चक्रवर्ती रोहित वेमुल्ला को झूठ-मूठ दलित घोषित करके उसके पक्ष में सहानुभूति बटोरने की जरूरत क्यों होती है ?

चक्रवर्ती रोहित वेमुल्ला को झूठ-मूठ दलित घोषित करके उसके पक्ष में सहानुभूति बटोरने की जरूरत क्यों होती है ? क्योंकि लड़ते हुए, वीरगति को प्राप्त होने वाले, अपने असली योद्धाओं को जब भुला देंगे तो आपको मिथकीय “शहादत” का सहारा लेना ही पड़ता है | अपने सेनानियों के आत्मबल को भुला कर नाखून कटा कर खुद को शहीद कहने वाले चाटुकारों को लाभ देने में कांग्रेस का अभूतपूर्व समाजवादी योगदान रहा है |

फिर एक बात ये भी है कि आपके योगदान कितने याद किये जायेंगे और कितने भुला दिए जायेंगे ये इसपर भी निर्भर करता है कि आपने उसे खुद कितना याद रखा है | नेताओं, स्थानीय विधायकों, कांग्रेस, जैसों का पाप इसमें फिर भी कम गिना जाना चाहिए | असली कसूरवार है रीढ़विहीन, गफलत में डूबी, जातिवादी, पलायन के शौक़ीन, उज्जड़, और अन्य कई संबोधनों से नवाजने योग्य बिहारी जनता | क्यों ? क्योंकि इन्हें अशर्फी मंडल याद नहीं, बसंत धानुक पता नहीं, शीतल और सांता पासी याद नहीं |

ये सिर्फ चंद नाम हैं इनके अलावा थे रामेश्वर मंडल, विश्वनाथ सिंह, महिपाल सिंह, सुकुल सोनार, सिंहेश्वर राजहंस, बद्री मंडल, गैबी सिंह, चंडी महतो, झोंटी झा | इनमें से किसी नाम का जिक्र सुना है ? नहीं सुना तो बता दें कि ये वो 13 लोग थे, जिनके शव की शिनाख्त हुई थी | इनके अलावा 31 शव ऐसे थे जिनकी शिनाख्त नहीं हो पाई थी | जो गंगा में बह गए उनका कोई हिसाब नहीं |

अंग्रेज कलेक्टर ई. ओली के आदेश पर एक निहत्थी भीड़ पर एस.पी. डब्ल्यू. फ्लैग ने गोलियां चलवा दी थी | नहीं नहीं किसी जलियांवाला की बात नहीं कर रहे भाई | वहां जनरल डायर थे, और वहां लाशें बहाने के लिए गंगा कहाँ होती है ? ये घटना जलियांवाला बाग़ के बाद की है, 15 फ़रवरी 1932 की इस घटना में मारे गए ज्यादातर लोगों को लापता घोषित कर दिया गया था | बिलकुल उसी तरह बेरहमी से मारे गए लोगों का आज जिक्र करना भी किसी को जरूरी नहीं लगता |

मुंगेर आज बिहार का एक जिला है | कई बार जिन क्रांतिकारियों, जिन लेखकों को आप बंगाल का जानते-पढ़ते हैं वो इस वजह से भी है कि बिहार को बने हुए ही सौ साल हुए हैं | पुराने दौर में बंगाल माने जाने वाले मुंगेर, दरभंगा, भागलपुर जैसे इलाकों से अहिंसावादियों ने ही नहीं बल्कि कई बार सशस्त्र क्रांतिकारियों ने भी फिरंगियों की नाक में दम किया था | हालाँकि कोई भी कांग्रेसी नेता, 1920 से 1947 के दौर के स्वतंत्रता संग्राम में नहीं मारा गया, लेकिन आम जन ने अक्सर पुलिस की गोलियां झेली थी |

फ़रवरी 1932 में मुंगेर के शंभुगंज थाना में आने वाले सुपोर जमुआ में एक मीटिंग हो रही थी | श्रीभवन की इसी मीटिंग में तारापुर थाने पर तिरंगा फहराने की बात राखी गई | मुंगेर का ये इलाका पहाड़ी इलाका है | महाभारत कालीन कर्ण का क्षेत्र अंग देश माने जाने वाले इस इलाके में देवधरा पहाड़ और ढोलपहाड़ी जैसे इलाके हैं जो अपनी बनावट और जंगल की वजह से अक्सर क्रांतिकारियों को सुरक्षा देते थे | गंगा के दुसरे पार बिहपुर से लेकर बांका और देवघर तक के इलाकों में क्रांतिकारियों का प्रभाव काफी ज्यादा था |

