'''बांटो,काटो......लूटो!!, इतिहास की सबसे बड़ी साजिश।
'''बांटो,काटो......लूटो!!,
इतिहास की सबसे बड़ी साजिश।
इन हजार सालो के "गजनी,...गोरी...गुलाम...खिलजी.....सैय्यद....तुगलक...शाह..बहमन....मुगल.......अंग्रेज....कांग्रेस आदि विदेशी शासकों ने सनातन योद्धाओ को बडी चालाकी से 'दलित,और असहाय में बदल डाला।
जिन्हें हम सम्मान के शिखर पर होना था वे बड़ी चालाकी से जमींदोज हो गए।
सात सौ बारह मे मुहम्मद बिन कासिम के मुस्लिम आक्रमण-जीत-फिर बुरी तरह पराजय के बाद देश.... जाग सा गया,इसके बाद के हर आक्रमण के दौरान कम से कम दो राजे मिलकर लड़े..और दुशमनों को धूल चटाया.. अगले तीन सौ वर्ष तक राष्ट्र पूरी तरह सुरक्षित रहा॥
वे कौन थे जानें।
यह दसवीं शताब्दी से पहले का मामला है,,.....
प्रतिहार शासक आदिवाराह नाम से जाने जाते थे ,उनकी राजमुद्रा पर भी वराह का रूप अंकित उन्होंने करवाया क्योंकि वे भी भगवान् वाराह की तरह हिन्दुभूमि को म्लेच्छो के काल-पाश में जाने से बचा पाए थे,और म्लेच्छो के अधिकार में गयी हुयी भूमि को उनसे वापस छीन कर उसका उद्धार करने में सफल हो गए थे।
इस्लाम की स्थापना तथा अरबो का रक्तरंजीत साम्राज्य विस्तार सम्पूर्ण विश्व के लिए एक भयावह घटना है , मोहम्मद पैगम्बर के मृत्यु के बाद अरबो का उत्थान हुआ था।
100 वर्ष भीतर ही उन्होंने पश्चिम में स्पेन से पूर्व में चीन तक अपने साम्राज्य को विस्तारित किया।वे जिस भी प्रदेश को जीतते वहा के लोगो के पास केवल दो ही विकल्प रखते, या तो वे उनका धर्म स्वीकार कर ले या मौत के घाट उतरे। उन्होंने पर्शिया जैसी महान संस्कृतियों ,सभ्यताएं,शिष्टाचारो को रौंध डाला, मंदिर, चर्च, पाठशालाए,ग्रंथालय नष्ट कर डाले। कला और संस्कृतियों को जला डाला सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मचा डाला।जहां भी इस्लाम गया दूसरी पूजा-पद्धतियों,इतिहास चिन्हो,परंपराओ,संस्कृति के समूल नाश का के बाद स्थापित हुआ....।
पूरे अरब-,तुर्क,ग्रीस,इजिप्ट,स्पेन,अफ्रीका,इरान-यूरेशिया के कुछेक महासत्ताओ को कुचलने-लूटने-धर्मांतरित करने के बाद अरबो के खुनी पंजे हिन्दुस्तान की भूमि तरफ बढे।
ईरान में पारसी थे,जाति की अन्तरसामाजिक बचाव व्यवस्था न रह जाने के कारण एक बार की ही हार के बाद ही इस्लाम ने पर्शिया को ग्रहण कर लिया।यही अफगानिस्तान,बलूच,जॉर्डन आदि बौध्द राज्यो में हुआ। राजा के हारने के बाद सेकंडरी संघर्ष व्यवस्था नही रह गयी..उन सभी को इस्लाम निगल गया।असल में उन्हें यह लगता था कुछ दिनों में 'अरबी,हट जायेंगे और हम पुनः अपने धार्मिक रीति-रिवाजों को अपना लेंगे.... पर इस्लाम ने इसके लिए कोई विकल्प नही छोड़ता था...जल्द ही मस्जिदों और मुल्लो का नेटवर्क उनके अतीत को निगल लेता।
उसके बाद हिंदुस्तान की तरफ रुख किया।बहुत कठिन लड़ाई और तमाम धोखाघड़ियो से सिंध के राजा दाहिर की पराजय हुई और अरबो की सिंध के रूप में भारत में पहली सफलता मिली थी।सिंध विजय के तुरंत बाद अरबो ने सम्पूर्ण हिन्दुस्तान को जीतने व वहां की संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट कर इस्लामी राज्य स्थापित करने के लिए सेनापति 'अब्दुल-रहमान-जुनैद-अलगारी और अमरु को सिंध का सुबेदार बनाकर भेजा।
जुनैद ने पुरे शक्ति के साथ गुजरात,मालवा और राजस्थान के प्रदेशो पर हमला बोल दिया। उस समय वहा बहुत सी छोटी रियासते राज्य करती थी।दिल्ली में चौहानों का राजवंश स्थापित नही हुआ था।वह तोमरो के पास था जो कछवाहों के सूबेदार थे।जैसलमेर के भाटी,अजमेर के चौहान,भीनमाल के चावड़ा आदि ने डट कर अरबी सेना का मुकाबला किया पर वे सफल नहीं हो पाए और एक के बाद एक टूटने लगे।अरबी सेना सुगठित और प्रशिक्षित थी और उनके सामने जेहाद का गहरा भौतिक उद्देश्य था जबकि भारत के छोटे-छोटे राज्य स्वार्थ से ऊपर उठ ही नही पा रहे थे।
