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Showing posts from March 26, 2017

भारतीय नस्ल गाय के दूध के फायदे

Milk Benefits In Hindi – गाय के दूध के फायदे गाय के दूध में सोना (Gold) – गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। सूर्य की किरणें जब गाय के शरीर को छूती हैं, तब सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य की किरणों से सोना बनाती है। इसी कारण गाय के दूध और मक्खन में पीलापन होता है, इसमें विषनाशक तत्व होते हैं। नाग (साँप) के काटने पर गाय का घी पिलाना चाहिए, इससे विष उतर जाता है। जीवनभर गाय का दूध-पीने वाले व्यक्ति कैंसर जैसे भयानक रोगों से बचे रहते हैं। गाय का दूध पीने से शुद्ध सोना शरीर में जाता है। दूध पीने का समय – दूध प्रात: पीना लाभदायक है। दूध का पाचन सूर्य की गर्मी से होता है। अत: रात को दूध नहीं पीना चाहिए। साधारणतया दूध सोने से तीन घण्टे पहले पीना चाहिए। दूध पीकर तुरन्त नहीं सोना चाहिए। रात्रि को ज्यादा गर्म दूध पीने से स्वप्नदोष होने की सम्भावना रहती है। दूध कैसा पियें? – ताजा धारोष्ण दूध पीना अच्छा है। यदि यह सम्भव नहीं हो तो दूध गर्म करके पियें। गर्म इतना ही करें जितना गर्म पिया जा सके। दूध को अधिक उबालने से जीवनोपयोगी अंश नष्ट हो जाते हैं। दूध को बहुत उलट-पुलट कर झाग पैदा करके ध...

सन 2005 मे सुप्रीम कोर्ट मे गौ हत्या के विरूद्ध भाई राजीव दीक्षीत द्वारा लडा गया एतिहासिक मुकदमा👇

सन 2005 मे सुप्रीम कोर्ट मे गौ हत्या के विरूद्ध भाई राजीव दीक्षीत द्वारा लडा गया एतिहासिक मुकदमा👇👇👇👇👇 (योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यममंत्री बनने के बाद कई कत्लखाने बन्द करवा दिए पर इस कार्य की सराहना करने की बजाय मीडिया की सुर्खियों में कुछ नया विवाद ही देखने को मिल रहा है। जैसे कि कत्लखाने बंद होने से करोड़ों का नुकसान होगा, कई लोग बेरोजगार हो जाएंगे आदि) लेकिन ऐसा ही मामला स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित जी सुप्रीम कोर्ट में लेकर गए थे । आइये जानते है क्या कहा था राजीव दीक्षित ने और क्या था सुप्रीम कोर्ट का आर्डर !! राजीव दीक्षित ने सुप्रीम कोर्ट के मुकदमें मे कसाईयों द्वारा गाय काटने के लिए वही सारे कुतर्क रखे जो कभी शरद पवार द्वारा बोले गए या इस देश के ज्यादा पढ़ें लिखे लोगों द्वारा बोले जाते हैं या देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा कहे गए थे और आज जो मीडिया द्वारा कहे जा रहे हैं । कसाईयो के कुतर्क👇 1) गाय जब बूढ़ी हो जाती है तो बचाने मे कोई लाभ नहीं उसे कत्ल करके बेचना ही बढ़िया है और हम भारत की अर्थ व्यवस्था को मजबूत बना रहे हैं क्योंकि गाय का मांस एक्सपोर्ट...

