'तकनिकी रूप से पिछड़े हुए देशो का भाषाई शुद्धता का "दुराग्रह" राष्ट्र को सैन्य दृष्टि से निर्बल बना देता है'।
'तकनिकी रूप से पिछड़े हुए देशो का भाषाई शुद्धता का "दुराग्रह" राष्ट्र को सैन्य दृष्टि से निर्बल बना देता है'।
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सोशल मिडिया पर कई कार्यकर्ता हिन्दी को प्रोत्साहन देने के लिए अभियान चला रहे है, जिसका मैं समर्थन करता हूँ। किन्तु कई "हिन्दी जिहादी" कार्यकर्ता अंग्रेजी भाषी भारतीयों पर अंग्रेजियत की लानत भेजते है। उनका मानना है कि "यदि आपको देश से प्यार है तो आपको हिन्दी ही लिखनी चाहिए, हिन्दी ही बोलनी चाहिए और अंग्रेजी का विरोध करना चाहिए"। ऐसा करके वे भारत को सैन्य दृष्टी से कमजोर बनाने का कार्य कर रहे है।
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१) भाषा की स्वीकार्यता या फैलाव का भाषा की सरलता या वैज्ञानिकता से कोई लेना देना नहीं है। यह सैन्य शक्ति है, जो किसी भाषा को अपनाने के लिए बाध्य करती है।
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२) कैसे अंग्रेजी ने फ़ारसी को चलन से बाहर कर दिया ? संस्कृत भाषा क्यों खत्म हो गयी, और क्यों हिंदी का दायरा भी लगातार सिकुड़ता जाएगा ?
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३) भारत विविध भाषाओ और संस्कृतियों का देश है अतः किसी एक भाषा पर पूरे देश को सहमत नहीं किया जा सकता।
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४) समाधान - किन कानूनों की सहायता से हम हिन्दी औरअन्य क्षेत्रीय भारतीय भाषाओ को संरक्षित कर सकते है ?
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१) भाषा की स्वीकार्यता या फैलाव का भाषा की सरलता या वैज्ञानिकता से कोई लेना देना नहीं है। यह सैन्य शक्ति है, जो किसी देश की भाषा को अपनाने के लिए अन्य देशो को बाध्य करती है।
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जिस राष्ट्र में तकनीकी उत्पादन को प्रोत्साहित करने और उन्हें संरक्षण देने के लिए अच्छी क़ानून व्यवस्थाएँ होगी वह देश अपेक्षाकृत अधिक तेज़ी से तकनिकी आविष्कार करेगा, और वह राष्ट्र आधुनिक व उत्तम अस्त्र शस्त्रों का निर्माण करके अन्य निर्बल देशों पर हमला करेगा। इससे कमजोर देश पर आक्रमणकारी राष्ट्र का शासन स्थापित होगा और अधीनस्थ देश को आक्रमणकारी राष्ट्र के धर्म और भाषा को बलात रूप से अपनाना होगा।
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पूरे विश्व में ग्रीक भाषा इसीलिए नहीं बोली जाती क्योंकि सिकन्दर व ग्रीस का युद्ध अभियान हवा के झोंके की तरह था। वे अन्य देशो पर दीर्घकाल तक शासन स्थापित करने में असफल रहे थे। 1200 के आस पास यूरोप में ज्यूरी सिस्टम आया और इसी वजह से वहां औद्योगिक क्रान्ति हुयी। ज्यूरी सिस्टम ने उन्हें तकनिकी आविष्कार करने का अवसर दिया और वे उत्तरोत्तर रूप से आधुनिक हथियारों का निर्माण करने लगे। इन्हें हथियारों के बूते उन्होंने पूरी दुनिया में सैन्य अभियान चलाकर विश्व में अपना शासन स्थापित किया। मुग़लों के पास तोपख़ाना और ब्रिटिश के पास बंदूक़ होना कारण था कि भारत को उनका शासन, धर्म और भाषा स्वीकार करनी पड़ी । बेहतर तोपखाना होने से मुगलो ने, और बेहतर बंदूके होने के कारण अंग्रेजो ने भारत को पराजित किया और उनकी सत्ता आने पर भारत में फ़ारसी, अंग्रेजी का फैलाव हुआ।
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२) कैसे अंग्रेजी ने फ़ारसी को चलन से बाहर कर दिया ? संस्कृत भाषा क्यों खत्म हो गयी, और क्यों जल्दी ही हिंदी भी चलन से बाहर हो जाएगी ?