जैसलमेर के भाटी शासको की पराजय के बाद वहा के प्रदेशो पर अरबो का अधिकार हो गया।इन सबको हराकर जुनैद ने मालवा पर आक्रमण कर दिया,जहा की राजधानी थी उज्जैन,प्रतिहार राजपूत साम्राज्य का शासन था।यह एक बड़ा साम्राज्य जैसा था जिसके अंतर्गत लगभग सारा उत्तर भारत था
बिहार-बंगाल का बड़ा हिस्सा भी इनके सूबेदारों से शासित था।अरबी आक्रमण के समय प्रतिहारो को सुयोग्य शासक का नेतृत्व मिल गया था। सम्राट नागभट्ट प्रतिहार...यह चरित्रवान-दूरदर्शी और संगठक प्रवृत्तियों से भरे थे...लम्बे दृष्टि की वजह से भारत को अरबो से तो छुटकारा मिला ही भारत की विविधता की ताकत बची रह सकी ।
अरबी सेना का नागभट्ट के साथ युद्ध हुआ जिसमे अरबी सेना को वापस लौटना पडा क्योंकि नागभट्ट ने उनका कडा प्रतिकार किया था।परन्तु वे लौट कर पूर्ण शक्ति के साथ आयेंगे ये निश्चित था। सम्पूर्ण भारत पर अब अरबो के भीषण आक्रमण से होने वाले महाविनाश का खतरा मंडराने लगा,और सम्पूर्ण भारत की जनता किसी रक्षक-पुरुष की प्रार्थना कर रही थी।.
उन दिनों चित्तौड़ और मेवाड़ से मौर्य साम्राज्य को हटाकर नागदा के 'गहलोत,वंशी रावलो ने वहां अपना अधिकार जमा लिया था।नागभट्ट की तरह वो भी अरबो के संभावित् खतरे को जानते थे। इसीलिए उन्होंने अरबो के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा स्थापित किया जिसमे अनेक पूर्व ,पश्चिमी,उत्तर और दक्षिणी राजाओ ने हिस्सा लिया।
उन दिनों दक्षिण में शक्तिशाली "चालुक्यों,का शासन था।
नागभट्ट अपनी सारी सेना और शक्त के साथ रावलो को मिलाकर आगे बढ़ा।चालुक्यो ने अपने युवा युवराज अव्निजनाश्रय पुल्केशी को भी भारी सेना के साथ नागभट्ट के साथ भेज दिया और इस प्रकार एक महान सेना गठित हुई। जिसकी संख्या एक लाख से अधिक थी। मारवाड़ के आसपास सन 736 ई. में अरबो की विशाल सेना से भीषण संग्राम हुआ। दिन ढलने से पूर्व ही अरबो की सेना की मुख्य टुकड़ी काट कर फेक दी गयी,
बिलकुल गाजर-मूली की तरह। सूर्यास्त होने से पूर्व इने-गिने अरबी सैनिको को छोड़ के बाकी सारे वध कर दिए गए।इस तरह के सामूहिक वध का यह अकेला उदाहरण हैं।
,जुनैद अपने अंगरक्षको के साथ भाग निकला ,युद्ध में आये हुए घावों के कारण उसी रात उसकी मृत्यु हो गयी।कुछ प्रमाण इस बात के भी मिले हैं कि उनको पूरी टुकड़ी सहित घेर कर मार दिया गया।
सम्पूर्ण अरेबिया में उनके बड़े सेनापति के अपनी सेना के साथ मारे जाने से हाहाकार मच गया।
रावलों ने विजय प्राप्त होने के पश्चात सिंध पर आक्रमण कर वहां भी मुसलमानों को उखाड़ फेका।सिन्धु नदी को लांघकर इरान के दो प्रदेशो को विजय कर... सुलतान हैबत्खान की पुत्री से विवाह किया।
अरबो की भारत में भीषण पराजय होने से उनकी प्रतिष्ठा को कलंक लग गया था जिसे धोकर उस खोयी हुयी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने और प्रतिशोध की भावना से अरब भारत के विरुद्ध एक दूसरा अभियान छेड़ने के लिए शाक्ति संचय में लग गए।
उन्होंने इरान,ईराक,इजिप्त आफ्रिका आदि से सेनाये और सेनानायको को इकठ्ठा किया और तामीम के नेतृत्व में भारत तथा नागभट्ट की और कूच कर दिया।अत्यंत दूर दृष्टी रखने वाले नागभट्ट ये जानते थे की ये एक ना एक दिन होना ही था,इसलिए वे दक्षिण में राष्ट्रकूट से हो रहे युद्धों को छोड़कर वापस उज्जैन आये और वहा से सीधे चित्तौड़ पहुचे जहां खुमान रावल राज्य करते थे।
नागभट्ट ने खुमान को उसके पिता बाप्पा रावल ने किये हुए संयुक्त युद्ध को याद दिलाया और पुनः एक बार वैसा ही मोर्चा तथा सेना संगठन अरबो के विरुद्ध करने का आवाहन किया जिसे खुमान ने स्वीकार किया ,एक बार फिर पुल्केशी परमारों ,सोलंकियो ने मोर्चे में सहभाग लिया और महासेना का गठन हुआ ।
इस बार मोर्चे का नेतृत्व पूर्ण रूप से नागभट्ट के हाथ में था ,नागभट्ट ने अनोखी बात सोची की इस से पहले की शत्रु हम पर वार करे हम खुद ही शत्रु पर कूच करे।।
इस से पहले की अरबी सेना सिन्धु नदी को लांघ पाती नागभट्ट ने उन पर आक्रमण किया ,जो युद्ध कुछ सप्ताह बाद होना था वो कुछ पहले हो जाने से अरब चकित हो गए,भीषण संग्राम में रणभूमि म्लेच्छो के रक्त से तर हुयी …..