समय देखने का सनातन तरीका।

समय देखने का सनातन तरीका। हिंदु कालगणना का सूक्ष्मतम अंश परमाणु है तथा महत्तम अंश ब्रह्मा आयु है। इसको विस्तार से बताते हुए शुक मुनि उसके विभिन्न माप बताते हैं:- 2 परमाणु- 1 अणु - 15 लघु - 1 नाड़िका 3 अणु - 1 त्रसरेणु - 2 नाड़िका - 1 मुहूत्र्त 3 त्रसरेणु- 1 त्रुटि - 30 मुहूत्र्त - 1 दिन रात 100 त्रुटि- 1 वेध - 7 दिन रात - 1 सप्ताह 3 वेध - 1 लव - 2 सप्ताह - 1 पक्ष 3 लव- 1 निमेष - 2 पक्ष - 1 मास 3 निमेष- 1 क्षण - 2 मास - 1 ऋतु 5 क्षण- 1 काष्ठा - 3 ऋतु - 1 अयन 15 काष्ठा - 1 लघु - 2 अयन - 1 वर्ष शुक मुनि की गणना से एक दिन रात में 3280500000 परमाणु काल होते हैं तथा एक दिन रात में 86400 सेकेण्ड होते हैं। इसका अर्थ सूक्ष्मतम माप यानी 1 परमाणु काल 1 सेकंड का 37968 वां हिस्सा। यह सामान्य गणना के लिए माप है। पर ब्रह्माण्ड की आयु के लिए, ब्रह्माण्ड में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बड़ी ईकाईयां होती हैं(जैसे हम दूरी नापने के लिए प्रकाश वर्ष (light year) का प्रयोग करते हैं) कलियुग - 432000 वर्ष 2 कलियुग - द्वापरयुग - 864000 वर्ष 3 कलियुग - त्रेतायुग - 1296000 वर्ष 4 कलियुग ...

वर्षमीमांसा

वर्षमीमांसा ! ज्योतिषीय साक्ष्य (astronomical evidence) कालज्ञान के लिए परम प्रमाण होता है। यह प्रमाण जिन बातों से बनता है वे हमें प्रथमदृष्ट्या असुविधाजनक ही प्रतीत होती हैं। यद्यपि पूर्वकाल में भारतीय ज्योतिषी बहुत प्रकार के वर्षों का व्यवहार करते थे तथापि वर्तमान काल के योरोपियन ज्योतिषी भी न्यूनातिन्यून 4 प्रकार के वर्षों को अनिवार्य मानते हैं —         1. नाक्षत्र वर्ष (Sidereal year)         2. ऋतुवर्ष (Tropical year)         3. दीर्घाक्ष वर्ष (Anomalistic year)         4. राहु वर्ष (Eclipse year) नाक्षत्र वर्ष — भचक्र के किसी निश्चित तारेे की सीध में सूर्य की स्थिति से आरम्भ करके पुन: उसी तारे की सीध में सूर्य की स्थिति तक का समय एक “नाक्षत्र वर्ष" कहलाता है। यही पृथ्वी द्वारा सूर्य के “पूर्ण परिक्रमण" की अवधि है। इसका मान है —         365·256363 दिन अथवा         365 दिन 6 घण्टे 9 मिनट 9·8 सेकण्ड। ऋतुवर्ष — वर्ष में 2 संपात होते हैं - वसन्त संपात ...

👉 युग बदल रहा है-हम भी बदलें

👉 युग बदल रहा है-हम भी बदलें Atmiya Parijan सुनील कुमार! 🔵 भले ही लोग सफल नहीं हो पा रहे हैं पर सोच और कर यही रहे हैं कि वे किसी प्रकार अपनी वर्तमान सम्पत्ति को जितना अधिक बढ़ा सकें, दिखा सकें उसकी उधेड़ बुन में जुटे रहें। यह मार्ग निरर्थक है। आज की सबसे बड़ी बुद्धिमानी यह है कि किसी प्रकार गुजारे की बात सोची जाए। परिवार के भरण-पोषण भर के साधन जुटाये जायें और जो जमा पूँजी पास है उसे लोकोपयोगी कार्य में लगा दिया जाए। जिनके पास नहीं है वे इस तरह की निरर्थक मूर्खता में अपनी शक्ति नष्ट न करें। जिनके पास गुजारे भर के लिए पैतृक साधन मौजूद हैं, जो उसी पूँजी के बल पर अपने वर्तमान परिवार को जीवित रख सकते हैं वे वैसी व्यवस्था बना कर निश्चित हो जायें और अपना मस्तिष्क तथा समय उस कार्य में लगायें, जिसमें संलग्न होना परमात्मा को सबसे अधिक प्रिय लग सकता है। 🔴 समय ही मनुष्य की व्यक्तिगत पूँजी है, श्रम ही उसका सच्चा धर्म है। इसी धन को परमार्थ में लगाने से मनुष्य के अन्तःकरण में उत्कृष्टता के संस्कार परिपक्व होते हैं। धन वस्तुतः समाज एवं राष्ट्र की सम्पत्ति है। उसे व्यक्तिगत समझना एक पाप ...

