“चंडी पाठ” के अंतिम हिस्सों में आद्या शक्ति के पुनः प्रादुर्भाव और मनुष्यों एवं देवताओं पर उनकी कृपा की चर्चा आती है। हिरण्याक्ष नामक राक्षस के वंश में रुरु नाम के असुर का पुत्र दुर्गमासुर था। उसने वर्षों की कठिन तपस्या करके ब्रह्मा से वर में चारों वेद मांग लिए। कहते हैं कि वर के प्रभाव से जब वेद दुर्गमासुर के पास चले गए तो ऋषि-मुनि वेदों के बिना यज्ञ नहीं कर पाते थे। देवताओं के यज्ञ भाग से विहीन होने पर वर्षा बंद हो गयी और लोग अकालग्रस्त हो गए। ऐसे में देवताओं ने पूरे भुवन की स्वामिनी, देवी भुवनेश्वरी की उपासना की और देवी अपने शताक्षी रूप में प्रकट हुईं। जनता की दुर्दशा देखकर उनके सौ नेत्रों से आंसू बहने लगे और मान्यता है कि उनके रोते रहने के कारण नौ दिनों तक वर्षा होती रही। मनुष्यों के पास खाने पीने की वस्तुओं की कमी न हो इसलिए देवी शाकम्भरी रूप में भी प्रकट हुईं। संभवतः नवरात्र में शाकाहार की परम्परा आद्या शक्ति के इसी शाकम्भरी रूप के कारण है। देवी के नामों को देखने पर एक और भी चीज़ ध्यान में आती है। देवी जिन राक्षसों का वध करती हैं, उनका नाम लिए बिना आप देवी का नाम नहीं ले सकते...