सूर्यास्त होने से पूर्व तामीम का शीश हवा में लहरा गया और सेना नायक की मृत्यु होने से युद्ध में अरबो की पूर्ण रूप से पराजय हुई।भागते हुए अरबो का राजपूत सेना ने कई दूर तक पीछा किया ,कई स्थानों पर अरब वापस खड़े होते गए और उखड़ते गए।मुस्लिम इतिहासकारों ने अरबो की इस पराजय का वर्णन “फुतुहूल्बल्दान” नामक ग्रन्थ में किया है जिसमे अरब लिखते है की हिन्दुओ ने अरबी मुसलमानों के लिए थोड़ी भी जमीं नहीं छोड़ी इसलिए उन्हें भागकर दरिया के उस पार एक महफूज नगर बसाना पड़ा|दुनिया भर मे इस्लामिक युद्दों की जीत के बाद यह पहली बार था जब वे बुरी तरह बार-बार हार रहे थे...... भारत में अपनी सेना की हानि होने की वजह से अपनी बची हुयी प्रतिष्ठा वापस मिलाने अरबो ने ये निश्चय कर लिया की भारत के किसी भी हिस्से को अब छुआ नहीं जाए और इसीलिए अगले कुछ सालो तक अरबो ने भारत खंड में पैर नहीं रखा॥
उन्होंने जान लिया सुगठित और एकत्रित हिन्दू से वे कभी जीत नही सकते।बाद के आक्रमण इस तरह किये जाते थे कि सामने वाला 'एकल,,ही लड़े।संगठित रूप से आने पर वह खुद ही पीछे हो लेते।
उन्होंने विखटन के ढेर सारे 'कांसेप्ट,भारत में बोने शुरू कर दिये।
उन्होंने छोटे राज्यो को मान्यता के साथ तमाम व्यापारिक सम्बन्ध इसी नजरिये से बनाना शुरू किया।
वह समझ चुके थे की छोटे-छोटे जातीय राज्य समूह सामाजिक सुरक्षा चक्र के लिए बनाये गए हैं अगर इन्हें तोडा या छुआ तो सीधे-सीधे समाप्त कर दिए जाएंगे। तकरीबन तीन सौ सालों बाद गजनवी के छोटे राज्यो पर केंद्रित आक्रमण भी उसी सीख का परिणाम थे।भारत में मुस्लिम शासन के दौरान इस बात का ख़ास ख्याल रखा जाने लगा कि सबसे अलग-अलग करके बातें करो।कट्टर जाति प्रथा इसी युग की देन है।
यदि नागभट्ट और रावलो का नेतृत्व उस वक्त न मिला होता (राज्यों में बटे भारत को एक कर अरबो के विरुद्ध ना खड़े होते) तो आज हम 'पवनुद्दीन,के रूप में जेहाद कर रहे होते। हमें उन दूरदर्शी-धर्मवीरो का अहसान मानना चाहिए।
अरबी राक्षसों के मुह में जाने से प्रतिहारो ने हिन्दुभूमि को बचाया और अपने आप को "आदिवाराह,, की उपाधि दी॥अगले तीन सौ सालों यानी ईस्वी 1003 तक फिर किसी मुस्लिम आक्रमणकारी की हिम्मत भारत की तरफ देखने की भी न पड़ी।
बेसिकली तभी से सूअर उनका शत्रु है...वे सूअरो से बहुत डरते हैं॥
इन दोनों ही वंशो के पतन के बाद गजनवी ने देश पर आक्रम किया उसे विद्याधर चंदेल ने पठखनी दी॥
प्रतिहार वंश के साम्राज्य पर बाद मे आठ छोटे-छोटे राजवंश खड़े हो गए जो आपस मे लड़ते रहते थे....गजनवी ने इसी का लाभ उठाया था।
.... इन 800 वर्षों मे जो राजे-सामंत थे......वे बड़े युद्धवीर थे।सत्ता छीनने के बाद मुस्लिम विजेताओ ने उन्हे ही मार-मार कर दलित जातियों मे बदल दिया...आज की साऱी दलित जातियाँ उनही राजाओ और उनके सैनिको की संताने है.....आठ सौ सालो के शासन के दौरान उन्होने उनके मनोविज्ञान को भी बदल कर रख दिया है क्योकि उनसे ही असली डर लगता है..॥
बाद के आठ सौ सालों तक इस्लामिक शासन में उनका धर्म-परिवर्तन कराने के लिए सताया जाता रहा,वे जान बचा-बचा दूर-देहात जंगलो में जाकर अभावो में रहने लगे।इन वर्षों के अत्याचारो कोल सहन करने के बावजूद उनका 'धर्म,न डिगा।
वे प्रतिहार अब दलित जातियाँ हैं जो मध्य-प्रदेश से गुजरात,राजस्थान,पंजाब,उत्तर प्रदेश और बिहार-बंगाल तक उनके वंशज एससी जातियों के रूप में हैं।