पिता

जो *पिता* के पैरों को छूता है            वो कभी *गरीब* नहीं होता। जो *मां* के पैरों को छूता है          वो कभी *बदनसीब* नही होता। जो *भाई* के पैराें को छूता है          वो कभी *गमगीन* नही होता। जो *बहन* के पैरों को छूता है        वो कभी *चरित्रहीन* नहीं होता। *जो गुरू के पैरों को छूता है*          *उस जैसा कोई*                 *खुशनसीब नहीं होता*....... 💞अच्छा *दिखने* के लिये मत जिओ           बल्कि *अच्छा* बनने के लिए जिओ💞  💞जो *झुक* सकता है वह सारी           ☄दुनिया को *झुका* सकता है 💞  💞 अगर बुरी आदत *समय पर न बदली* जाये           तो बुरी आदत *समय बदल देती* है💞   💞चलते रहने से ही *सफलता* है,           रुका हुआ तो पानी भी *बेकार* हो जाता है 💞 💞 *झूठे दिलासे* से *स्पष्ट इं...

भारत में गणित का इतिहास भाग 3

भारत में गणित का इतिहास भाग 3 By:- Sumit Pandey कालक्युलस का आविर्भाव चंद्र ग्रहण का एक सटीक मानचित्रा विकसित करने के दौरान आर्यभट्ट को इनफाइनाटसिमल की परिकल्पना प्रस्तुत करना पड़ी, अर्थात् चंद्रमा की अति सूक्ष्म कालीन या लगभग तात्कालिक गति को समझने के लिए असीमित रूप से सूक्ष्म संख्याओं की परिकल्पना करके उसने उसे एक मौलिक डिफरेेेंशल समीकरण के रूप में प्रस्तुत किया। आर्यभट के समीकरणों की 10 वीं सदी में मंजुला ने और 12 वीं सदी में भास्कराचार्य ने विस्तार पूर्वक व्याख्या की। भास्कराचार्य ने ज्या फलन के डिफरेंशल का मान निकाला। परवर्ती गणितज्ञों ने इंटिग्रेशन की अपनी विलक्षण समझ का उपयोग करके वक्र तलों के क्षेत्राफल और वक्र तलां द्वारा घिरे आयतन का मान निकाला। व्यावहारिक गणित, व्यावहारिक प्रश्नों के हल इस काल में व्यावहारिक गणित में भी विकास हुआ – त्रिकोणमितीय सारिणी और माप की इकाइयां बनाई गईं। यतिबृषभ की कृति तिलोयपन्नति 6 वीं सदी में तैयार हुई जिसमें समय और दूरी की माप के लिए विभिन्न इकाइयां दीं गईं हैं और असीमित समय की माप की प्रणाली भी बताई गई है। 9 वीं सदी में मैसूर के महाव...

सद्ज्ञान का संचय करो

👉 सद्ज्ञान का संचय करो 🔵 सुख, धन के ऊपर निर्भर नहीं, वरन् सद्ज्ञान के ऊपर, आत्मनिर्माण के ऊपर निर्भर है।  जिसने आत्मज्ञान से अपने दृष्टिकोण को सुसंस्कृत कर लिया है, वह चाहे साधन-संपन्न हो चाहे न हो, हर हालत में सुखी रहेगा।  परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही प्रतिकूल क्यों न हों, वह प्रतिकूलता में अनुकूलता का निर्माण कर लेगा। उत्तम गुण और उत्तम स्वभाव वाले मनुष्य बुरे लोगों के बीच रहकर भी अच्छे अवसर प्राप्त कर लेते हैं। 🔴 विचारवान मनुष्यों के लिए सचमुच ही इस संसार में कहीं कोई कठिनाई नहीं है।  शोक, दु:ख, चिंता और भय का एक कण भी उन तक नहीं पहुँच पाता।  प्रत्येक दशा में वे प्रसन्नता, संतोष और सौभाग्य अनुभव करते रहते हैं। 🔵 सद्ज्ञान द्वारा आत्मनिर्माण करने का लाभ, धन जमा करने के लाभ की अपेक्षा अनेक गुना महत्त्वपूर्ण है। सचमुच जो जितना ही ज्ञानवान है, वह उतना ही बड़ा धनी है। यही कारण है कि निर्धन ब्राह्मण को अन्य संपन्न वर्णों की अपेक्षा अधिक सम्मान दिया जाता है। 🔴  मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी ज्ञान है। इसलिए वास्तविकता को समझो, धन के पीछे रात-दिन पागल...

