्फ को पिघलाकर बहते जल को देखते देखते समंदर तक जाता है... जब भाप बनती है तो बादलों का खोल ओढे फिर अपनी जगह लौटता है मगर पानी उसे फिर समंदर की ओर लेकर जाता है...।  याद कीजिएगा कि इसी से उत्‍तरायण और दक्षिणायन की धारणा बनी। अयन माने रास्‍ता, जैसा कि छांदोग्‍योपनिषद (4, 15, 5) में आया है, यही अर्थ ऋग्‍वेद (3, 33, 7) में मिलता है। संक्रमण से मतलब है रास्‍ते को लांघना। इधर का उधर होना अयन माना गया, यह छह-छह महीने का वक्‍त है। जब आदमी ने बारह महीनों को जान लिया तो इस संक्रमण को भी बारह तरह से जाना गया। इसमें दो अयन की संक्रांतियां मानी गई जिनका नाम राशियों के आधार पर रखा गया, जो कि अनेकों के अनुसार मेसोपोटामियां की उपज बताई गई हैं और भारत में यहां के नामों से ख्‍यात हुईं।  अयन की संक्रांतियां मकर (उत्‍तरायण) और कर्क (दक्षिणायन) के नाम से जान...

जिंदगी की परीक्षा

                जिंदगी की परीक्षा "बेटा! थोड़ा खाना खाकर जा ..!! दो दिन से तुने कुछ खाया नहीं है।" लाचार माता के शब्द है अपने बेटे को समझाने के लिये। "देख मम्मी! मैंने मेरी बारहवीं बोर्ड की परीक्षा के बाद वेकेशन में सेकेंड हैंड बाइक मांगी थी और पापा ने प्रोमिस किया था। आज मेरे आखरी पेपर के बाद दीदी को कह देना कि जैसे ही मैं परीक्षा खंड से बाहर आऊंगा तब पैसा लेकर बाहर खडी रहे। मेरे दोस्त की पुरानी बाइक आज ही मुझे लेनी है। और हाँ, यदि दीदी वहाँ पैसे लेकर नहीं आयी तो मैं घर वापस नहीं आऊंगा।" एक गरीब घर में बेटे मोहन की जिद्द और माता की लाचारी आमने सामने टकरा रही थी। "बेटा! तेरे पापा तुझे बाइक लेकर देने ही वाले थे, लेकिन पिछले महीने हुए एक्सिडेंट .. मम्मी कुछ बोले उसके पहले मोहन बोला "मैं कुछ नहीं जानता .. मुझे तो बाइक चाहिये ही चाहिये ..!!" ऐसा बोलकर मोहन अपनी मम्मी को गरीबी एवं लाचारी की मझधार में छोड़ कर घर से बाहर निकल गया। 12वीं बोर्ड की परीक्षा के बाद भागवत 'सर एक अनोखी परीक्षा का आयोजन करते थे। हालाँकि भागवत सर का विषय गणित था, किन...

हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क:

*एक गोत्र में शादी क्यूँ नहीं..*  *वैज्ञानिक कारण..!*       एक दिन डिस्कवरी पर   जेनेटिक बीमारियों से      सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा कि   जेनेटिक बीमारी न हो   इसका एक ही इलाज है।    और वो है           *"सेपरेशन ऑफ़ जींस"*            मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में   विवाह नही करना चाहिए क्योकि नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नही हो पाता  और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और एल्बोनिज्म होने की 100% चांस होती है .. फिर बहुत ख़ुशी हुई जब उसी कार्यक्रम में ये दिखाया गया की आखिर    *"हिन्दूधर्म"* में      हजारों-हजारों साल पहले             जींस और डीएनए के बारे में                कैसे लिखा गया है ?             हिंदु...

महाराणा कुम्‍भकर्ण: कुम्भा

महाराणा कुम्‍भकर्ण: कुम्भा देश के प्रतापी, कलाप्रिय शासकों में महाराणा कुंभकर्ण या कुंभा (1433-68 ई., जन्म मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी, 1417) का नाम बहुत सम्‍मान से लिया जा सकता है। कुंभा बहुत शिक्षित और साहित्‍य प्रेमी ही नहीं, स्‍वयं साहित्‍यकार था। कुंभा ने कई ग्रंथों की रचना की जिनमें से 16 हजार श्‍लोकों का पांच कोष वाला 'संगीतराज' तो ख्‍यातिलब्‍ध है ही, सूडप्रबंध और स्‍तंभराज, कामराज रतिसार जैसे ग्रंथ भी अल्‍पज्ञात ही सही, मगर उल्लेखनीय है। कुंभा ने 'गीतगोविंद' की रसिकप्रिय टीका और 'चंडीशतक' की वृत्ति लिखी और उसमें अपनी जन्मभूमि चित्तौड़ व कुल की मर्यादाओं को रेखांकित किया। कुंभा के 33 साल के शासन काल में चित्‍तौड और कुंभलगढ में कोई 1700 ग्रंथों की रचना और प्रतिलिपि लेखन का कार्य हुआ। इतना बडा योगदान शायद ही अन्‍य किसी शासक का रहा हो। इनमें संगीत, साहित्‍य, दर्शन, मीमांसा, गणित, धर्मशास्‍त्र सहित तकनीकी विषय भी शामिल हैं।  कुंभा स्‍वयं वल्‍लकी वीणा वादन में निपुण था। शिवाराधक होते हुए भी कुंभा ने विष्‍णु की महिमा के गान में अपने को लगाए रखा। अपने युग में...