रावल अब माली और मीणा(एससी) जातियों के रूप में हैं,भाटी गुर्जर जातियों के रूप में,कच्छवाह अब दलित हैं,पासी अब दलित है,सोलंकियों,चालुक्यों,के सारे असल वंशज पिछडी जातियों में आते हैं....
(ध्यान रहे परिहार बहुत बाद के हैं जो चन्देलों के 'सामन्त,थे।)
चँवर राजवंश चमार जाति में बदल चुका है,कोल राजवंश जिसने दो सौ साल रक्षा की अब कोरी में बदल चुका है,बंगाल का पाल और सेन राजवँश गड़रिये की एक जाति बनाया जा चुका है।मौखरी,गुप्त अब दलित कहलाते हैं।कल्चुरी और चौहानो के साथ-साथ तमाम ब्राम्हण को मार-मार धर्म-भंग करके 'भंगी, जातियों में बदल दिया गया।..मांडलिक राजे केवल ''मंडल, रूप में बदल गए।'राष्ट्रकूट वंश, आज के मावले-मराठी हैं। 600 साल तक काश्मीर के शासक रहे 'कर्कोट,अब कुरकुट एससी जाति है।लोहरो के वंशज पंजाब भर में फैले हैं।चेदि भी अब ड्लित हैं।कम्बोज भी अब एससी जातियों में आते हैं।कूर्म और गंग क्षत्रिय कुर्मी जाती कहलाए,जाट-जाटव दोनों ही मार्शल थे।चौहानों का एक कुल 'घोसियो,में बदल चुका है।थारू,कारू,जेसिन देश के कोने कोने में एससी-एसटी समुदाय जान-धर्म बचा छुपे थे(शोध और मौलिक कार्य की जरूरत है)
यादवो का साम्राज्य खजियों ने खतम किया।
इनमे से अधिकाँश इस्लामी शासन काल में जबर्दस्ती मुसलमान बनने के डर से या अत्याचार से दलित जबर्दस्ती बनाये गए थे...चार पीढ़ियों बाद तो खुद ही मनोवैज्ञानिक परिवर्तन हो जाता है।
गहन शोध किया जाए तो निकल कर आता है 'हिंसक आक्रामक अरबी "अर्थ-व्यवस्थात्मक संस्कृति,शुरुआती दौर के तीन सौ सालों में यह समझ चुकी थी कि चक्रात्मक सुरक्षा प्रणाली वाले इसे राष्ट्र में राज्य जीत लेना तो आसान है पर उसके शक्तिशाली संस्कृति के आगे ठहर पाना मुश्किल है......तो उनके मजहबी संगठन ने दूरगामी 'तोड़ो-बांटो-काटो,, रणनीति का सहारा लेना शुरू किया।
आज उसके दुष्परिणाम भी सामने है।
अंग्रेजो-वामियों और मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्दू-समाज के विखण्डन की दृष्टि से ''इस दृष्टि, की,,धारणा स्थापित की है।उन्होंने फर्जी प्रमाण खोजे,तर्क गढ़े और इतिहास की किताबो में थोप दिए हैं।
अन्ग्रेजो के बाद की सरकारों को "विखण्डित समाज,, में स्थाई सत्ता लाभ दीखता था इसलिए इतिहास पाठ्यक्रमो को यथासम्भव उनकी दृष्टिकोण से ही पढ़ाते रहे।पीढ़ी दर पीढ़ी हारो का इतिहास पढ़ते-पढ़ते,इम्तिहान देते,कम्पीटीशन निकालते,बच्चो को पढ़ाते वह ''थोपित, बाते हमें सच लगने लगी हैं।
कुछ तो बाकायदे तर्क करने उतर पड़ते हैं।
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पवन त्रिपाठी
धन्यवाद
इतिहास की सबसे बड़ी साजिश।
इन हजार सालो के "गजनी,...गोरी...गुलाम...खिलजी.....सैय्यद....तुगलक...शाह..बहमन....मुगल.......अंग्रेज....कांग्रेस आदि विदेशी शासकों ने सनातन योद्धाओ को बडी चालाकी से 'दलित,और असहाय में बदल डाला।
जिन्हें हम सम्मान के शिखर पर होना था वे बड़ी चालाकी से जमींदोज हो गए।
सात सौ बारह मे मुहम्मद बिन कासिम के मुस्लिम आक्रमण-जीत-फिर बुरी तरह पराजय के बाद देश.... जाग सा गया,इसके बाद के हर आक्रमण के दौरान कम से कम दो राजे मिलकर लड़े..और दुशमनों को धूल चटाया.. अगले तीन सौ वर्ष तक राष्ट्र पूरी तरह सुरक्षित रहा॥
वे कौन थे जानें।
यह दसवीं शताब्दी से पहले का मामला है,,.....
