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Showing posts from October 15, 2017

विजयनगर-एक भव्य हिन्दू साम्राज्य

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विजयनगर-एक भव्य हिन्दू साम्राज्य जो अब भारतीय इतिहास की पुस्तकों से हो चुका है गायब😫😫😪😪जिन वीरों के स्मरण मात्र से ही भुजाएं फाडक उठती हैं , जिनके शौर्य की गाथा भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर ने गई थी . जिनके तलवार के आगे संसार सर झुकाता था , जिनके इतिहास के स्मरण मात्र से शक्ति और ऊर्जा का संचार होता था वो सारे के सारे मूल और जड़ एक सोची और समझी रणनीति के तहत खोदी गयी और हमें केवल इतिहास के नाम पर पकड़ा दिया गया एक ऐसा घुनघुना जो मात्र दो या तीन लोगों के ही आस पास बजता रहा जिसमे हमने बस यही जाना कि धर्म से निरपेक्षता और अहिंसा ही हमारे जीवन का और इतिहास का आधार रहे हैं ..  इस पूरे इतिहास में ऐसे वीरों को एक एक कर के निकाल दिया गया जिनके नाम से कभी विदेश में बैठे बड़े बड़े आक्रान्ता भी हिल जाया करते थे . चाटुकार इतिहासकारों की चाटुकारिता और एक प्रायोजित सोच से चलने वाले कुछ तथाकथित राजनेताओं की साजिश के शिकार उन असंख्य हिन्दू वीरों में से एक हैं राजा कृष्णदेव राय जी =========================================== हममे से सभी ने बचपन में तेनालीराम और राजा कृष्णदेव राय की कहानिया...

अयोध्या अपना राम स्वयं चुनती है.

अयोध्या अपना राम स्वयं चुनती है. ***************************************************************** महाकवि कालिदास रचित महाकाव्य "रघुवंशम्" अद्भुत ग्रंथ है, इक्ष्वाकुवंशी राजाओं के वृत्त को जिस सुन्दरता से कालिदास ने गाया है वैसा अन्यत्र नहीं मिलता. इस महाकाव्य के षोडशवें सर्ग में राम और उनके भाइयों के पुत्रों का वर्णन है. राम ने अपने बड़े बेटे कुश को "कुशावती" नामक राज्य सौंपा था. रघुवंश के सभी सात भाइयों ने अलग-अलग राज्यों पर शासन तो किया पर वो सबके सब रघुकुल की रीति के अनुरूप अपने सबसे बड़े भाई कुश को अपना प्रधान और पूज्य मानतें थे. यही "जानकीनंदन कुश" एक दिन राजकाज से निवृत होकर जब रात्रि विश्राम हेतू अपने कक्ष में गये तो आधी रात को देखा कि उनके शयन कक्ष का द्वार अंदर से बंद होने के बाबजूद एक स्त्री उनके घर के अंदर आई हुई है. वो फौरन अपनी शैय्या से उठे और उस स्त्री से कहा,  "शुभे ! तुम कौन हो और तुम्हारे पति का नाम क्या है? तुम यह समझकर ही मुंह खोलना कि हम रघुवंशियों का चित्त कभी भी पराई स्त्रियों की ओर नहीं जाता". उस स्त्री ने उत्तर देते हुये...

अदृश्य स्याही वाली प्राचीन कला की अनसुलझी पहेली

अदृश्य स्याही वाली प्राचीन कला की अनसुलझी पहेली Written by:- प्रशांत पोळ प्राचीन भारत में ऋषि-मुनियों को जैसा अदभुत ज्ञान था, उसके बारे में जब हम जानते हैं, पढ़ते हैं तो अचंभित रह जाते हैं. रसायन और रंग विज्ञान ने भले ही आजकल इतनी उन्नति कर ली हो, परन्तु आज से 2000 वर्ष पहले भूर्ज-पत्रों पर लिखे गए "अग्र-भागवत" का यह रहस्य आज भी अनसुलझा ही है. जानिये इसके बारे में कि आखिर यह "अग्र-भागवत इतना विशिष्ट क्यों है? अदृश्य स्याही से सम्बन्धित क्या है वह पहेली, जो वैज्ञानिक आज भी नहीं सुलझा पाए हैं.  आमगांव… यह महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की एक छोटी सी तहसील, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सीमा से जुडी हुई. इस गांव के ‘रामगोपाल अग्रवाल’, सराफा व्यापारी हैं. घर से ही सोना, चाँदी का व्यापार करते हैं. रामगोपाल जी, ‘बेदिल’ नाम से जाने जाते हैं. एक दिन अचानक उनके मन में आया, ‘असम के दक्षिण में स्थित ‘ब्रम्हकुंड’ में स्नान करने जाना है. अब उनके मन में ‘ब्रम्हकुंड’ ही क्यूँ आया, इसका कोई कारण उनके पास नहीं था. यह ब्रम्हकुंड (ब्रह्मा सरोवर), ‘परशुराम कुंड’ के नाम से भी जाना जाता हैं. ...

