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Showing posts from May 14, 2017

*दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!*

✍... एक कवि नदी के किनारे खड़ा था ; तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था। तो तभी कवि ने उस शव से पूछा :-- कौन हो तुम ओ सुकुमारी, बह रही नदियां के जल में ? कोई तो होगा तेरा अपना, मानव निर्मित इस भू-तल मे ! किस घर की तुम बेटी हो, किस क्यारी की कली हो तुम ? किसने तुमको छला है बोलो, क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ? किसके नाम की मेंहदी बोलो, हांथो पर रची है तेरे ? बोलो किसके नाम की बिंदिया, मांथे पर लगी है तेरे ? लगती हो तुम राजकुमारी, या देव लोक से आई हो ?? उपमा रहित ये रूप तुम्हारा, ये रूप कहाँ से लायी हो? .🎭......... दूसरा दृश्य :-- कवि की बाते सुनकर *लड़की की आत्मा बोलती है...* कवि राज मुझ को क्षमा करो, गरीब पिता की बेटी हुँ ! इसलिये मृत मीन की भांती, जल धारा पर लेटी हुँ ! रूप रंग और सुन्दरता ही, मेरी पहचान बताते है ! कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी, सुहागन मुझे बनाते है ! पति के सुख को सुख समझा, पति के दुख में दुखी थी मैं ! 🎎 जीवन के इस तन्हा पथ पर, पति के संग चली थी मैं ! 🕯 पति को मेने दीपक समझा, उसकी लौ में जली थी म...