प्रतिहार शासक आदिवाराह नाम से जाने जाते थे ,उनकी राजमुद्रा पर भी वराह का रूप अंकित उन्होंने करवाया क्योंकि वे भी भगवान् वाराह की तरह हिन्दुभूमि को म्लेच्छो के काल-पाश में जाने से बचा पाए थे,और म्लेच्छो के अधिकार में गयी हुयी भूमि को उनसे वापस छीन कर उसका उद्धार करने में सफल हो गए थे।
इस्लाम की स्थापना तथा अरबो का रक्तरंजीत साम्राज्य विस्तार सम्पूर्ण विश्व के लिए एक भयावह घटना है , मोहम्मद पैगम्बर के मृत्यु के बाद अरबो का उत्थान हुआ था।
100 वर्ष भीतर ही उन्होंने पश्चिम में स्पेन से पूर्व में चीन तक अपने साम्राज्य को विस्तारित किया।वे जिस भी प्रदेश को जीतते वहा के लोगो के पास केवल दो ही विकल्प रखते, या तो वे उनका धर्म स्वीकार कर ले या मौत के घाट उतरे। उन्होंने पर्शिया जैसी महान संस्कृतियों ,सभ्यताएं,शिष्टाचारो को रौंध डाला, मंदिर, चर्च, पाठशालाए,ग्रंथालय नष्ट कर डाले। कला और संस्कृतियों को जला डाला सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मचा डाला।जहां भी इस्लाम गया दूसरी पूजा-पद्धतियों,इतिहास चिन्हो,परंपराओ,संस्कृति के समूल नाश का के बाद स्थापित हुआ....।
पूरे अरब-,तुर्क,ग्रीस,इजिप्ट,स्पेन,अफ्रीका,इरान-यूरेशिया के कुछेक महासत्ताओ को कुचलने-लूटने-धर्मांतरित करने के बाद अरबो के खुनी पंजे हिन्दुस्तान की भूमि तरफ बढे।
ईरान में पारसी थे,जाति की अन्तरसामाजिक बचाव व्यवस्था न रह जाने के कारण एक बार की ही हार के बाद ही इस्लाम ने पर्शिया को ग्रहण कर लिया।यही अफगानिस्तान,बलूच,जॉर्डन आदि बौध्द राज्यो में हुआ। राजा के हारने के बाद सेकंडरी संघर्ष व्यवस्था नही रह गयी..उन सभी को इस्लाम निगल गया।असल में उन्हें यह लगता था कुछ दिनों में 'अरबी,हट जायेंगे और हम पुनः अपने धार्मिक रीति-रिवाजों को अपना लेंगे.... पर इस्लाम ने इसके लिए कोई विकल्प नही छोड़ता था...जल्द ही मस्जिदों और मुल्लो का नेटवर्क उनके अतीत को निगल लेता।
उसके बाद हिंदुस्तान की तरफ रुख किया।बहुत कठिन लड़ाई और तमाम धोखाघड़ियो से सिंध के राजा दाहिर की पराजय हुई और अरबो की सिंध के रूप में भारत में पहली सफलता मिली थी।सिंध विजय के तुरंत बाद अरबो ने सम्पूर्ण हिन्दुस्तान को जीतने व वहां की संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट कर इस्लामी राज्य स्थापित करने के लिए सेनापति 'अब्दुल-रहमान-जुनैद-अलगारी और अमरु को सिंध का सुबेदार बनाकर भेजा।
जुनैद ने पुरे शक्ति के साथ गुजरात,मालवा और राजस्थान के प्रदेशो पर हमला बोल दिया। उस समय वहा बहुत सी छोटी रियासते राज्य करती थी।दिल्ली में चौहानों का राजवंश स्थापित नही हुआ था।वह तोमरो के पास था जो कछवाहों के सूबेदार थे।जैसलमेर के भाटी,अजमेर के चौहान,भीनमाल के चावड़ा आदि ने डट कर अरबी सेना का मुकाबला किया पर वे सफल नहीं हो पाए और एक के बाद एक टूटने लगे।अरबी सेना सुगठित और प्रशिक्षित थी और उनके सामने जेहाद का गहरा भौतिक उद्देश्य था जबकि भारत के छोटे-छोटे राज्य स्वार्थ से ऊपर उठ ही नही पा रहे थे।
जैसलमेर के भाटी शासको की पराजय के बाद वहा के प्रदेशो पर अरबो का अधिकार हो गया।इन सबको हराकर जुनैद ने मालवा पर आक्रमण कर दिया,जहा की राजधानी थी उज्जैन,प्रतिहार राजपूत साम्राज्य का शासन था।यह एक बड़ा साम्राज्य जैसा था जिसके अंतर्गत लगभग सारा उत्तर भारत था
बिहार-बंगाल का बड़ा हिस्सा भी इनके सूबेदारों से शासित था।अरबी आक्रमण के समय प्रतिहारो को सुयोग्य शासक का नेतृत्व मिल गया था। सम्राट नागभट्ट प्रतिहार...यह चरित्रवान-दूरदर्शी और संगठक प्रवृत्तियों से भरे थे...लम्बे दृष्टि की वजह से भारत को अरबो से तो छुटकारा मिला ही भारत की विविधता की ताकत बची रह सकी ।