असली धनतेरस Vs पोपलीला

असली धनतेरस Vs पोपलीला नमस्ते जी आइये आज जाने सच में धनतेरस है क्या- मित्रो पौराणिको में धनतेरस के दिन को लेकर बहुत ही उत्साह और चहल-पहल होती है | इस दिन को धन की पूजा की जाती है और इस दिन धन, यश और कीर्ति प्राप्ति के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है | कुबेर जो धन का प्रदाता है और लक्ष्मी धन का प्रतीक, दोनों को पूजने का त्यौहार है। पहली बात तो धनतेरस जो है वो धन से सम्बंधित कदापि नहीं है, यह उपभोक्तावाद से प्रेरित बाजारीकारण मात्र बन गया है | वास्तव में धनतेरस में “धन” शब्द का अर्थ आयुर्वेद के जनक आरोग्य के देव 'धन्वन्तरी' से लिया गया है|  त्रयोदशी तिथि के दिन धन्वन्तरी का जन्म हुआ था और यही कारण है की इस तिथि को धनतेरस के नाम से जानते है |  इस दिन नए बर्तन और चांदी खरीदने की परंपरा सी बन गई है | यही नहीं आधुनिकीकरण, बाजारी करण और धन के प्रति हमारे लगाव ने हमें अंधा बना दिया है | एक पूछे दूसरा, तीसरा पूूूछे तो भीड़ बन जाती है, और भीड़ के पीछे हम भी चल पड़ते है गाड़ी, कपडे, टीवी, फर्नीचर आदि खरीदने को जो की एक बहुत बड़ी मुर्खता है और पूर्णतया कुंठित उपभोक्तावाद से प्रेरि...

स्वदेशी पद्धति से आप भी कीजिए वर्ष भर के मौसम का पूर्वानुमान

देशी पद्धति से आप भी कीजिए वर्ष भर के मौसम का पूर्वानुमान प्राचीन काल से अभी तक अपने यहाँ भी मौसम की भविष्यवाणियाँ जिस प्रकार की जाती रहीं हैं उन्हीं मैं से एक प्रणाली आपके सामने प्रस्तुत है, मेरे सन्ग्यान में ये प्रणाली १९८० मैं आईं, तब से लगातार में इसका परीक्षण करता हूँ और मेरा मानना है कि ये प्रणाली ८० से १००% सटीक परिणाम देती है. अषाढ़ की पूर्णिमा का दिन हमारे यहाँ 'वेदर फोरकास्ट' के लिए होता है,इस दिन सूर्यास्त से पूर्व तैयारी कीजिए. किसी खुले पार्क या उँची छत पर जाकर वहाँ एक बड़े से दंड मैं बहुत हल्के कपड़े का ध्वज लगा दीजिए,कुतूबनुमा से दिशाएं इंगित कर लीजिए. अब जैसे ही सूर्यास्त से पूर्व वायु का मिज़ाज व दिशा नोट करिए -  हवा पूरब की हो तो वर्ष मैं वर्षा बढ़िया होगी,दक्षिण-पूर्व की हो तो फसल को हानि, दक्षिण की हो तो कम वर्षा, दक्षिण-पश्चिम की हो तो फसल हानि व अकाल,पश्चिम की हो तो अधिक वर्षा,उत्तर-पश्चिम की हो तो हवा आदि ज़्यादा चलें और फसलों  आदि पर कीट चूहे आदि का प्रकोप,और उत्तर एवं पूर्वोत्तर की हो तो पर्याप्त वर्षा और संवत ठीक से गुज़रे. यहाँ ये ध्य...