महाराणा कुम्भकर्ण: कुम्भा देश के प्रतापी, कलाप्रिय शासकों में महाराणा कुंभकर्ण या कुंभा (1433-68 ई., जन्म मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी, 1417) का नाम बहुत सम्मान से लिया जा सकता है। कुंभा बहुत शिक्षित और साहित्य प्रेमी ही नहीं, स्वयं साहित्यकार था। कुंभा ने कई ग्रंथों की रचना की जिनमें से 16 हजार श्लोकों का पांच कोष वाला 'संगीतराज' तो ख्यातिलब्ध है ही, सूडप्रबंध और स्तंभराज, कामराज रतिसार जैसे ग्रंथ भी अल्पज्ञात ही सही, मगर उल्लेखनीय है। कुंभा ने 'गीतगोविंद' की रसिकप्रिय टीका और 'चंडीशतक' की वृत्ति लिखी और उसमें अपनी जन्मभूमि चित्तौड़ व कुल की मर्यादाओं को रेखांकित किया। कुंभा के 33 साल के शासन काल में चित्तौड और कुंभलगढ में कोई 1700 ग्रंथों की रचना और प्रतिलिपि लेखन का कार्य हुआ। इतना बडा योगदान शायद ही अन्य किसी शासक का रहा हो। इनमें संगीत, साहित्य, दर्शन, मीमांसा, गणित, धर्मशास्त्र सहित तकनीकी विषय भी शामिल हैं। कुंभा स्वयं वल्लकी वीणा वादन में निपुण था। शिवाराधक होते हुए भी कुंभा ने विष्णु की महिमा के गान में अपने को लगाए रखा। अपने युग में...
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