👉 पराजय में विजय का बीज छिपा होता है।

👉 पराजय में विजय का बीज छिपा होता है। 🔵 यदि सदा प्रयत्न करने पर भी तुम सफल न हो सको तो कोई हानि नहीं। पराजय बुरी वस्तु नहीं है। यदि वह विजय के मार्ग में अग्रसर होते हुए मिली हो। प्रत्येक पराजय विजय की दशा में कुछ आगे बढ़ जाना है। अवसर ध्येय की ओर पहली सीढ़ी है। हमारी प्रत्येक पराजय यह स्पष्ट करती है कि अमुक दिशा में हमारी कमजोरी है, अमुक तत्व में हम पिछड़े हुए हैं या किसी विशिष्ट उपकरण पर हम समुचित ध्यान नहीं दे रहे हैं। पराजय हमारा ध्यान उस ओर आकर्षित करती है, जहाँ हमारी निर्बलता है, जहाँ मनोवृत्ति अनेक ओर बिखरी हुई है, जहाँ विचार ओर क्रिया परस्पर विरुद्ध दिशा में बढ़ रहे हैं, जहाँ। दुःख, क्लेश, शोक, मोह इत्यादि परस्पर विरोधी इच्छाएं हमें चंचल कर एकाग्र नहीं होने देतीं। 🔴 किसी न किसी दिशा में प्रत्येक पराजय हमें कुछ सिखा जाती है। मिथ्या कल्पनाओं को दूर कर हमें कुछ न कुछ सबल बना जाती हैं, हमारी विश्रृंखल वृत्तियों को एकाग्रता का रहस्य सिखाती हैं। अनेक महापुरुष केवल इसी कारण सफल हुए क्योंकि उन्हें पराजय की कड़वाहट को चखना पड़ा था। यदि उन्हें यह पराजय न मिलती, तो वे महत्वपू...

दृष्टिकोण मे परिवर्तन

 दृष्टिकोण मे परिवर्तन 🔵 संसार में हर दुर्जन को सज्जन बनाने की, हर बुराई के भलाई में बदल जाने की आशा करना वैसी ही आशा करना है जैसी सब रास्तों पर से काँटे-कंकड़ हट जाने की।  अपनी प्रसन्नता और सन्तुष्टि का, यदि हमने इसी आशा को आधार बनाया हो, तो निराशा ही हाथ लगेगी। 🔴 हाँ, यदि हम अपने स्वभाव एवं दृष्टिकोण को बदल लें तो यह कार्य जूता पहनने के समान सरल होगा और इस माध्यम से हम अपनी प्रत्येक परेशानी को बहुत अंशो में हल कर सकेंगे। 🔵  अपने स्वभाव और दृष्टिकोण में परिवर्तन कर सकना कुछ समयसाध्य और निष्ठासाध्य अवश्य है, पर असम्भव तो किसी प्रकार नहीं है।  मनुष्य चाहे तो विवेक के आधार पर अपने मन को समझा सकता है, विचारों को बदल सकता है और दृष्टिकोण में परिवर्तन कर सकता है। 🔴 इतिहास के पृष्ठ ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं जिनसे प्रकट है की आरम्भ से बहुत हलके और ओछे दृष्टिकोण के आदमी अपने भीतर परिवर्तन करके संसार के श्रेष्ठ महापुरुष बने हैं।