अरबी सेना का नागभट्ट के साथ युद्ध हुआ जिसमे अरबी सेना को वापस लौटना पडा क्योंकि नागभट्ट ने उनका कडा प्रतिकार किया था।परन्तु वे लौट कर पूर्ण शक्ति के साथ आयेंगे ये निश्चित था। सम्पूर्ण भारत पर अब अरबो के भीषण आक्रमण से होने वाले महाविनाश का खतरा मंडराने लगा,और सम्पूर्ण भारत की जनता किसी रक्षक-पुरुष की प्रार्थना कर रही थी।.
उन दिनों चित्तौड़ और मेवाड़ से मौर्य साम्राज्य को हटाकर नागदा के 'गहलोत,वंशी रावलो ने वहां अपना अधिकार जमा लिया था।नागभट्ट की तरह वो भी अरबो के संभावित् खतरे को जानते थे। इसीलिए उन्होंने अरबो के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा स्थापित किया जिसमे अनेक पूर्व ,पश्चिमी,उत्तर और दक्षिणी राजाओ ने हिस्सा लिया।
उन दिनों दक्षिण में शक्तिशाली "चालुक्यों,का शासन था।
नागभट्ट अपनी सारी सेना और शक्त के साथ रावलो को मिलाकर आगे बढ़ा।चालुक्यो ने अपने युवा युवराज अव्निजनाश्रय पुल्केशी को भी भारी सेना के साथ नागभट्ट के साथ भेज दिया और इस प्रकार एक महान सेना गठित हुई। जिसकी संख्या एक लाख से अधिक थी। मारवाड़ के आसपास सन 736 ई. में अरबो की विशाल सेना से भीषण संग्राम हुआ। दिन ढलने से पूर्व ही अरबो की सेना की मुख्य टुकड़ी काट कर फेक दी गयी,
बिलकुल गाजर-मूली की तरह। सूर्यास्त होने से पूर्व इने-गिने अरबी सैनिको को छोड़ के बाकी सारे वध कर दिए गए।इस तरह के सामूहिक वध का यह अकेला उदाहरण हैं।
,जुनैद अपने अंगरक्षको के साथ भाग निकला ,युद्ध में आये हुए घावों के कारण उसी रात उसकी मृत्यु हो गयी।कुछ प्रमाण इस बात के भी मिले हैं कि उनको पूरी टुकड़ी सहित घेर कर मार दिया गया।
सम्पूर्ण अरेबिया में उनके बड़े सेनापति के अपनी सेना के साथ मारे जाने से हाहाकार मच गया।
रावलों ने विजय प्राप्त होने के पश्चात सिंध पर आक्रमण कर वहां भी मुसलमानों को उखाड़ फेका।सिन्धु नदी को लांघकर इरान के दो प्रदेशो को विजय कर... सुलतान हैबत्खान की पुत्री से विवाह किया।
अरबो की भारत में भीषण पराजय होने से उनकी प्रतिष्ठा को कलंक लग गया था जिसे धोकर उस खोयी हुयी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने और प्रतिशोध की भावना से अरब भारत के विरुद्ध एक दूसरा अभियान छेड़ने के लिए शाक्ति संचय में लग गए।
उन्होंने इरान,ईराक,इजिप्त आफ्रिका आदि से सेनाये और सेनानायको को इकठ्ठा किया और तामीम के नेतृत्व में भारत तथा नागभट्ट की और कूच कर दिया।अत्यंत दूर दृष्टी रखने वाले नागभट्ट ये जानते थे की ये एक ना एक दिन होना ही था,इसलिए वे दक्षिण में राष्ट्रकूट से हो रहे युद्धों को छोड़कर वापस उज्जैन आये और वहा से सीधे चित्तौड़ पहुचे जहां खुमान रावल राज्य करते थे।
नागभट्ट ने खुमान को उसके पिता बाप्पा रावल ने किये हुए संयुक्त युद्ध को याद दिलाया और पुनः एक बार वैसा ही मोर्चा तथा सेना संगठन अरबो के विरुद्ध करने का आवाहन किया जिसे खुमान ने स्वीकार किया ,एक बार फिर पुल्केशी परमारों ,सोलंकियो ने मोर्चे में सहभाग लिया और महासेना का गठन हुआ ।
इस बार मोर्चे का नेतृत्व पूर्ण रूप से नागभट्ट के हाथ में था ,नागभट्ट ने अनोखी बात सोची की इस से पहले की शत्रु हम पर वार करे हम खुद ही शत्रु पर कूच करे।।
इस से पहले की अरबी सेना सिन्धु नदी को लांघ पाती नागभट्ट ने उन पर आक्रमण किया ,जो युद्ध कुछ सप्ताह बाद होना था वो कुछ पहले हो जाने से अरब चकित हो गए,भीषण संग्राम में रणभूमि म्लेच्छो के रक्त से तर हुयी …..
