वर्षमीमांसा
वर्षमीमांसा !
ज्योतिषीय साक्ष्य (astronomical evidence) कालज्ञान के लिए परम प्रमाण होता है। यह प्रमाण जिन बातों से बनता है वे हमें प्रथमदृष्ट्या असुविधाजनक ही प्रतीत होती हैं।
यद्यपि पूर्वकाल में भारतीय ज्योतिषी बहुत प्रकार के वर्षों का व्यवहार करते थे तथापि वर्तमान काल के योरोपियन ज्योतिषी भी न्यूनातिन्यून 4 प्रकार के वर्षों को अनिवार्य मानते हैं —
1. नाक्षत्र वर्ष (Sidereal year)
2. ऋतुवर्ष (Tropical year)
3. दीर्घाक्ष वर्ष (Anomalistic year)
4. राहु वर्ष (Eclipse year)
नाक्षत्र वर्ष — भचक्र के किसी निश्चित तारेे की सीध में सूर्य की स्थिति से आरम्भ करके पुन: उसी तारे की सीध में सूर्य की स्थिति तक का समय एक “नाक्षत्र वर्ष" कहलाता है। यही पृथ्वी द्वारा सूर्य के “पूर्ण परिक्रमण" की अवधि है। इसका मान है —
365·256363 दिन अथवा
365 दिन 6 घण्टे 9 मिनट 9·8 सेकण्ड।
ऋतुवर्ष — वर्ष में 2 संपात होते हैं - वसन्त संपात (Vernal equinox) व शरद् संपात (Autumnal equinox)। परिक्रमण-पथ के जिन बिन्दुओं पर पृथ्वी के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव सूर्य से समान दूरी बनाते हैं, वे संपात कहलाते हैं।
सूर्य की किसी एक संपात में स्थिति से आरम्भ करके पुन: उसी संपात में स्थिति तक का समय एक “ऋतुवर्ष" कहलाता है। यही वास्तविक वर्ष है। पृथ्वी का लगभग 23·5 अंश नत ध्रुवाक्ष पूर्व से पश्चिम की ओर डोलन कर रहा है, फलत: संपात भी पश्चिम की ओर गति कर रहा है जबकि पृथ्वी पूर्व की ओर गति कर रही है। अत: किसी संपात में सूर्य की पुनर्स्थिति परिक्रमण पूर्ण होने से लगभग 20·4 मिनट पूर्व ही हो जाती है अर्थात् ऋतुवर्ष का मान नाक्षत्र वर्ष से न्यून होता है। इसका मान है —
365·242190 दिन अथवा
365 दिन 5 घण्टे 48 मिनट 45·2 सेकण्ड।
दीर्घाक्ष वर्ष — पृथ्वी का परिक्रमण-पथ दीर्घवृत्ताकार है तथा सूर्य इस दीर्घवृत्त के दीर्घाक्ष के मध्य-बिन्दु पर न होकर उससे एक ओर हटा हुआ है। अत: दीर्घाक्ष का एक शीर्ष सूर्य के निकट है जो उपसौर शीर्ष कहलाता है तथा दूसरा शीर्ष दूर है जो अपसौर शीर्ष कहलाता है। उपसौर तथा अपसौर शीर्ष में पृथ्वी की स्थिति क्रमश: “उपसौरिका" (Perihelion) तथा “अपसौरिका" (Aphelion) कहलाती है।
उपसौरिका से पुन: उपसौरिका तक का समय एक “दीर्घाक्ष वर्ष" कहलाता है। परिक्रमण-पथ का दीर्घाक्ष पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन कर रहा है, अत: दीर्घाक्ष वर्ष का मान नाक्षत्र वर्ष से लगभग 4·7 मिनट अधिक है। इसका मान है —
365·259633 दिन अथवा
365 दिन 6 घण्टे 13 मिनट 52·5 सेकण्ड।