15 फ़रवरी की सुबह होते होते तारापुर में भीड़ जमा होने लगी | दोपहर में जब ये लोग झंडे के साथ आगे बढे तो अंग्रेज कलेक्टर ई. ओली के आदेश पर एक निहत्थी भीड़ पर फिरंगी एस.पी. डब्ल्यू. फ्लैग ने गोलियां चलवानी शुरू कर दी | गोलियां चलती रही, लोग बढ़ते रहे और आखिर झंडा फहरा दिया गया | आश्चर्यजनक था कि गोलियां चलने पर भी लोगों ने बढ़ना नहीं छोड़ा ! बाद में और कुमुक आने पर पुलिस ने दोबारा थाने को अपने कब्जे में लिया |

तथाकथित “पंडित”, पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु ने इस घटना पर 1942 की अपनी तारापुर यात्रा में 34 शहीदों का उल्लेख किया था और कहा था कि शहीदों के चेहरे पर लोगों के देखते ही देखते कालिख मल दी गई थी | बाद में कांग्रेस ने 15 फ़रवरी को “तारापुर शहीद दिवस” मनाने का प्रस्ताव पारित कर के इसकी घोषणा भी की थी | समस्या ये है कि इसमें पासी, धानुक, मंडल और महतो ही नहीं शहीद हुए थे | इसमें झा और सिंह नामधारी भी थे | तो दल हित चिंतकों के लिए इस मामले में रस नहीं होता |

बाकी जो जनता ने अपने ही बलिदानियों को भुलाया उस जनता को भी शत शत नमन !

---
आनंद कुमार


अब कुछ बात राजनीति की संदीप देव जी की वॉल से --


पंडित नेहरू कांग्रेस को तोड़ कर 'वामपंथी' विचारधारा की अपनी पार्टी बनाना चाहते थे!

कांग्रेसी पप्पू राहुल गांधी से लेकर चापलूस मल्लिकार्जुन खड्गे तक बार-बार कांग्रेस को गांधी-नेहरू परिवार की बपौती साबित करते रहते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि मोतीलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक ने अपने स्वार्थ के लिए कांग्रेस को तोड़ने की धमकी दी और तोड़ा....

1) मेरी पुस्तक 'कहानी कम्युनिस्टों की' आप पढ़ेंगे तो पाएंगे कि जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए मोतीलाल नेहरू ने गांधीजी को धमकी दी थी कि यदि जवाहर को अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो कांग्रेस तोड़ देंगे।

2) #कहानीकम्युनिस्टोंकी आपको बताएगी कि उसी धमकी से डरते हुए 1929 में नेहरू को लोकतंत्र का गला घोंटते हुए कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया।

3) ताज्जुब देखिए, नेहरू 1929, 1936 और 1946 में तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष बने और तीनों ही बार लोकतंत्र का गला घोंटते हुए उन्हें अध्यक्ष बनाया गया। तीनों ही बार वह वोट से नहीं गांधीजी की कृपा से अध्यक्ष बने थे।

4) 1950 में भी नेहरू अपने उम्मीदवार आचार्य कृपलानी को कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बना पाए थे और सरदार पटेल के उम्मीदवार पुरुषोत्तम टंडन से उन्हें हारना पड़ा था।

5) सरदार की कांग्रेस पर मजबूत पकड़ से दुखी नेहरू कांग्रेस पार्टी तोड़कर अपनी एक अलग 'वामपंथी' पार्टी बनाना चाहते थे, जिसका खुलासा CIA ने अभी किया है। सरदार की मृत्यु 15 दिसंबर 1950 को हो गयी और फिर नेहरू ने कांग्रेस पर पकड़ बना ली। यदि सरदार कुछ दिन और जीवित रह जाते तो नेहरू अपनी अलग कम्युनिस्ट पार्टी बना चुके होते!

6) 1967 में आखिर इंदिरा ने उस कांग्रेस को तोड़ ही दिया। इसलिए राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे तक को यह पता होना चाहिए कि वो जिस परिवार का तराना सुनाते रहते हैं, वो पैराशूट से आजादी के आंदोलन में उतरा हुआ परिवार है और जिसने अपने स्वार्थ के लिए उसी कांग्रेस को बार बार क्षति पहुंचाई, जिससे उन्हें सबकुछ मिला। #KahaniCommunistoKi

Comments

Popular posts from this blog

गणेश सखाराम देउसकर की "देश की कथा " से / भाग -1 सखाराम गणेश देउस्कर लिखित 1904 में 'देशेर कथा' बांग्ला में लिखी गयी।

आदि शंकराचार्य के शिष्य विश्व विजेता सम्राट सुधन्वा चौहान -

महाराणा कुम्‍भकर्ण: कुम्भा