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सैन्य शक्ति या शासन के अलावा "पाठ्य विवरण" दूसरा कारक है जिसकी वजह से जिज्ञासु अन्य भाषा के पठन पाठन की तरफ आकर्षित होते है। यदि किसी देश ने तकनिकी क्षेत्र में तेजी से विकास किया है या लगातार नए नए आविष्कार कर रहा है तो इन आविष्कारो से सम्बंधित सभी "मूल" विवरण उस देश की भाषा में ही उपलब्ध होंगे। फ़ारसी, अरबी और उर्दू साहित्य में अलिफ़ लैला, हातिम ताई आदि की कहानियाँ और ग़ज़लियात इफ़रात में लिखी गयी जबकि गणित विज्ञान का साहित्य अंग्रेजी में उपलब्ध था। इस तरह से इंजीनियरिंग और चिकित्सा से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण विवरण अंग्रेजी में होने से अद्यतन रहने के लिए स्वतः ही अंग्रेजी का पठन पाठन बढ़ने लगा।
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संस्कृत के साहित्य में आयुर्वेद होने से संस्कृत प्रासंगिक बनी रही, किन्तु जैसे जैसे ऐलोपेथी का विकास हुआ आयुर्वेद के पिछड़ने के साथ ही संस्कृत का पठन पाठन भी कम होने लगा। संस्कृत का शेष साहित्य आध्यात्म, योग, धर्म, मीमांसा, खगोल, ज्योतिष, धर्म आदि से संबधित है, जिनका कारोबारी मूल्य उतना नहीं है। इस तरह इंजीनियरिंग विवरण न होने से संस्कृत के मूल विवरण अनुपयोगी होते चले गए और यह भाषा मुख्य धारा से बाहर हो गयी।
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मौजूदा हालात यह है कि, पूरी दुनिया कम्प्यूटर और मोबाइल पर आ गयी है। कंप्यूटर, मोबाइल की मूल भाषा अंग्रेजी है। सभी इंजीनियरिंग के कोर्स, ऐलोपेथी, गणित-विज्ञान का आधुनिक पाठ्यक्रम, आदि अंग्रेजी भाषा में है, इनके सभी मूल ग्रन्थ भी अंग्रेजी भाषा में है, और होने वाले सभी आविष्कार भी अंग्रेजी भाषा में है। तो यदि किसी छात्र जो ऊँचे दर्जे के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिल लेना है या इंजीनियरिंग/चिकित्सा साहित्य पढ़ना है तो उसे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। हिन्दी भाषा में इनमे से कुछ नहीं है, अतः जल्दी ही हिन्दी धीरे धीरे सिकुड़ती जाएगी।
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३) भारत विविध भाषाओ और संस्कृतियों का देश है अतः किसी एक भाषा पर पूरे देश को सहमत नहीं किया जा सकता।
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भारत में ऐसी कोई भी भाषा नहीं है जिससे राष्ट्र को एक साथ संबोधित किया जा सके। हिन्दी राजभाषा अवश्य है, किन्तु कई राज्यों में इसका चलन नहीं है। वे हिंदी सुन कर समझ सकते है और कच्ची पक्की बोल भी सकते है, किन्तु लिख या पढ़ नहीं सकते। गुजरात, बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र में आपको लिखित में हिन्दी का प्रयोग बेहद कम मिलेगा और शहरो से दूर दराज इलाको में तो बिलकुल भी नहीं मिलेगा। वे स्थानीय भाषा में ही लिखते पढ़ते बोलते है। बल्कि दक्षिण के राज्यों में तो हिंदी का विरोध है। और ये विरोध नया नहीं है। इसीलिए हमारे पास ऐसी कोई भाषा ही नहीं है जिसे शुद्धता के साथ सभी देशवासियो पर लागू किया जा सके।