राहु वर्ष — चन्द्रमा का पृथ्वी-परिक्रमण-पथ (चन्द्र-पथ) पृथ्वी के सूर्य-परिक्रमण-पथ (पृथ्वी-पथ) के समानान्तर (0 अंश पर) न होकर उससे लगभग 5·15 अंश का कोण बनाता है, अत: केवल 2 बिन्दुओं पर ही चन्द्र-पथ पृथ्वी-पथ से मिलता है, इन बिन्दुओं को क्रमश: राहु (ascending node) व केतु (descending node) कहते हैं। फलत: जिस पूर्णिमा में चन्द्रमा राहु अथवा केतु में होता है, उसी पूर्णिमा को चन्द्र-ग्रहण होता है। इसी प्रकार जिस अमावास्या में चन्द्रमा राहु अथवा केतु में होता है, उसी अमावास्या को सूर्य-ग्रहण होता है। यदि चन्द्र-पथ सूर्य-पथ के समानान्तर होता तो प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्र-ग्रहण तथा प्रत्येक अमावास्या को सूर्य-ग्रहण होता।
राहु व केतु को मिलाने वाली रेखा वर्ष में 2 बार सूर्य की ओर संकेत करती है। एक बार राहु सूर्य की ओर एवं केतु सूर्य के परे होता है तथा दूसरी बार राहु सूर्य के परे एवं केतु सूर्य की ओर होता है। संपातों की भाँति ये स्थितियाँ भी परिक्रमण-पथ पर पश्चिम की ओर गति करती हैं। इन दोनों स्थितियों में से किसी एक से आरम्भ करके उसकी पुनरावृत्ति में लगा समय एक “राहु वर्ष" होता है। इसका मान है —
346·620076 दिन अथवा
346 दिन 14 घण्टे 52 मिनट 52·5 सेकण्ड।
इन चारों प्रकार के वर्षों के स्वरूप-भेद के कारण ही किसी घटना के अनेक पक्ष हो जाते हैं जिन्हें ज्योतिषीय साक्ष्य (astronomical evidences) कहा जाता है। अत: इन चारों में से जितने अधिक प्रकार के वर्षों के सापेक्ष किसी घटना का विवरण अंकित कर दिया जाएगा उतनी ही प्रामाणिकता से उस घटना का ठीक-ठीक काल बताना भी सम्भव हो पाएगा। अत: केवल एक ही अथवा एक ही प्रकार का वर्ष मनाया जाए ऐसा आग्रह रखने वाले पुनर्विचार करें कि कहीं वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी तो नहीं मार रहे हैं ?
ज्योतिषीय साक्ष्य (astronomical evidence) कालज्ञान के लिए परम प्रमाण होता है। यह प्रमाण जिन बातों से बनता है वे हमें प्रथमदृष्ट्या असुविधाजनक ही प्रतीत होती हैं।
यद्यपि पूर्वकाल में भारतीय ज्योतिषी बहुत प्रकार के वर्षों का व्यवहार करते थे तथापि वर्तमान काल के योरोपियन ज्योतिषी भी न्यूनातिन्यून 4 प्रकार के वर्षों को अनिवार्य मानते हैं —
1. नाक्षत्र वर्ष (Sidereal year)
2. ऋतुवर्ष (Tropical year)
3. दीर्घाक्ष वर्ष (Anomalistic year)
4. राहु वर्ष (Eclipse year)
नाक्षत्र वर्ष — भचक्र के किसी निश्चित तारेे की सीध में सूर्य की स्थिति से आरम्भ करके पुन: उसी तारे की सीध में सूर्य की स्थिति तक का समय एक “नाक्षत्र वर्ष" कहलाता है। यही पृथ्वी द्वारा सूर्य के “पूर्ण परिक्रमण" की अवधि है। इसका मान है —
365·256363 दिन अथवा
365 दिन 6 घण्टे 9 मिनट 9·8 सेकण्ड।
ऋतुवर्ष — वर्ष में 2 संपात होते हैं - वसन्त संपात (Vernal equinox) व शरद् संपात (Autumnal equinox)। परिक्रमण-पथ के जिन बिन्दुओं पर पृथ्वी के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव सूर्य से समान दूरी बनाते हैं, वे संपात कहलाते हैं।
सूर्य की किसी एक संपात में स्थिति से आरम्भ करके पुन: उसी संपात में स्थिति तक का समय एक “ऋतुवर्ष" कहलाता है। यही वास्तविक वर्ष है। पृथ्वी का लगभग 23·5 अंश नत ध्रुवाक्ष पूर्व से पश्चिम की ओर डोलन कर रहा है, फलत: संपात भी पश्चिम की ओर गति कर रहा है जबकि पृथ्वी पूर्व की ओर गति कर रही है। अत: किसी संपात में सूर्य की पुनर्स्थिति परिक्रमण पूर्ण होने से लगभग 20·4 मिनट पूर्व ही हो जाती है अर्थात् ऋतुवर्ष का मान नाक्षत्र वर्ष से न्यून होता है। इसका मान है —
