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Showing posts from October 22, 2017

छठ के बारे में कई प्रश्न हैं। इनके यथा सम्भव समाधान कर रहा हूं-

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छठ के बारे में कई प्रश्न हैं। इनके यथा सम्भव समाधान कर रहा हूं- (१) कार्त्तिक मास में क्यों-२ प्रकार के कृत्तिका नक्षत्र हैं। एक तो आकाश में ६ तारों के समूह के रूप में दीखता है। दूसरा वह है जो अनन्त वृत्त की सतह पर विषुव तथा क्रान्ति वृत्त (पृथ्वी कक्षा) का कटान विन्दु है। जिस विन्दु पर क्रान्तिवृत्त विषुव से ऊपर (उत्तर) की तरफ निकलता है, उसे कृत्तिका (कैंची) कहते हैं। इसकी २ शाखा विपरीत विन्दु पर मिलती हैं, वह विशाखा नक्षत्र हुआ। आंख से या दूरदर्शक से देखने पर आकाश के पिण्डों की स्थिति स्थिर ताराओं की तुलना में दीखती है, इसे वेद में चचरा जैसा कहा है। पतरेव चर्चरा चन्द्र-निर्णिक् (ऋक् १०/१०६/८) = पतरा में तिथि निर्णय चचरा में चन्द्र गति से होता है। नाले पर बांस के लट्ठों का पुल चचरा है, चलने पर वह चड़-चड़ आवाज करता है।   गणना के लिये विषुव-क्रान्ति वृत्तों के मिलन विन्दु से गोलीय त्रिभुज पूरा होता है, अतः वहीं से गणना करते हैं। दोनों शून्य विन्दुओं में (तारा कृत्तिका-गोल वृत्त कृत्तिका) में जो अन्तर है वह अयन-अंश है। इसी प्रकार वैदिक रास-चक्र कृत्तिका से शुरु होता है। आकाश...

तुलसी गाय और माता पिता

।।तूलसी वृक्ष ना जानिए,                   गाय ना जानिए ढोर।। ।।माता-पिता मनुष्य ना जानिए,                    ये तीनों नन्द किशोर।। अर्थात: तूलसी को कभी वृक्ष नहीं समझना चाहिए, और गाय को कभी पशु ना समझे, तथा माता-पिता को कभी मनुष्य ना समझें, क्योंकि ये तीनो तो साक्षात भगवान का रूप हैं।                  आपका दिन मंगलमय हो                धन्यवाद

हूण भी रहे विष्‍णु मंदिर के निर्माता : अभिलेखीय साक्ष्‍य

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हूण भी रहे विष्‍णु मंदिर के निर्माता : अभिलेखीय साक्ष्‍य मेवाड़ में शिलालेखों का क्रम कुछ इस तरह से मिलता है कि पूर्व ब्राह्मी से लेकर देवनागरी लिपि तक का क्रम पूरा हो जाता है। उदयपुर के प्राचीन शिलालेखाें में एक शिलालेख विक्रम संवत् 1010 तद्नुसार 953 ईस्‍वी का है। गणना के अनुसार 23 अप्रैल, वैशाख शुक्‍ला सप्‍तमी के दिन इस शिलालेख को लिखा गया व वराह की प्रतिमा उत्‍कीर्ण कर उसको प्रतिष्ठित किया गया था। इसको 'सारणेश्‍वर प्रशस्ति' के नाम से जाना गया है। वर्तमान में यह सारणेश्‍वर मंदिर में प्रवेश मंडप के छबने पर लगा है। किन्‍तु, यह मूलत: यहां नहीं था। यह आदिवराह मंदिर में लगा था और इसको स्‍थानांतरित किया गया। यह तत्‍कालीन देवनागरी लिपि में हैं ओर इसमें पहली बार देवालय न्‍यास अथवा देवकुल गोष्ठिक का संदर्भ मिलता है। यह स्‍थान प्रसिद्ध आहाड़ सभ्‍यता के पास ही है। उस काल के कई पदाधिकारियों और उन लोगों का इसमें नाम हैं जिनके कंधों पर आदिवराह मंदिर के निर्माण और उसके संरक्षण का दायित्‍व था। यह गुहिलवंशी महालक्ष्‍मी नामक रानी के पुत्र अल्‍लट के पुत्र नरवाहन का अभिलेख है। इसमें कहा ...

छठ महापर्व एक संक्षिप्त परिचय

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छठ व्रत पूजा विधि- छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्त्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्त्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार ३६ घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। (१) पहला दिन कार्त्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरान्त ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।  (२) दूसरे दिन कार्त्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का निर्जल उपवास रखने के बाद रात्रि को चन्द्र उदय के बाद (प्रायः ८ बजे से १० बजे के भीतर) भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ (खड़ना) कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का...

संस्कृत के कुछ विश्व-व्यापी शब्द

संस्कृत के कुछ विश्व-व्यापी शब्द  संस्कृत को विश्व भाषा कहते हैं। यह किस अर्थ में है? भारत के भीतर ही विभिन्न क्षेत्रों के विशेष संस्कृत शब्द हैं। भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक कारणों से शब्दों के प्रचार या प्रयोग में विविधता है। मनुस्मृति में लिखा है-वेद शब्देभ्य एवादौ पृथक् संस्थाश्च निर्ममे। कई स्थानों पर 7 संस्था कही गयी है। शब्दों के मूल अर्थ आधिभौतिक थे जब ब्रह्मा ने सबका नाम कर्मों के अनुसार दिया था-सर्वेषां तु स नामानि कर्माणि च पृथक् पृथक्। बाद में इन अर्थों का विस्तार आकाश की आधिदैविक सृष्टि तथा शरीर के भीतर आध्यात्मिक विश्व के लिए हुआ। आधिभौतिक विश्व जो पृथ्वी पर दीखता है उसमें भी विज्ञान की परिभाषा के अनुसार अलग अलग अर्थ हो जाते हैं। इसको वृद्धि कहा गया है। भागवत माहात्म्य हर भागवत प्रवचन के पहले कहा जाता है। उसके अनुसार ज्ञान की उत्पत्ति द्रविड़ में हुई तथा वृद्धि कर्णाटक में हुई। आज भी कर्णाटक में ही वैदिक शोध अधिक होता है। विजयनगर स्थापना के समय जब हरिहर तथा बुक्क राय अपनी तथा राज्य के अस्तित्व के बारे में ही चिन्तित थे, उनकी पहली चेष्टा थी सायण द्वारा वेद की व्य...