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हमारे राष्ट्र के चिढ़ऊ

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हमारे राष्ट्र के चिढ़ऊ by पवन त्रिपाठी बीस-पच्चीस साल पहले की बात है।बनारस में एक बुजुर्ग थे।कभी उनका बड़ा मान-सम्मान था।65-66 साल अवस्था रही होगी।पता नही कैसे वह राधे शब्द से चिढ़ने लगे।रही होगी कोई बात।आस-पास के लड़के राधे-राधे बोल दे तो भयंकर चढ़ जाते थे।हमे याद है शुरू में समझाते थे,फिर अवॉइड करने लगे। लेकिन कुछ दिनों बाद हमने देखा कि लड़के उनको राधे-राधे बोल कर भाग जाते हैं और वह मां-बहन आदि की गुप्त अंगो के बारे में गालियां बकते दूर तक दौड़ाते।जल्दी ही उनका नाम ‘चिढ़ऊ, हो गया। वह उसी नाम से मशहूर हो गए और धीरे-धीरे उनकी पढ़ी-लिखी इमेज भी खत्म हो गई। आपने देखा होगा आपके आसपास ऐसे कई लोग मौजूद होते हैं जिनको किसी एक खास बात से चिढ़ होती है।लोग-बाग जान जाते है तो किसी न किसी बहाने चिढ़ाने ही लगते है।धीरे-धीरे उनका यह चिढ़ना सार्वजनिक हो जाता है।शुरू में अपनी ‘चिढन,जस्टिफाई करने के लिए वह उन शब्दों के लिए एक नए-नए तर्क ढूंढते हैं,नए नए तथ्य ढूंढने कोशिश करते हैं और अंत में चिढ़ऊ नाम से मशहूर हो जाते हैं।लोग भी सतुआ-पानी लेकर पिल पड़ते हैं।भयंकर-भद्दी-कच्ची गालियां खाने का मजा लेने ...