365·242190 दिन अथवा
365 दिन 5 घण्टे 48 मिनट 45·2 सेकण्ड।
दीर्घाक्ष वर्ष — पृथ्वी का परिक्रमण-पथ दीर्घवृत्ताकार है तथा सूर्य इस दीर्घवृत्त के दीर्घाक्ष के मध्य-बिन्दु पर न होकर उससे एक ओर हटा हुआ है। अत: दीर्घाक्ष का एक शीर्ष सूर्य के निकट है जो उपसौर शीर्ष कहलाता है तथा दूसरा शीर्ष दूर है जो अपसौर शीर्ष कहलाता है। उपसौर तथा अपसौर शीर्ष में पृथ्वी की स्थिति क्रमश: “उपसौरिका" (Perihelion) तथा “अपसौरिका" (Aphelion) कहलाती है।
उपसौरिका से पुन: उपसौरिका तक का समय एक “दीर्घाक्ष वर्ष" कहलाता है। परिक्रमण-पथ का दीर्घाक्ष पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन कर रहा है, अत: दीर्घाक्ष वर्ष का मान नाक्षत्र वर्ष से लगभग 4·7 मिनट अधिक है। इसका मान है —
365·259633 दिन अथवा
365 दिन 6 घण्टे 13 मिनट 52·5 सेकण्ड।
राहु वर्ष — चन्द्रमा का पृथ्वी-परिक्रमण-पथ (चन्द्र-पथ) पृथ्वी के सूर्य-परिक्रमण-पथ (पृथ्वी-पथ) के समानान्तर (0 अंश पर) न होकर उससे लगभग 5·15 अंश का कोण बनाता है, अत: केवल 2 बिन्दुओं पर ही चन्द्र-पथ पृथ्वी-पथ से मिलता है, इन बिन्दुओं को क्रमश: राहु (ascending node) व केतु (descending node) कहते हैं। फलत: जिस पूर्णिमा में चन्द्रमा राहु अथवा केतु में होता है, उसी पूर्णिमा को चन्द्र-ग्रहण होता है। इसी प्रकार जिस अमावास्या में चन्द्रमा राहु अथवा केतु में होता है, उसी अमावास्या को सूर्य-ग्रहण होता है। यदि चन्द्र-पथ सूर्य-पथ के समानान्तर होता तो प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्र-ग्रहण तथा प्रत्येक अमावास्या को सूर्य-ग्रहण होता।
राहु व केतु को मिलाने वाली रेखा वर्ष में 2 बार सूर्य की ओर संकेत करती है। एक बार राहु सूर्य की ओर एवं केतु सूर्य के परे होता है तथा दूसरी बार राहु सूर्य के परे एवं केतु सूर्य की ओर होता है। संपातों की भाँति ये स्थितियाँ भी परिक्रमण-पथ पर पश्चिम की ओर गति करती हैं। इन दोनों स्थितियों में से किसी एक से आरम्भ करके उसकी पुनरावृत्ति में लगा समय एक “राहु वर्ष" होता है। इसका मान है —
346·620076 दिन अथवा
346 दिन 14 घण्टे 52 मिनट 52·5 सेकण्ड।
इन चारों प्रकार के वर्षों के स्वरूप-भेद के कारण ही किसी घटना के अनेक पक्ष हो जाते हैं जिन्हें ज्योतिषीय साक्ष्य (astronomical evidences) कहा जाता है। अत: इन चारों में से जितने अधिक प्रकार के वर्षों के सापेक्ष किसी घटना का विवरण अंकित कर दिया जाएगा उतनी ही प्रामाणिकता से उस घटना का ठीक-ठीक काल बताना भी सम्भव हो पाएगा। अत: केवल एक ही अथवा एक ही प्रकार का वर्ष मनाया जाए ऐसा आग्रह रखने वाले पुनर्विचार करें कि कहीं वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी तो नहीं मार रहे हैं ?
Comments
Post a Comment