सूर्यास्त होने से पूर्व तामीम का शीश हवा में लहरा गया और सेना नायक की मृत्यु होने से युद्ध में अरबो की पूर्ण रूप से पराजय हुई।भागते हुए अरबो का राजपूत सेना ने कई दूर तक पीछा किया ,कई स्थानों पर अरब वापस खड़े होते गए और उखड़ते गए।मुस्लिम इतिहासकारों ने अरबो की इस पराजय का वर्णन “फुतुहूल्बल्दान” नामक ग्रन्थ में किया है जिसमे अरब लिखते है की हिन्दुओ ने अरबी मुसलमानों के लिए थोड़ी भी जमीं नहीं छोड़ी इसलिए उन्हें भागकर दरिया के उस पार एक महफूज नगर बसाना पड़ा|दुनिया भर मे इस्लामिक युद्दों की जीत के बाद यह पहली बार था जब वे बुरी तरह बार-बार हार रहे थे...... भारत में अपनी सेना की हानि होने की वजह से अपनी बची हुयी प्रतिष्ठा वापस मिलाने अरबो ने ये निश्चय कर लिया की भारत के किसी भी हिस्से को अब छुआ नहीं जाए और इसीलिए अगले कुछ सालो तक अरबो ने भारत खंड में पैर नहीं रखा॥
उन्होंने जान लिया सुगठित और एकत्रित हिन्दू से वे कभी जीत नही सकते।बाद के आक्रमण इस तरह किये जाते थे कि सामने वाला 'एकल,,ही लड़े।संगठित रूप से आने पर वह खुद ही पीछे हो लेते।
उन्होंने विखटन के ढेर सारे 'कांसेप्ट,भारत में बोने शुरू कर दिये।
उन्होंने छोटे राज्यो को मान्यता के साथ तमाम व्यापारिक सम्बन्ध इसी नजरिये से बनाना शुरू किया।
वह समझ चुके थे की छोटे-छोटे जातीय राज्य समूह सामाजिक सुरक्षा चक्र के लिए बनाये गए हैं अगर इन्हें तोडा या छुआ तो सीधे-सीधे समाप्त कर दिए जाएंगे। तकरीबन तीन सौ सालों बाद गजनवी के छोटे राज्यो पर केंद्रित आक्रमण भी उसी सीख का परिणाम थे।भारत में मुस्लिम शासन के दौरान इस बात का ख़ास ख्याल रखा जाने लगा कि सबसे अलग-अलग करके बातें करो।कट्टर जाति प्रथा इसी युग की देन है।
यदि नागभट्ट और रावलो का नेतृत्व उस वक्त न मिला होता (राज्यों में बटे भारत को एक कर अरबो के विरुद्ध ना खड़े होते) तो आज हम 'पवनुद्दीन,के रूप में जेहाद कर रहे होते। हमें उन दूरदर्शी-धर्मवीरो का अहसान मानना चाहिए।
अरबी राक्षसों के मुह में जाने से प्रतिहारो ने हिन्दुभूमि को बचाया और अपने आप को "आदिवाराह,, की उपाधि दी॥अगले तीन सौ सालों यानी ईस्वी 1003 तक फिर किसी मुस्लिम आक्रमणकारी की हिम्मत भारत की तरफ देखने की भी न पड़ी।
बेसिकली तभी से सूअर उनका शत्रु है...वे सूअरो से बहुत डरते हैं॥
इन दोनों ही वंशो के पतन के बाद गजनवी ने देश पर आक्रम किया उसे विद्याधर चंदेल ने पठखनी दी॥
प्रतिहार वंश के साम्राज्य पर बाद मे आठ छोटे-छोटे राजवंश खड़े हो गए जो आपस मे लड़ते रहते थे....गजनवी ने इसी का लाभ उठाया था।
.... इन 800 वर्षों मे जो राजे-सामंत थे......वे बड़े युद्धवीर थे।सत्ता छीनने के बाद मुस्लिम विजेताओ ने उन्हे ही मार-मार कर दलित जातियों मे बदल दिया...आज की साऱी दलित जातियाँ उनही राजाओ और उनके सैनिको की संताने है.....आठ सौ सालो के शासन के दौरान उन्होने उनके मनोविज्ञान को भी बदल कर रख दिया है क्योकि उनसे ही असली डर लगता है..॥
