Posts

Showing posts from April 30, 2017

भारतीय जाती व्यवस्था पर ही टिकी थी भारत की अर्थव्यवस्था

कल मेरे एक मित्र ने लिखा की हम जातिवाद पर कोई चर्चा नहीं करेंगे। मैं समझता हूँ की यह ठीक नहीं रहेगा। चर्चा करने से उसकी खामिया और उपलब्धियों को समझ सकेंगे। उसी विषय पर एक छोटी सी प्रस्तुति : भारतीय जाती व्यवस्था पर ही टिकी थी भारत की अर्थव्यवस्था | भारत प्राचीन काल से व्यापार का केंद्र रहा है | सीन हर्किन के अनुसार सत्रहवी शताब्दी तक भारत और चीन का हिस्सा दुनिया की जीडीपी में लगभग ६० से ७० % तक हुआ करता था | भारत का व्यापार दुनिया के कई देशों में फैला हुआ था | यही नहीं कैम्ब्रिज के इतिहासकार एंगस मेडिसन के अनुसार – १७०० तक दुनिया की आय में भारत का २२.६ % हिस्सा था , जो लगभग सारे यूरोप की आय के हिस्से के बराबर था | पर अंग्रेजों के आने के बाद उनके शासन के बाद १९५२ तक यह हिस्सा घटकर  सिर्फ ३.८ % तक रह गया | इसका मुख्य कारण मुख्यतः अंग्रेजों की तथा ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत विरोधी नीतियाँ थी , इन सब कारणों से भारत के उद्योग नष्ट होते चले गए तथा किसान विरोधी नीतियों और अतिरिक्त करों से किसान तबाह हो गए | इसी कारण बाद में भारत में अकाल भी पढ़े और कई लोगों को अपनी जान गंवानी पढ़ी | इसक...

| *जानियें, चार-युग और उनकी विशेषताएं* |

|  *जानियें, चार-युग और उनकी विशेषताएं* | *'युग'* शब्द का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। जैसे  सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग आदि । यहाँ हम चारों युगों का वर्णन करेंगें। युग वर्णन से तात्पर्य है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई, एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय देना। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है - *सत्ययुग* – यह प्रथम युग है इस युग की विशेषताएं इस प्रकार है - इस युग की पूर्ण आयु अर्थात् कालावधि – 17,28,000 वर्ष होती है । इस युग में मनुष्य की आयु – 1,00,000 वर्ष होती है । मनुष्य की लम्बाई – 32 फिट (लगभग) [21 हाथ] सत्ययुग का तीर्थ – पुष्कर है । इस युग में पाप की मात्र – 0 विश्वा अर्थात् (0%) होती है । इस युग में पुण्य की मात्रा – 20 विश्वा अर्थात् (100%) होती है । इस युग के अवतार – मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह (सभी अमानवीय अवतार हुए) है । अवतार होने का कारण – शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का...

--------------- " The Great Game - 1 " ----------

--------------- " The Great Game - 1 " ---------- अगर आप  इतिहास को गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि वर्तमान में विश्व की महाशक्तियों में एक उसी प्रकार की आपाधापी और लेनदेन का खेल चल रहा है जैसा कि 15वीं - 16वीं शताब्दी में यूरोपीय शक्तियों में उपनिवेशीकरण को लेकर विश्व की बंदरबांटको लेकर चला था । उपनिवेशीकरण ने औद्यौगिक क्रांति को सफल बनाकर पश्चिम को आर्थिक रूप से तो शक्तिशाली बना दिया परंतु  औद्योगिक क्रांति और पूँजीवाद के फलस्वरूप ' बाजार और मांग ' की आवश्यकता ने एक ऐसे भस्मासुर को जन्म दिया जिसके कारण पृथ्वी के असीम संसाधन भी कम पड़ने लगे हैं । इस भस्मासुर का नाम है ' उपभोक्तावाद ' और ये एक ऐसा असुर भी है जिसकी भूख अगर शांत ना की जाये तो यह मानव सभ्यता को ही निगल लेगा और सबसे बुरी बात ये है कि इसके उदर में जितना भोजन डाला जाता है , इसकी भूख उतनी ही बढती जाती है जिसके कारण पृथ्वी के संसाधन चुकते जा रहे हैं और पृथ्वी एक गंभीर ' Ecological crisis ' से गुजर रही है जिसका नाम है ' Decline Carrying Capacity ' जिसे सरल शब्दों में कहूँ तो अपने अपने क्ष...