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तमिलनाडु का उदाहरण लीजिये। वहां तमिल बोली, लिखी और पढ़ी जाती है। तमिल उनकी प्राथमिक भाषा है। द्वितीय भाषा अंग्रेजी है। अब यदि उन्हें कहा जाए कि आप हिंदी को अपनाइये तो उन्हें किस भाषा का त्याग करना चाहिए ? तमिल का ? या अंग्रेजी का ? तमिल उनकी अपनी भाषा है, और यदि वे अंग्रेजी का त्याग कर देंगे तो कंप्यूटर, इंजीनियरिंग और चिकित्सा संबंधी विवरण किस भाषा में पढ़ेंगे ? क्योंकि हिंदी में तो मूल रूप से यह सब उपलब्ध नहीं है। और अनुवाद को पढ़ना एक खुराफात है। अनुवाद सिर्फ तब ही पढ़े जा सकते है जब कोई इन्हें उपलब्ध करवाये।
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४) समाधान - किन कानूनों की सहायता से हम हिन्दी औरअन्य क्षेत्रीय भारतीय भाषाओ को संरक्षित कर सकते है ?
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A) बोगस या कामचलाऊ समाधान - अनुवाद
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पहली बात तो यह कि अनुवाद करेगा कौन ? और कितना करेगा ? क्योंकि अनुवाद करने के लिए दोनो भाषाओं का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है । अंग्रेज़ी का भी और हिंदी का भी । तो यदि आपको अनुवाद चाहिए तो ऐसे हज़ारों लाखों अनुवादक चाहिए होंगे जिनका दोनो भाषाओं पर बराबर अधिकार हो । आप यदि लोगों को अंग्रेज़ी नही पढ़ने लिखने देंगे तो अनुवाद कौन करेगा ? और इन अनुवादको को पैसा कौन देगा और कौन बताएगा कि किसका अनुवाद नही करना है व किसका करना है । क्योंकि पूरी दुनिया से अंग्रेज़ी में सूचनाएँ तो प्रतिदिन और निरंतर आती है । सारे कारोबारी विवरण और उदयोगिकिय/व्यावसायिक समूहों का संचालन अंग्रेज़ी में है । सरकार कितने वेतनभोगी अनुवादक नियुक्त करेगी ? सारी शक्ति लगाने के बावजूद हर हाल में 2-5% अद्यतन अनुवाद ही उपलब्ध हो सकेगा ।
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B) स्थायी और दीर्घकालीन समाधान -- ज्यूरी सिस्टम
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मौजूदा हालात में हमें पाठ्यक्रम में द्विभाषी पुस्तकें लागू करने की जरुरत है, ताकि सभी छात्रों को दोनों भाषाओ में से अपनी भाषा चुनने का विकल्प उपलब्ध रहे। इसे लागू करने के लिए प्रकिया हमने राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के ड्राफ्ट में दी है। राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी क़ानून के लागू होने से भारत में गणित-विज्ञान के अध्ययन का बुनियादी ढांचा सुधरेगा और जुड़ी सिस्टम आने से उत्पादन व तकनिकी विकास में तेजी आएगी।
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यदि भारतीय अपने देश में ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टेक्स, राईट टू रिकॉल कानूनो को लागू करके तकनीकी आविष्कार की आत्मनिर्भर क्षमता जुटा लेते है तो नया तकनिकी सृजन भारतीय भाषाओ में होने लगेगा और भारत अपनी भाषाओ को बचाने में सक्षम हो जाएगा। तब ऐसा दौर भी आ सकता है कि अन्य देश भारतीय भाषाएँ सीखने को बाध्य हो जाए।
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तो यदि किसी को हिंदी से लगाव है तो उसे इसे बचाने लिए ज्यूरी सिस्टम,वेल्थ टेक्स आदि कानूनों को लागू करवाने पर ध्यान देना चाहिए। फ़ालतू फंड में हिन्दी बचाओ के नारे लगाने के नारे लगाने से यह बचने वाली नहीं है।
