Happy Thoughts

*Happy Thoughts*

🌧 *क्षमा का जादू* 🌧

*क्षमा माँगने की क्षमता को जानकर हर दुःख से मुक्ति पाएँ* (Say Sorry Within and Be Free) *By सरश्री*

*{लकीरों का दूसरा कारख़ाना} 3(12)*

*स्वसंवाद*

🔺 *'स्वसंवाद'* यानी स्वयं से किए जानेवाले संवाद। मन ही मन ख़ुद से की जानेवाली बातों को स्वसंवाद कहा जाता है। वास्तव में हमारे विचार, हमारा सोचना, अंदर ही अंदर हो रही बड़बड़, ये सभी स्वसंवाद हैं। हम बहुत ज़्यादा स्वसंवाद करते हैं इसलिए यह कारख़ाना सबसे ज़्यादा लकीरों का निर्माण करता है।

कई बार बुरे शब्द सीधे बोले नहीं जाते, बस मन में सोचे जाते हैं। मानो, आप किसी दुकान में कोई चीज़ ख़रीदने गए हैं और उस चीज़ का भाव आपको ज़्यादा लगा तो आप दुकानदार से कहते हैं, 'ठीक है, फिर कभी आकर ख़रीदेंगे' और वह चीज़ बिना ख़रीदे ही आप दुकान से बाहर आ जाते हैं। आपका प्रतिसाद देखकर दुकानदार सोचेगा कि यह तो समझदार इंसान है। लेकिन आप दुकान के बाहर आते समय मन में सोचते हैं कि 'यह दुकानदार तो दुकान चलाने के लायक़ ही नहीं है। भाव कितना बढ़ा-चढ़ाकर बोल रहा है, ग्राहकों को लूट रहा है।' हालाँकि यह आपने दुकानदार से नहीं कहा लेकिन अपने मन में सोचा। फिर भी उस दुकानदार के प्रति लकीर तो बन गई, आपके फ़िंगर प्रिंट तो छप गए।

यह स्वसंवाद ही तो महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि शब्द अच्छे हों या बुरे, उन्हें मुँह से बोलने से पहले, वे मन में सोचे जाते हैं। उनका निर्माण पहले मन में होता है और फिर मुँह के द्वारा उनका विवरण किया जाता है। इसलिए मन में निरंतर चलनेवाले स्वसंवाद के प्रति हमें सदा सजग रहना है, उसे कुसंवाद नहीं होने देना, सुसंवाद बनाए रखना है।

*स्वसंवादों का प्रभाव*

जो इंसान स्वसंवादों के प्रभाव को नहीं जानता, उसे लगता है - 'अरे, मैं तो केवल मन में ही किसी को कोस रहा हूँ या कुछ सोच रहा हूँ। किसी को जाकर मैंने कुछ बुरा बोला तो नहीं है। मेरे मन की बात है, मेरे मन में ही रहेगी तो इसमें मैंने क्या ग़लती की? सामनेवाले का क्या बुरा किया?' ऐसे में उस इंसान को कहा जाएगा, 'भाई, आपकी ग़लती यह है कि आपने मन के संवादों के प्रभाव को समझा नहीं है। किसी के बारे में मन में बुरा सोचकर आपने अपने लिए ही लकीर खींची। वैसे भी जो बातें मन ही मन बार-बार दोहराई जाती हैं, वे एक न एक दिन हक़ीकत बनकर सामने आ ही जाती हैं।'

अतः ध्यान रहे, यदि आप किसी के लिए बुरा सोच रहे हैं तो आप सामनेवाले का नहीं बल्कि अपना ही नुक़सान कर रहे हैं। आप अपने अंदर लकीरें जमा कर रहे हैं। एक दिन ये लकीरें आपसे ग़लत कर्म भी कराएँगी और जमा हो-होकर आपके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचाएँगी। ग़लत स्वसंवादों की लकीरें मन को अस्वस्थ कर देती हैं। फिर यही अस्वस्थता शरीर में उतरकर अनेक बीमारियों को आमंत्रित करती हैं।

ऐसे में सवाल उठ सकता है कि उचित स्वसंवाद के लिए क्या करना होगा? बस! केवल देखना होगा कि मन में किस भाव के बीज बीए जा रहे हैं। मन की खेती में क्या उग रहा है, मोती या पत्थर? स्वसंवाद मन के अंदर की बात है। स्वसंवाद वह ज़रूरी औजार है, जो बाहरी व्यवहार और क्रिया का निमंत्रण करता है इसलिए उसकी देख-भाल ज़रूरी है। अर्थात अपने स्वसंवाद पर ध्यान देना होगा।

समस्या कोई भी हो, हम उसे प्रेम, शान्ति और मीठे शब्दों से सँभाल सकते हैं। लेकिन इसमें सफलता तभी होगी, जब स्वसंवाद में भी आप ऐसे ही भाव रखेंगे। वरना 'मुँह में राम, बग़ल में छुरी' वाली बात हो जाएगी। अर्थात स्वसंवाद में तो गालियाँ दी जा रही हैं और सामने मित्रता का दिखावा करेंगे तो बात नहीं बनेगी।