परिस्थितियों के अनुकूल बनिये।

👉 परिस्थितियों के अनुकूल बनिये। 🔵 परिस्थितियों की अनुकूलता की प्रतिज्ञा करते-2 मूल उद्देश्य दूर पड़ा रह जाता है। हमें जीवन में जो कष्ट है, जो हमारा लक्ष्य है, उसे हम परिस्थिति के प्रपंच में पड़ कर विस्मृत कर रहे हैं। 🔴  यदि आपके पास कीमती फाउन्टेन पेन नहीं है, बढ़िया कागज और फर्नीचर नहीं है, तो क्या आप कुछ न लिखेंगे?  यदि उत्तम वस्त्र नहीं हैं, तो क्या उन्नति नहीं करेंगे? यदि घर में बच्चों ने चीजें अस्त-व्यस्त कर दी हैं, या झाडू नहीं लगा है, तो क्या आप क्रोध में अपनी शक्तियों का अपव्यय करेंगे? यदि आपकी पत्नी के पास उत्तम आभूषण नहीं हैं, तो क्या वे असुन्दर कहलायेंगी या घरेलू शान्ति भंग करेंगी? यदि आपके घर के इर्द-गिर्द शोर होता है, तो क्या आप कुछ भी न करेंगे? यदि सब्जी, भोजन, दूध इत्यादि ऊंचे स्टैन्डर्ड का नहीं बना है, तो क्या आप बच्चों की तरह आवेश में भर जायेंगे? नहीं, आपको ऐसा कदापि न करना चाहिए। 🔵 परिस्थितियाँ मनुष्य के अपने हाथ की बात है। मन के सामर्थ्य एवं आन्तरिक स्वावलम्बन द्वारा हम उन्हें विनिर्मित करने वाले हैं।  हम जैसा चाहें जब चाहें सदैव कर स...

👉 आप का मन

सुनील कुमार! 👉 आप का मन 🔴 मन की शरीर पर क्रिया एवं शरीर की मन पर प्रतिक्रिया निरंतर होती रहती है।  जैसा आप का मन, वैसा ही आप का शरीर, जैसा शरीर, वैसा ही मन का स्वरूप।  यदि शरीर में किसी प्रकार की पीड़ा है, तो मन भी क्लांत, अस्वस्थ एवं पीड़ित हो जाता है। वेदांत में यह स्पष्ट किया गया है कि समस्त संसार की गतिविधि का निर्माण मन द्वारा ही हुआ है। 🔵  जैसा हमारी भावनाएँ, इच्छाएँ, वासनाएँ अथवा कल्पनाएँ हैं, तदनुसार ही हमें शरीर और अंग-प्रत्यंग की बनावट प्राप्त हुई है।  मनुष्य के माता-पिता, परिस्थितियाँ, जन्मस्थान, आयु, स्वास्थ्य, विशेष प्रकार के भिन्न शरीर प्राप्त करना, स्वयं हमारे व्यक्तिगत मानसिक संस्कारों पर निर्भर है। हमारा बाह्य जगत हमारे प्रसुप्त संस्कारों की प्रतिच्छाया मात्र है। 🔴 संगम अपने आप में न निकृष्ट है, न उत्तम। सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन के पश्चात् हमें प्रतीत होता है कि यह वैसा ही है,  जैसी प्रतिकृति हमारे अंतर्जगत में विद्यमान है। हमारी दुनियाँ वैसी ही है, जैसा हमारा अंत:करण का स्वरूप। 🔵 भलाई, बुराई, उत्तमता, निकृष्टता, भव्...

👉 अपनी भूलों को स्वीकार कीजिए

👉 अपनी भूलों को स्वीकार कीजिए 🔴 जब मनुष्य कोई गलती कर बैठता है, तब उसे अपनी भूल का भय लगता है। वह सोचता है कि दोष को स्वीकार कर लेने पर मैं अपराधी समझा जाऊँगा, लोग मुझे बुरा भला कहेंगे और गलती का दंड भुगतना पड़ेगा। वह सोचता है कि इन सब झंझटों से बचने के लिए यह अच्छा है कि गलती को स्वीकार ही न करूँ, उसे छिपा लूँ या किसी दूसरे के सिर मढ़ दूँ। 🔵 इस विचारधारा से प्रेरित होकर काम करने वाले व्यक्ति भारी घाटे में रहते हैं। एक दोष छिपा लेने से बार- बार वैसा करने का साहस होता है और अनेक गलतियों को करने एवं छिपाने की आदत पड़ जाती है। दोषों के भार से अंतःकरण दिन- दिन मैला, भद्दा और दूषित होता जाता है और अंततः: वह दोषों की, भूलों की खान बन जाता है। गलती करना उसके स्वभाव में शामिल हो जाता है। 🔴 भूल को स्वीकार करने से मनुष्य की महत्ता कम नहीं होती वरन् उसके महान आध्यात्मिक साहस का पता चलता है। गलती को मानना बहुत बड़ी बहादुरी है। जो लोग अपनी भूल को स्वीकार करते हैं और भविष्य में वैसा न करने की प्रतिज्ञा करते हैं वे क्रमश: सुधरते और आगे बढ़ते जाते हैं। गलती को मानना और उसे सुधारन...