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सोशल मिडिया पर कई कार्यकर्ता हिन्दी को प्रोत्साहन देने के लिए अभियान चला रहे है, जिसका मैं समर्थन करता हूँ। किन्तु कई "हिन्दी जिहादी" कार्यकर्ता अंग्रेजी भाषी भारतीयों पर अंग्रेजियत की लानत भेजते है। उनका मानना है कि "यदि आपको देश से प्यार है तो आपको हिन्दी ही लिखनी चाहिए, हिन्दी ही बोलनी चाहिए और अंग्रेजी का विरोध करना चाहिए"। ऐसा करके वे भारत को सैन्य दृष्टी से कमजोर बनाने का कार्य कर रहे है।
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१) भाषा की स्वीकार्यता या फैलाव का भाषा की सरलता या वैज्ञानिकता से कोई लेना देना नहीं है। यह सैन्य शक्ति है, जो किसी भाषा को अपनाने के लिए बाध्य करती है।
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२) कैसे अंग्रेजी ने फ़ारसी को चलन से बाहर कर दिया ? संस्कृत भाषा क्यों खत्म हो गयी, और क्यों हिंदी का दायरा भी लगातार सिकुड़ता जाएगा ?
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३) भारत विविध भाषाओ और संस्कृतियों का देश है अतः किसी एक भाषा पर पूरे देश को सहमत नहीं किया जा सकता।
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४) समाधान - किन कानूनों की सहायता से हम हिन्दी औरअन्य क्षेत्रीय भारतीय भाषाओ को संरक्षित कर सकते है ?
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१) भाषा की स्वीकार्यता या फैलाव का भाषा की सरलता या वैज्ञानिकता से कोई लेना देना नहीं है। यह सैन्य शक्ति है, जो किसी देश की भाषा को अपनाने के लिए अन्य देशो को बाध्य करती है।
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जिस राष्ट्र में तकनीकी उत्पादन को प्रोत्साहित करने और उन्हें संरक्षण देने के लिए अच्छी क़ानून व्यवस्थाएँ होगी वह देश अपेक्षाकृत अधिक तेज़ी से तकनिकी आविष्कार करेगा, और वह राष्ट्र आधुनिक व उत्तम अस्त्र शस्त्रों का निर्माण करके अन्य निर्बल देशों पर हमला करेगा। इससे कमजोर देश पर आक्रमणकारी राष्ट्र का शासन स्थापित होगा और अधीनस्थ देश को आक्रमणकारी राष्ट्र के धर्म और भाषा को बलात रूप से अपनाना होगा।
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पूरे विश्व में ग्रीक भाषा इसीलिए नहीं बोली जाती क्योंकि सिकन्दर व ग्रीस का युद्ध अभियान हवा के झोंके की तरह था। वे अन्य देशो पर दीर्घकाल तक शासन स्थापित करने में असफल रहे थे। 1200 के आस पास यूरोप में ज्यूरी सिस्टम आया और इसी वजह से वहां औद्योगिक क्रान्ति हुयी। ज्यूरी सिस्टम ने उन्हें तकनिकी आविष्कार करने का अवसर दिया और वे उत्तरोत्तर रूप से आधुनिक हथियारों का निर्माण करने लगे। इन्हें हथियारों के बूते उन्होंने पूरी दुनिया में सैन्य अभियान चलाकर विश्व में अपना शासन स्थापित किया। मुग़लों के पास तोपख़ाना और ब्रिटिश के पास बंदूक़ होना कारण था कि भारत को उनका शासन, धर्म और भाषा स्वीकार करनी पड़ी । बेहतर तोपखाना होने से मुगलो ने, और बेहतर बंदूके होने के कारण अंग्रेजो ने भारत को पराजित किया और उनकी सत्ता आने पर भारत में फ़ारसी, अंग्रेजी का फैलाव हुआ।
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२) कैसे अंग्रेजी ने फ़ारसी को चलन से बाहर कर दिया ? संस्कृत भाषा क्यों खत्म हो गयी, और क्यों जल्दी ही हिंदी भी चलन से बाहर हो जाएगी ?