बाद के आठ सौ सालों तक इस्लामिक शासन में उनका धर्म-परिवर्तन कराने के लिए सताया जाता रहा,वे जान बचा-बचा दूर-देहात जंगलो में जाकर अभावो में रहने लगे।इन वर्षों के अत्याचारो कोल सहन करने के बावजूद उनका 'धर्म,न डिगा।
वे प्रतिहार अब दलित जातियाँ हैं जो मध्य-प्रदेश से गुजरात,राजस्थान,पंजाब,उत्तर प्रदेश और बिहार-बंगाल तक उनके वंशज एससी जातियों के रूप में हैं।
रावल अब माली और मीणा(एससी) जातियों के रूप में हैं,भाटी गुर्जर जातियों के रूप में,कच्छवाह अब दलित हैं,पासी अब दलित है,सोलंकियों,चालुक्यों,के सारे असल वंशज पिछडी जातियों में आते हैं....
(ध्यान रहे परिहार बहुत बाद के हैं जो चन्देलों के 'सामन्त,थे।)
चँवर राजवंश चमार जाति में बदल चुका है,कोल राजवंश जिसने दो सौ साल रक्षा की अब कोरी में बदल चुका है,बंगाल का पाल और सेन राजवँश गड़रिये की एक जाति बनाया जा चुका है।मौखरी,गुप्त अब दलित कहलाते हैं।कल्चुरी और चौहानो के साथ-साथ तमाम ब्राम्हण को मार-मार धर्म-भंग करके 'भंगी, जातियों में बदल दिया गया।..मांडलिक राजे केवल ''मंडल, रूप में बदल गए।'राष्ट्रकूट वंश, आज के मावले-मराठी हैं। 600 साल तक काश्मीर के शासक रहे 'कर्कोट,अब कुरकुट एससी जाति है।लोहरो के वंशज पंजाब भर में फैले हैं।चेदि भी अब ड्लित हैं।कम्बोज भी अब एससी जातियों में आते हैं।कूर्म और गंग क्षत्रिय कुर्मी जाती कहलाए,जाट-जाटव दोनों ही मार्शल थे।चौहानों का एक कुल 'घोसियो,में बदल चुका है।थारू,कारू,जेसिन देश के कोने कोने में एससी-एसटी समुदाय जान-धर्म बचा छुपे थे(शोध और मौलिक कार्य की जरूरत है)
यादवो का साम्राज्य खजियों ने खतम किया।
इनमे से अधिकाँश इस्लामी शासन काल में जबर्दस्ती मुसलमान बनने के डर से या अत्याचार से दलित जबर्दस्ती बनाये गए थे...चार पीढ़ियों बाद तो खुद ही मनोवैज्ञानिक परिवर्तन हो जाता है।
गहन शोध किया जाए तो निकल कर आता है 'हिंसक आक्रामक अरबी "अर्थ-व्यवस्थात्मक संस्कृति,शुरुआती दौर के तीन सौ सालों में यह समझ चुकी थी कि चक्रात्मक सुरक्षा प्रणाली वाले इसे राष्ट्र में राज्य जीत लेना तो आसान है पर उसके शक्तिशाली संस्कृति के आगे ठहर पाना मुश्किल है......तो उनके मजहबी संगठन ने दूरगामी 'तोड़ो-बांटो-काटो,, रणनीति का सहारा लेना शुरू किया।
आज उसके दुष्परिणाम भी सामने है।
अंग्रेजो-वामियों और मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्दू-समाज के विखण्डन की दृष्टि से ''इस दृष्टि, की,,धारणा स्थापित की है।उन्होंने फर्जी प्रमाण खोजे,तर्क गढ़े और इतिहास की किताबो में थोप दिए हैं।
अन्ग्रेजो के बाद की सरकारों को "विखण्डित समाज,, में स्थाई सत्ता लाभ दीखता था इसलिए इतिहास पाठ्यक्रमो को यथासम्भव उनकी दृष्टिकोण से ही पढ़ाते रहे।पीढ़ी दर पीढ़ी हारो का इतिहास पढ़ते-पढ़ते,इम्तिहान देते,कम्पीटीशन निकालते,बच्चो को पढ़ाते वह ''थोपित, बाते हमें सच लगने लगी हैं।
कुछ तो बाकायदे तर्क करने उतर पड़ते हैं।
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पवन त्रिपाठी
धन्यवाद
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