*कत्लखाने बन्द होने पर करोड़ो का होगा नुकसान, बोलने वाली मीडिया पढ़े #सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर...*

🚩 🙏 *।।वन्दे मातरम्।।* 🙏 🚩 *कत्लखाने बन्द होने पर करोड़ो का होगा नुकसान, बोलने वाली मीडिया पढ़े #सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर...* *देखिये वीडियो* https://youtu.be/fI-IehUmPNk *योगी #आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यममंत्री बनने के बाद कई कत्लखाने बन्द करवा दिए पर इस कार्य की सराहना करने की बजाय मीडिया की सुर्खियों में कुछ नया विवाद ही देखने को मिल रहा है। जैसे कि कत्लखाने बंद होने से करोड़ों का नुकसान होगा, कई लोग #बेरोजगार हो जाएंगे आदि।* *लेकिन ऐसा ही मामला #स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित जी सुप्रीम कोर्ट में लेकर गए थे। आइये जानते है क्या कहा था राजीव दीक्षित जी ने और क्या था सुप्रीम कोर्ट का आर्डर!* *राजीव दीक्षित जी ने सुप्रीम कोर्ट के मुकदमें मे कसाईयों द्वारा गाय काटने के लिए वही सारे कुतर्क रखे जो कभी शरद पवार द्वारा बोले गए, जो इस देश के ज्यादा पढ़ें लिखे लोगों द्वारा बोले जाते हैं, जो देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा कहे गए थे और आज जो मीडिया द्वारा कहे जा रहे हैं।* *#कसाईयो के कुतर्क* *1) गाय जब बूढ़ी हो जाती है तो बचाने मे कोई लाभ नहीं उसे कत्ल करके बेचना ही बढ़िया है औ...

भारत में गणित का इतिहास - भाग 2

भारत में गणित का इतिहास - भाग 2 By:- Sumit Pandey दर्शनशास्त्र और गणित दार्शनिक सिद्धांतों का गणितीय परिकल्पनाओं और सूत्राीय पदों के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा। विश्व के बारे में उपनिषदों के दृष्टिकोण की भांति जैन दर्शन में भी आकाश और समय असीम माने गये। इससे बहुत बड़ी संख्याओं और अपरिमित संख्ययओं की परिभाषाओं में गहरी रुचि पैदा हुई। रीकरसिव /वापिस आ जाने वाला/ सूत्रों के जरिये असीम संख्यायें बनाईं गईं। अणुयोगद्वार सूत्रा में ऐसा ही किया गया। जैन गणितज्ञों ने पांच प्रकार की असीम संख्यायें बतलाईंः 1. एक दिशा में असीम, 2. दो दिशाओं में असीम, 3. क्षेत्रा में असीम, 4. सर्वत्रा असीम और 5. सतत असीम। 3 री सदी ई. पू. में रचित भागवती सूत्रों में और 2 री सदी ई. पू. में रचित साधनांग सूत्रा में क्रमपरिवर्तन और संयोजन को सूचीबद्ध किया गया है। जैन समुच्चय सिद्धांत संभवतः जैन ज्ञान मीमांसा के स्यादवाद के समानान्तर ही उद्भूत हुआ जिसमें वास्तविकता को सत्य की दशा.युगलों और अवस्था.परिवर्तन युगलों के रूप में वर्णित किया गया है। अणुयोग द्वार सूत्रा घातांक नियम के बारे में एक विचार देता है और इसे लघुग...