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सैन्य शक्ति या शासन के अलावा "पाठ्य विवरण" दूसरा कारक है जिसकी वजह से जिज्ञासु अन्य भाषा के पठन पाठन की तरफ आकर्षित होते है। यदि किसी देश ने तकनिकी क्षेत्र में तेजी से विकास किया है या लगातार नए नए आविष्कार कर रहा है तो इन आविष्कारो से सम्बंधित सभी "मूल" विवरण उस देश की भाषा में ही उपलब्ध होंगे। फ़ारसी, अरबी और उर्दू साहित्य में अलिफ़ लैला, हातिम ताई आदि की कहानियाँ और ग़ज़लियात इफ़रात में लिखी गयी जबकि गणित विज्ञान का साहित्य अंग्रेजी में उपलब्ध था। इस तरह से इंजीनियरिंग और चिकित्सा से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण विवरण अंग्रेजी में होने से अद्यतन रहने के लिए स्वतः ही अंग्रेजी का पठन पाठन बढ़ने लगा।
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संस्कृत के साहित्य में आयुर्वेद होने से संस्कृत प्रासंगिक बनी रही, किन्तु जैसे जैसे ऐलोपेथी का विकास हुआ आयुर्वेद के पिछड़ने के साथ ही संस्कृत का पठन पाठन भी कम होने लगा। संस्कृत का शेष साहित्य आध्यात्म, योग, धर्म, मीमांसा, खगोल, ज्योतिष, धर्म आदि से संबधित है, जिनका कारोबारी मूल्य उतना नहीं है। इस तरह इंजीनियरिंग विवरण न होने से संस्कृत के मूल विवरण अनुपयोगी होते चले गए और यह भाषा मुख्य धारा से बाहर हो गयी।
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मौजूदा हालात यह है कि, पूरी दुनिया कम्प्यूटर और मोबाइल पर आ गयी है। कंप्यूटर, मोबाइल की मूल भाषा अंग्रेजी है। सभी इंजीनियरिंग के कोर्स, ऐलोपेथी, गणित-विज्ञान का आधुनिक पाठ्यक्रम, आदि अंग्रेजी भाषा में है, इनके सभी मूल ग्रन्थ भी अंग्रेजी भाषा में है, और होने वाले सभी आविष्कार भी अंग्रेजी भाषा में है। तो यदि किसी छात्र जो ऊँचे दर्जे के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिल लेना है या इंजीनियरिंग/चिकित्सा साहित्य पढ़ना है तो उसे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। हिन्दी भाषा में इनमे से कुछ नहीं है, अतः जल्दी ही हिन्दी धीरे धीरे सिकुड़ती जाएगी।
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३) भारत विविध भाषाओ और संस्कृतियों का देश है अतः किसी एक भाषा पर पूरे देश को सहमत नहीं किया जा सकता।
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भारत में ऐसी कोई भी भाषा नहीं है जिससे राष्ट्र को एक साथ संबोधित किया जा सके। हिन्दी राजभाषा अवश्य है, किन्तु कई राज्यों में इसका चलन नहीं है। वे हिंदी सुन कर समझ सकते है और कच्ची पक्की बोल भी सकते है, किन्तु लिख या पढ़ नहीं सकते। गुजरात, बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र में आपको लिखित में हिन्दी का प्रयोग बेहद कम मिलेगा और शहरो से दूर दराज इलाको में तो बिलकुल भी नहीं मिलेगा। वे स्थानीय भाषा में ही लिखते पढ़ते बोलते है। बल्कि दक्षिण के राज्यों में तो हिंदी का विरोध है। और ये विरोध नया नहीं है। इसीलिए हमारे पास ऐसी कोई भाषा ही नहीं है जिसे शुद्धता के साथ सभी देशवासियो पर लागू किया जा सके।
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तमिलनाडु का उदाहरण लीजिये। वहां तमिल बोली, लिखी और पढ़ी जाती है। तमिल उनकी प्राथमिक भाषा है। द्वितीय भाषा अंग्रेजी है। अब यदि उन्हें कहा जाए कि आप हिंदी को अपनाइये तो उन्हें किस भाषा का त्याग करना चाहिए ? तमिल का ? या अंग्रेजी का ? तमिल उनकी अपनी भाषा है, और यदि वे अंग्रेजी का त्याग कर देंगे तो कंप्यूटर, इंजीनियरिंग और चिकित्सा संबंधी विवरण किस भाषा में पढ़ेंगे ? क्योंकि हिंदी में तो मूल रूप से यह सब उपलब्ध नहीं है। और अनुवाद को पढ़ना एक खुराफात है। अनुवाद सिर्फ तब ही पढ़े जा सकते है जब कोई इन्हें उपलब्ध करवाये।
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४) समाधान - किन कानूनों की सहायता से हम हिन्दी औरअन्य क्षेत्रीय भारतीय भाषाओ को संरक्षित कर सकते है ?