*स्वसंवाद को साध*

हमारे अंदर ग़लत स्वसंवाद चल रहा है, इसका पता हमें अपनी भावना को जाँचकर चल जाएगा। मन में निराशा, नकारात्मकता, उदासी, चिढ़ या गुस्सा है तो समझिए स्वसंवाद ग़लत दिशा में जा रहे हैं। स्वसंवाद ग़लत हों तो समझिए साँप  की पूँछ तैयार होनी शुरू हो रही है। यदि उसी समय उस पर क्षमा का डस्टर घुमा दिया जाए तो साँप कभी तैयार ही नहीं होगा। अतः जब भी मन में किसी के या अपने प्रति ग़लत स्वसंवाद आए तो उसके लिए इकाई से या उस इंसान से तुरंत क्षमा साधना कर लें -

'हे इकाई, मेरे ग़लत स्वसंवादों के लिए मुझे क्षमा करें।
साथ ही मुझे नकारात्मक स्वसंवादों से दूर करें।
मुझे शक्ति दें कि मेरे स्वसंवाद सकारात्मकता,
प्रेम और आनंद से भरपूर हों।
मेरे स्वसंवादों का मुझ पर और दूसरों पर भी अच्छा असर हो।
मेरी प्रार्थना सुनने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद '

स्वसंवादों में सुधार अचानक से नहीं होगा। इसके लिए आपको सही स्वसंवादों का निरंतर अभ्यास करना होगा। अपने स्वसंवादों को नई सकारात्मक दिशा देनी होगी। बेहतर है कि आप अपने लिए कुछ अच्छे स्वसंवादों को चुनें और उन्हें बारम्बार दोहराएँ। जैसे -

▪️ मैं अपने नकारात्मक स्वसंवादों से मुक्त होकर शांत हो रहा हूँ।

▪️ मैं जीवन में विश्वास रखता हूँ इसलिए मेरी सुरक्षा निश्चित है।

▪️ मैं शांत हूँ, महत्त्वपूर्ण हूँ, संपूर्ण हूँ... मैं ख़ुद को प्यार और स्वीकार करता हूँ।

▪️ मैं प्यार करने लायक़ हूँ। मुझे ताजगी महसूस हो रही है, मैं प्रेमपूर्वक अपने शरीर, दिमाग़ तथा सभी अंगों की देख-भाल करता हूँ।

▪️ मैं जीवन के आनंद को आत्मसात और अभिव्यक्त कर रहा हूँ।

▪️ मुझे विश्वास है कि मेरे जीवन में हमेशा सही काम, सही समय पर हो रहे हैं।

▪️ मैं चैतन्य हूँ और मज़े से जीवन के हर अनुभव के साथ बह रहा हूँ। सब कुछ बिलकुल ठीक-ठाक चल रहा है।

▪️ मैं ख़ुशी-ख़ुशी अपने अतीत को मुक्त करता हूँ और अब मैं चैन से हूँ।

▪️ मैं वर्तमान में जीने लगा हूँ इसलिए प्रसन्नता से भरे हुए विचार मेरे भीतर सहजता से उत्पन्न हो रहे हैं।

▪️ मैं इतना स्वस्थ हूँ कि बीमारियाँ मेरे आस-पास आने से भी डरती हैं। मैं तंदुरुस्ती का आनंद ले रहा हूँ।

जैसे-जैसे आप क्षमा साधना से स्वसंवादों की पुरानी लकीरें मिटाते जाएँगे और अपने आगे के स्वसंवादों को सुधारते जाएँगे, आप अपने जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन पाएँगे। आप देखेंगे कि आपके जीवन से सारी नकारात्मकता दूर हो रही हैं। सारी अच्छी चीज़ें, जैसे : प्रेम, शांति, स्वास्थ्य, सकारात्मकता, ख़ुशहाली आपकी ओर आकर्षित होने लगी हैं।

अपने संवाद और स्वसंवाद सही करने के बाद बात आती है, हमारे अंदर वर्षों से दबे वृत्ति और विकारों को दूर करने की क्योंकि वे भी हमारे अंदर छिपे लकीरों के बड़े कारख़ाने हैं। आगे इसी कारख़ाने पर रोशनी डाली जाएगी।

🙏 *धन्यवाद... 

Comments

Popular posts from this blog

गणेश सखाराम देउसकर की "देश की कथा " से / भाग -1 सखाराम गणेश देउस्कर लिखित 1904 में 'देशेर कथा' बांग्ला में लिखी गयी।

आदि शंकराचार्य के शिष्य विश्व विजेता सम्राट सुधन्वा चौहान -

महाराणा कुम्‍भकर्ण: कुम्भा