Posts

Showing posts from March 19, 2017

भारत में गणित का इतिहास

भारत में गणित का इतिहास By :- Sumit Pandey सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित प्रणाली का प्रचलन था। हरप्पा में दशमलव प्रणाली भारत में दशमलव प्रणाली हरप्पाकाल में अस्तित्व में थी जैसा कि हरप्पा के बाटों और मापों के विश्लेषण से पता चलता है। उस काल के 0.05, 0.1, 0.2, 0.5, 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 200 और 500 के अनुपात वाले बाट पहचान में आये हैं। दशमलव विभाजन वाले पैमाने भी मिले हैं। हरप्पा के बाट और माप की एक खास बात जिस पर ध्यान आकर्षित होता है, वह है उनकी शुद्धता। ए...

*"भारतीय नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2074 (28 मार्च, 2017)" की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।*

*"भारतीय नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2074 (28 मार्च, 2017)" की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।* *चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :* *1.* इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। *2.* सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। *3.* प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है। *4.* शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है। *5.* सिख परंपरा के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी के जन्म दिवस का यही दिन है। *6.* स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन को आर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना। *7.* सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए। *8.* विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। *9.* युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। *भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :* *1.* वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उम...

ललितादित्य जिन्हें मुक्तापिड़ के नाम से भी जाने जाते हैं कश्मीर शासक महाराज उदयादित्य के पुत्र थे

©Copyright हिन्दू शेरनी मनीषा सिंह जय श्री राम गुरुजनों को प्रणाम करते हुए एक नया इतिहास की खोज निकाल के लायी हूँ उसिपर लिखी हूँ मनीषा सिंह की कलम से-: मैंने इससे पूर्व भी ललितादित्य जिन्हें मुक्तापिड़ के नाम से भी जाने जाते हैं कश्मीर शासक महाराज उदयादित्य के पुत्र थे महाराज ललितादित्य छत्तीस वर्ष तक शासन किया एवं पांचवी सताब्दी के कश्मीर के सबसे शक्तिशाली राजपूत सम्राट थे । इनके बारे में पोस्ट की थी परन्तु वोह लेख शोधपूर्ण ना होने की वजह से हटा दिया गया एवं , इतिहासविदुर इतिहास के महाग्यता पंडित कोटा वेंकटचेलाम जी द्वारा लिखित किताब Chronology of Kashmir Reconstructed, नीलमत पुराण एक प्राचीन ग्रन्थ (६ठी से ८वीं शताब्दी का) है जिसमें कश्मीर के इतिहास, भूगोल, धर्म एवं लोकगाथाओं के बारे में बहुत सारी जानकारी है एवं कल्हण राजतरंगिणी इन सभी पुस्तकों से शोधपूर्ण अनुसंधान से पुनर्लेखन कर के आपलोगों के समक्ष रख रही हूँ । कई भाई एवं मात्री-पितृ समान गुरुजन सवाल करते हैं मैं इतिहास पे रूचि क्यों रखती हूँ और ऐसे ऐसे इतिहास कहा से लिख के लाती हूँ । मेरा उत्तर हैं बचपन से मेरे दिमाग में एक ब...

मेवाड़ योद्धा बप्पा रावल और आदित्यनाथ का सम्बन्ध

मेवाड़ योद्धा बप्पा रावल और आदित्यनाथ का सम्बन्ध Written by :- desiCNNमेवाड़ योद्धा बप्पा रावल और आदित्यनाथ का सम्बन्ध Written by :- desiCNN जब से योगी आदित्यनाथ ने यूपी की कमान संभाली है, तभी से वे अचानक विश्व की प्रेस में चर्चाओं के केन्द्र बन गए हैं. मीडिया में विशेषतः योगीजी के परिवार के बारे में खोजबीन की जा रही है, साथ ही गोरक्षनाथ पीठ तथा नाथ सम्प्रदाय के बारे में भी खासे सर्च-रिसर्च चालू हो गए हैं. भले ही योगी जी को संन्यास और दीक्षा लिए अर्थात अपनी जाति छोड़े एक अरसा हो गया, लेकिन “मीडिया के हेडलाइन भूखों” को अभी भी वे राजपूत दिखाई दे रहे हैं. बहरहाल... इस लेख में आपको एक अलग किस्म की जानकारी मिलेगी, और वह ये है कि मेवाड़ (राजस्थान) के अपराजेय योद्धा बप्पा रावल कौन हैं? और इनका योगी आदित्यनाथ के नाथ सम्प्रदाय से क्या सम्बन्ध है? जैसा कि प्रचलित है, नाथ सम्प्रदाय “हठयोग” की एक शाखा है. इस परंपरा का पालन करने वाले संतों और योगियों ने स्थानीय भाषाओं में अपना तमाम साहित्य तैयार किया तथा इसे पूरे देश में फैलाया. इस परंपरा ने हजारों महान संत भारत भूमि को दिए हैं. यहाँ तक क...