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A) बोगस या कामचलाऊ समाधान - अनुवाद
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पहली बात तो यह कि अनुवाद करेगा कौन ? और कितना करेगा ? क्योंकि अनुवाद करने के लिए दोनो भाषाओं का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है । अंग्रेज़ी का भी और हिंदी का भी । तो यदि आपको अनुवाद चाहिए तो ऐसे हज़ारों लाखों अनुवादक चाहिए होंगे जिनका दोनो भाषाओं पर बराबर अधिकार हो । आप यदि लोगों को अंग्रेज़ी नही पढ़ने लिखने देंगे तो अनुवाद कौन करेगा ? और इन अनुवादको को पैसा कौन देगा और कौन बताएगा कि किसका अनुवाद नही करना है व किसका करना है । क्योंकि पूरी दुनिया से अंग्रेज़ी में सूचनाएँ तो प्रतिदिन और निरंतर आती है । सारे कारोबारी विवरण और उदयोगिकिय/व्यावसायिक समूहों का संचालन अंग्रेज़ी में है । सरकार कितने वेतनभोगी अनुवादक नियुक्त करेगी ? सारी शक्ति लगाने के बावजूद हर हाल में 2-5% अद्यतन अनुवाद ही उपलब्ध हो सकेगा ।
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B) स्थायी और दीर्घकालीन समाधान -- ज्यूरी सिस्टम
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मौजूदा हालात में हमें पाठ्यक्रम में द्विभाषी पुस्तकें लागू करने की जरुरत है, ताकि सभी छात्रों को दोनों भाषाओ में से अपनी भाषा चुनने का विकल्प उपलब्ध रहे। इसे लागू करने के लिए प्रकिया हमने राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के ड्राफ्ट में दी है। राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी क़ानून के लागू होने से भारत में गणित-विज्ञान के अध्ययन का बुनियादी ढांचा सुधरेगा और जुड़ी सिस्टम आने से उत्पादन व तकनिकी विकास में तेजी आएगी।
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यदि भारतीय अपने देश में ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टेक्स, राईट टू रिकॉल कानूनो को लागू करके तकनीकी आविष्कार की आत्मनिर्भर क्षमता जुटा लेते है तो नया तकनिकी सृजन भारतीय भाषाओ में होने लगेगा और भारत अपनी भाषाओ को बचाने में सक्षम हो जाएगा। तब ऐसा दौर भी आ सकता है कि अन्य देश भारतीय भाषाएँ सीखने को बाध्य हो जाए।
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तो यदि किसी को हिंदी से लगाव है तो उसे इसे बचाने लिए ज्यूरी सिस्टम,वेल्थ टेक्स आदि कानूनों को लागू करवाने पर ध्यान देना चाहिए। फ़ालतू फंड में हिन्दी बचाओ के नारे लगाने के नारे लगाने से यह बचने वाली नहीं है।
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