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Showing posts from January 22, 2017

स्‍वदेशी

वतन के दर्दे-निहां की दवा स्‍वदेशी है ग़रीब क़ौम की हाजत रवा स्‍वदेशी है तमाम दहर [1]  की रूहे-रवाँ [2]  है यह तहरीक [3] शरीके हुस्‍ने-अमल [4]  जा ब जा स्‍वदेशी है क़रारे-ख़ातिरे-आशुफ़्ता [5]  है फ़ज़ा इसकी निशाने-मंजिले, सिदक़ो-सफ़ा [6]  स्‍वदेशी है वतन से जिनको महब्‍बत नहीं वह क्‍या जानें कि चीज कौन विदेशी है क्‍या स्‍वदेशी है इसी के साये में पाता है परवरिश इक़बाल मिसाले-साय:-ए-बाले-हुमा स्‍वदेशी है इसी ने ख़ाक को सोना बना दिया अक्‍सर  जहां में गर है कोई कीमिया स्‍वदेशी है फ़ना के हाथ में है जाने-नातवाने-वतन  बक़ा जो चाहो तो राज़े-बक़ा स्‍वदेशी है हो अपने मुल्‍क की चीज़ों से क्‍यों हमें नफ़रत हर एक क़ौम का जब मुद्दआ स्‍वदेशी है

भारत के राजनेतिक दासता का सबुत

🚩 🙏 *।।वन्दे मातरम्।।* 🙏 🚩 *जब तक इंडियन पुलिस एक्ट नही बदला जाता तब तक शहिदों की आत्मा को शांति नही मिलेगी।* *इस अँग्रेज़ी पुलिस क़ानून के तहत लाला लाजपत राय की हत्या हुई. सरदार भगत सिंह, राज गुरु और सुखदेव जैसे तीन क्रांतिकारियों को फाँसी चढ़ना पड़ा; उस मूल क़ानून को आज़ादी मिलते ही जला देना चाहिए था, पूरी तरह से ख़त्म हो जाना चाहिए था. लेकिन आज़ादी  के 70 साल के बाद भी ये क़ानून चल रहा है और इस क़ानून में कोई बदलाव नही हुआ है. आज भी पुलिस उसी तरह से व्यवहार करती है, पहले अंग्रेज क्रांतिकारियों पर लाठी चलाते थे आज पुलिस साधारण लोगों पर लाठी चलती है. आज भी पुलिस की लाठियों से लोगों के सर फटते हैं; लोगों के पैर टूटते है. आज भी पुलिस की गोलियों से लोगों की जाने जाती है और इस देश के लोग बिना किसी वजह के अपनी शहादत देते है. तब मैं अपने आप से पूछता हूँ की क्या आज़ादी आ गयी  है?* *क्या स्वराज की स्थापना हो गई है? अगर अँग्रेज़ी क़ानून 1860 में चलता था और 1947 तक चलता रहा है। अब वह 2017 में भी चल रहा है तो कैसे कहें की आज़ादी आई है? कैसे कहें कि स्वराज्य आ गया है? अब तो बहु...

👉 आत्म निर्माण की ओर (अंतिम भाग)

 सुनील कुमार! 👉   आत्म निर्माण की ओर (अंतिम भाग) 🔵   यदि तुम्हारे बच्चे से ,  तुम्हारी स्त्री से ,  तुम्हारे नौकर से अमुक काम नहीं बनता ,  वरन् इन्होंने कोई काम बिगाड़ दिया और नुकसान हो गया हो तो क्रोध करने ,  तिरस्कार और निकृष्ट आलोचना करने से सबके मन में हीनता और पश्चाताप के भाव पैदा होगा। काम बिगड़ जाने से उन्हें पश्चाताप तो है ही , परन्तु तुम्हारे शब्दों से उन्हें बहुत ही चोट पहुँचेगी ,  इससे वे भयभीत और संकुचित होंगे ,  आगे वैसा कोई काम करने की उन्हें हिम्मत न होगी-कह देंगे- हमसे न होगा - बिगड़ जायगा ,  टूट जायगा- इत्यादि। 🔴   उनका छिद्रान्वेषण करने ,  उनका तिरस्कार करने ,  हीन ,  निर्बुद्धि और निकृष्ट बनाने में तुम्हारे मन में भी संताप से कितना विष उत्पन्न होकर रक्त को विषाक्त करेगा - इसकी कल्पना तुम्हें नहीं है। अस्तु ,  दूसरों का तिरस्कार करने की अपेक्षा उक्त घटना को यह समझ कर क्षमा कर देना चाहिए कि क्रोध और तिरस्कार से कुछ तो बनेगा नहीं ,  भविष्य में सुधार के लिए उन्हें शिक्षा दे देनी ...

आत्म निर्माण की ओर

👉 आत्म निर्माण की ओर (भाग 3)  सुनील कुमार! 👉   आत्म निर्माण की ओर (भाग 3) 🔵   यदि तुम्हें किसी व्यक्ति का व्यवहार संकीर्ण मालूम पड़े और तुम उसका तिरस्कार करना चाहो तो पहले विचार कर लो- तुममें उसका तिरस्कार करने की प्रेरणा क्यों हो रही है ?  उसमें जो संकीर्णता और बुराई है ,  क्या वह हममें नहीं है ?   यदि हममें भी वही बात है तो पहले स्वयं आत्मशुद्धि की आवश्यकता है तभी दूसरे पर दोष लगाने का अधिकार होगा। जब तक तुममें वही बुराई है तब तक तुम दोनों बराबरी की श्रेणी में हो।  यदि तुममें वह संकीर्णता और बुराई नहीं है तो तुम शुद्ध हो परन्तु उसका तिरस्कार करने से तुममें हीनता आ जायगी। उसको शुद्ध करो। फूल मिट्टी में पड़ कर उसे भी सुगंधित कर देता है। उसे मत कहो , “ तुम निकृष्ट और नीच हो ,  दुष्ट बेईमान हो।” वरन् उसे इन शब्दों की कल्पना ही न होने दो। उससे महानता और ईमानदारी की बात करो।  🔴   “ अमुक व्यक्ति ने ऐसा नहीं किया” , “ अमुक बात अब तक नहीं हुई” , “ अमुक कार्य हो जाय तब हम दूसरा काम करें” , “ ऐसा हो जाता हो हम भी ऐसा करते” ,...

कुछ विचार जो दिलतक आए

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धन्यावाद